इसलिए राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी द्वारा मीडिया के लोगों को बार बार यह कहना कि तलाक का मामला उनके परिवार का आन्तरिक मामला है, और उसके बारे में ज्यादा पूछताछ और छानबीन न की जाय, गलत है। यह लालू परिवार का आंतरिक मामला निश्चित रूप से है, लेकिन इसके कारण सिर्फ उनका परिवार ही प्रभावित नहीं हो रहा है, बल्कि पूरे प्रदेश की राजनैतिक प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। उस घटना के बाद बिहार की राजनीति ठिठक सी गई है और तलाक की अर्जी से निकली राजनीति का अंजाम देखने और समझने की कोशिश वहां के राजनीतिज्ञ कर रहे हैं।

लोकसभा चुनाव के कुछ महीने ही रह गए हैं और बिहार का चुनावी मुकाबला दो गठबंधनों के बीच होना है। तेज प्रताप की तलाक की अर्जी दाखिल किए जाने के पहले गठबंधन पर बातचीत तेज थी। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक दलों के बीच सीटों के बंटवारे का एक फाॅर्मूला सार्वजनिक किया जा चुका था और उस वह फाॅर्मूला राजग के दो सबसे बड़े घटक दलों द्वारा तैयार किया गया था और यह देखा जा रहा था कि अन्य दो छोटे घटक उस फाॅर्मूले पर क्या रवैया अपनाते हैं। उस फाॅर्मूले के तहत सीटों की संख्या पर भी फैसला होना था और कौन घटक किन सीटो पर चुनाव लड़ेगे, इस पर भी बातचीत हो रही थी।

लेकिन इस समय फिलहाल राजग में गठबंधन के मोर्चे पर आंतरिक बातचीत बंद है। नीतीश कुमार ने दबाव बनाकर सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप देने के लिए भाजपा को जल्द से जल्द बाध्य करने की जो रणनीति बनाई थी, वह तलाक की अर्जी के शोर शराबे में दब गई है और भारतीय जनता पार्टी सीटों के बंटवारे से ज्यादा दिलचस्पी यह देखने में ले रही है कि तलाक की अर्जी का क्या अंजाम होगा। राम विलास पासवान की पार्टी चार लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए मन बना चुकी थी। उसे एक राज्यसभा सीट देने का भी भाजपा ने वायदा किया था, लेकिन अ बवह भी जल्दबाजी में नहीं है, क्योंकि उसके नेता यह आकलन करने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या मामला लालू यादव के बड़े बेटे की अपनी पत्नी से तलाक लेने तक ही सीमित है या इसके पीछे लालू परिवार के अंदर चल रहा कोई आंतरिक राजनैतिक राजनैतिक टकराव है। इस घटना के बाद अब पासवान की पार्टी ने भी अपनी मांग बढ़ा दी है।

सबसे ज्यादा ठहराव तो राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के सीट बंटवारे की बातचीत में आ गया है। राजद मुख्य पार्टी है और इसे कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई(माले), जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाले हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा और शरद यादव द्वारा गठित लोकतांत्रिक जनता दल के साथ सीटों के बंटवारे पर बातचीत करनी है। लालू यादव खुद जेल की सजा पाकर अस्पताल में अपना इलाज करा रहे हैं। राजनैतिक गतिविधियों में शामिल होने की अपनी सीमा है, क्योंकि जेल मैन्युअल उनको राजनीति करने की इजाजत नहीं देता और खराब स्वास्थ्य भी उन्हें ज्यादा मानसित तनाव से गुजरने की गुंजायश को सीमित कर देता है। ले देकर तेजस्वी यादव को ही गठबंधन और सीटों की बातचीत पर अपने सहयोगी दलों से उलझना है।

लेकिन तेज प्रताप की तलाक की अर्जी के कारण तेजस्वी भी परेशान हैं। घर मामला है, उनको परेशान होना ही चाहिए, लेकिन मीडिया से भी वे कम परेशान नहीं हैं। अब मीडिया उनसे सीटों के बंटवारे को लेकर सवाल नहीं पूछता। कितनी सीटें किन पार्टियों के लिए वे छोड़ेंगे, इस पर भी उनसे सवाल नहीं किए जाते। उनसे तलाक संबंधी प्रश्न किए जाते हैं। तेज प्रताप पटना से बाहर हैं। उनसे उनकी क्या बात होती है, इस पर पत्रकार उनसे सवाल पूछते हैं। इसके कारण उनकी परेशानी और बढ़ जाती है, क्योंकि वे मीडिया से बात करके तो अपने परिवार की समस्या हल नहीं कर सकते और किससे क्या बातचीत होती है, वे बाहर के लोगों को क्यों बताएं।

लिहाजा, महागठबंधन का सबसे बड़ा दल, जिसकी जिम्मेदारी इस गठबंधन के निर्माण में सबसे ज्यादा है, एक अभूतपूर्व स्थिति में फंस गया है। सवाल घर के बेटे और घर की बहू के भविष्य का है, पर बेटा समय की नजाकत को समझने के लिए तैयार नहीं है और परिवार के लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि नाराज बेटे को कैसे मनाए। तेजस्वी के लिए समस्या इसलिए भी कठिन हो गई है कि परिवार के अन्य सदस्य भी इस मामले में चुप हैं। तेज प्रताप के अलावा कहीं से इस संबंध में कोई खबर नहीं निकलती, सो ले देकर मीडिया तेजस्वी से ही सवाल पूछता है।

तो महागठबंधन और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबधन में सीटों के बंटवारे की बातचती जो जोर पकड़ना ही चाहती थी, शुरू होने के पहले ही स्थगित हो गई है और बिहार की राजनीति में एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि तेज प्रताप की तलाक अर्जी का क्या होगा। अभी तो सिर्फ तेज प्रताप का ही पक्ष सामने आ रहा है, क्योंकि सिर्फ वही बोल रहे हैं। कभी वे अपनी पत्नी ऐश्वर्या के बारे में नकारात्मक बातें करते हैं, तो कभी अपनी ससुर चन्द्रिका राय के बारे में भी कुछ कह देते हैं। एक बार तो उन्होंने अपनी सास पर भी दोष मढ़ दिया। अपने माता-पिता को भी वे दोषी ठहरा चुके हैं। लेकिन ऐश्वर्या, उनके पिता और उनकी मां अभी तक चुप हैं। जब वे बोलना शुरू करेंगे, तो क्या होगा, इसे देखना अभी बाकी है। और जब वे तीनों बोलेंगे, तो उसका प्रदेश की राजनीति पर क्या असर होगा, यह भी देखना बाकी है। फिलहाल यह सब देखने के लिए बिहार की राजनीति ठिठकी हुई है। (संवाद)