गुरुनानक की एक बहन नानकी भी थी। गुरु नानक देव जब पांच वर्ष के हुए तो पिता ने उन्हें एक मौलवी के पास पढ़ाई के लिए भेजा। पढ़ाई के पहले दिन मौलवी ने उन्हें लकड़ी की तख्ती व कलम सौंपी तो गुरु जी ने उस पर ईश्वर एक है, हम सब उस एक पिता की संतान लिख कर मौलवी को आश्चर्यचकित कर दिया। पांच वर्ष के बच्चे के मन के भाव देख मौलवी ने पहले ही साक्षातार में उनके चेहरे के नूर व ईश्वर स्वरुप की झलक देख कर कालू मेहता से कहा कि वह उसे क्या पढ़ाएंगे। उनका पुत्र नानक तो इलाही नूर व समस्त संसार को ज्ञान वितरित करने की क्षमता रखता है। कुछ वर्ष बाद पिता कालू ने पुत्र का पढ़ाई की तरफ ध्यान न होने के चलते उन्हें व्यापार के माध्यम धनार्जन करने के लिए कुछ रुपये देकर बाजार सौदा खरीदने के लिए भेजा। मगर पिता के आदेश पर व्यापार के लिए निकले गुरु नानक ने बीच रास्ते उन पैसों से दुनियावी सौदा खरीदने की बजाए भूखों को भोजन करवा कर सच्चा सौदा खरीद लिया। पढ़ाई व व्यापार में पुत्र का मन लगता न देख माता-पिता ने उन्हें पारिवारिक बंधन में बांधते हुए 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह कर दिया। वैवाहिक जीवन में उनके घर दो पुत्रों ने जन्म लिया। पत्नी व दो पुत्र भी उन्हें सांसारिक मोह में बांध नहीं सके तो जिस उद्देश्य के लिए अवतार लिया था, उसकी पूर्ति हेतू विश्व भ्रमण के लिए निकल पड़े और साथ चले दो साथियों में पहला साथी बाला व दूसरा मरदाना था।

धर्म प्रचार के दौरान गुरु नानक ने समाज को संदेश दिया कि जाति-पाति और सम्प्रदाय से महत्वपूर्ण होता है मानव का मानव से प्रेम, क्योंकि हम एक पिता एक्स है बारिक। इतिहास के अनुसार पूरा जीवन विश्व भ्रमण करते हुए गुरु जी ने लोगो को आडम्बर, भ्रम व अज्ञानता से दूर कर उनका मार्ग दर्शन किया । ताकि समस्त प्राणियों का परिचय आत्मा और परमात्मा से हो सके। उनके जीवन से जुड़े असंख्य प्रेरक प्रंसग है। जो कि उक्त तथ्यों की सम्पूर्ण पुष्टि कर मानव जीवन का मार्गदर्शन करते हैं। सतगुरु नानक का आगमन अंधकार में प्रकाश के समान है। आज उनका 550वां प्रकाश पर्व मन के भीतर के अंधकार को दूर करने के संकल्प का दिन है, और अज्ञानता के अंधेरे को दूर कर ज्ञान, जिज्ञासा से भरपूर एक ईश्वर का अपने आस-पास बोध है। (संवाद)