इस चुनाव में कांग्रेस एवं भाजपा के अलावे भाजपा के पूर्व विधायक हनुमान बेनीवाल द्वारा गठित राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी जिसे भाजपा विधायक धनश्याम तिवारी द्वारा गठित भारत वाहिनी पार्टी का सहयोग , बसपा, आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में है। कांग्रेस एवं भाजपा दोनों ने प्रदेश की दो तिहाई सीट पर अपने -अपने उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतार दिये है जिनमें कुछ नये चेहरे भी इस बार शामिल किये गये है। इस बार भाजपा ने अपने प्रत्याशियों में अभी तक किसी मुस्लिम समुदाय से किसी को प्रत्याशी नहीं बनाकर प्रदेश में हिन्दू कार्ड खेलने का प्रयास अवश्य किया है जबकि कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय से 9 प्रत्याशी चुनाव में उतारे है। इसका चुनाव में कितना लाभ किसे मिल पायेगा , कुछ कहा नहीं जा सकता ।
टिकट घोषणा उपरान्त दोनों दलों में बगावती तेवर देखे जा सकते जिन्हें शांत करने के प्रयास दोनों दल कर रहे है। इस प्रक्रिया में घोषित उम्मीदवारों में कुछ बदलाव लाकर असंतुष्टों को संतुष्ट किये जाने के प्रयास भी जारी है। फिर भी इस बार चुनाव में दोनों राष्ट्रीय दल भाजपा एवं कांग्रेस के बागी उम्मीदवार भी मैदान में रहेंगे, जिनका प्रतिफल आकड़े को प्रभावित कर सकता है। टिकट नहीं मिलने से नाराज भाजपा सरकार के विधायक एवं मंत्री भाजपा का दामन छोड़ कांग्रेस में शामिल हो रहे है जिन्हें कांग्रेस चुनाव मैदान में भी अपना प्रत्याशी घोषित कर उतार रही है। इसी तरह की प्रक्रिया भाजपा में भी देखी जा सकती है। जिसके कारण पार्टी में आंतरिक विरोध का सामना दोनों को करना पड़ रहा है। इस तरह उभरे हालात के बीच इस बार के चुनाव सत्ता पक्ष के कामकाज एवं चुनाव में खड़े प्रतिनिधियों के व्यक्तित्व पर पूर्णरूपेण निर्भर करेंगा।
वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपने अंतिम दौर में लाई गई अनेक जनहितकारी योजनाओं के बावजूद भी सŸाा परिवर्तन की तेज लहर में सŸाा बचा नहीं पाई। इस लहर में उसके प्रभावी मंत्री तक अपने क्षेत्र में बेहतर काम करने वावजूद भी चुनाव हार गये और पार्टी मात्र 21 सीट पर सिमट कर रह गई। कांग्रेस अपने कार्यकाल में रोजगार के मामले में प्रतिवर्ष हर क्षेत्र में नियुक्तियां निकालती रही। मेट्रो, वृृद्धा पेंशन, मुख्यमंत्री निःशुल्क दवाई एवं जांच , बसों में वरिष्ठ नागरिक एवं महिलाओं को 30 प्रतिशत किराये में छूट, बाड़मेर रिफाइनरी आदि लाभकारी योजनाएं लाकर भी कांग्रेस लहर में गायब हो गई ।
कांग्रेस का कार्यकाल इतना बुरा भी नहीं रहा था कि चुनाव में उसकी ऐसी स्थिति हो पर परिवर्तन की लहर ऐसी बही कि सबकुछ बह गया। इस तरह के बदले हालात को देखकर जहां कांग्रेस के दिग्गज रहे मंत्री भी चुनाव हार गये तो प्रदेश में ये आवाज एक बार गूंज उठी कि आखिर काम कौन करेगा । प्रदेश में वर्तमान भाजपा शासन काल में आम जनता के बीच से ये आवाज भी आ रही है कि सरकार ने अपने कार्यकाल में कोई भी नया काम नहीं किया एवं पूर्व घोषित योजनाओं को साकार रूप भी नहीं दे पाई जब कि सरकार अपने कार्यकाल के विकास आकड़ों को रख रही है।
इस तरह के उभरे हालात जहां एक तरफ आमजनमानस सरकार के कार्यो से संतुष्ट नजर नहीं आ रहा है, वहीं केन्द्र की भाजपा सरकार की जीएसटी, नोटबंदी योजना का प्रतिकूल प्रभाव सामने है। वर्तमान में पेट्रोल, डीजल एवं रसोई गैस के बढ़े भाव से आमजन परे््शान नजर आ रहा है। चुनाव में बागी तेवर एवं कड़े मुकाबले चुनाव का एक नया स्वरूप तैयार करेंगे, जहां सŸाा परिवर्तन का दौर नजर आ रहा है।
राजस्थान में वर्तमान में कांग्रेस एवं भाजपा के कई दिग्गज नेता आमने - सामने चुनाव मैदान में उतरते नजर आ रहे है। कुछ जगहों पर इन्हीं के अपने ही दल के जिन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया, विरोधी बने हुये है। राजस्थान के शेखावटी क्षेत्र जहां से वर्ष 2013 में कांग्रेस के दिग्गज नेता भी चुनाव हारे, इस बार इस क्षेत्र से कांग्रेस के सर्वाधिक उम्मीदवार चुनाव जीत कर आ सकते है। कुछ इसी तरह के परिवर्तन के हालात पूरे प्रदेश में नजर आ रहे रहे है जो सŸाा परिवर्तन के कारण बन सकते है। इस बार प्रदेश में कोई लहर नहीं है पर बगावती तेवर एवं कांटे की टक्कर अवश्य है जो जीत एवं हार के आकड़ें को प्रभावित कर सकती है। (संवाद)
राजस्थान चुनाव में कोई लहर नहीं
बगावती तेवरों के बीच कांटे की है टक्कर
भरत मिश्र प्राची - 2018-11-19 10:50
विधान सभा चुनाव के प्रारम्भिक दौर में राजस्थान प्रदेश में राजनीतिक हलचलें तेज हो चली है जहां 7 दिसम्बर को चुनाव होने वाले है। प्रदेश में नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। ढोल - नगारे के साथ कोई हाथी पर तो कोई ऊंट पर तो कोई घोड़े पर सवार अपना नामांकन कराने चुनावी मुख्य कार्यालय को विभिन्न राजनीतिक दलों के जनप्रतिनिधि पहुंचने शुरू हो गये है। इस बार प्रदेश में कोई पूर्व की तरह विशेष चुनावी लहर नजर नहीं आ रही है जिसका लाभ पूर्व की भाॅति राजनीतिक दल को मिल सके । जिसके कारण अभी भी उम्मीद सत्ता पक्ष भाजपा को बनी हुई है।