भाजपा की योजना है कि कांग्रेस को रूटीन गतिविधियों में उलझाकर रखे। भाजपा के स्टार प्रचारक लगातार कांग्रेस नेताओं पर तीखे हमले कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के भाषण कांग्रेसियों और आम जनता से ज्यादा बारीकी से भाजपा के लोग देख रहे हैं। कांग्रेस की ओर से प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और मध्यप्रदेश चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ही कमान संभाले हुए है। भाजपा ने विज्ञापनों में ‘‘माफ करो महराज, हमारे नेता शिवराज’’ के माध्यम से सिंधिया के खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है और कमलनाथ की सभाओं की अलग-अलग वीडियो क्लिपिंग को माध्यम बनाकर कमलनाथ का घेराव किया है। इन दोनों नेताओं के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भाजपा के निशाने पर है। लेकिन भाजपा का ज्यादा जोर कांग्रेस नेताओं को घेरने के बजाय माइक्रो मैनेजमेंट पर ज्यादा है। उल्लेखनीय है कि भाजपा माइक्रो स्तर पर पन्ना प्रभारी बनाने पर जोर देती आ रही है। इस तरह का प्रयोग पिछले कई चुनावों में वह कर चुकी है। भाजपा का संगठनात्मक ढांचा नीचे तक बना हुआ है। पिछले चुनाव की तरह इस बार समय रहते जमीनी कार्यकर्ताओं को ज्यादा मोबलाइज नहीं किया जा सका था। कार्यकर्ताओं में भी अपने नेताओं के प्रति नाराजगी है। संघ भी अपनी उपेक्षा को लेकर सुस्त पड़ा हुआ था। लेकिन कांग्रेस के घोषणा-पत्र में सरकारी परिसरों में संघ की शाखा लगाने पर प्रतिबंध की बात को भाजपा ने इमोशनली भुनाया और इसे संघ पर प्रतिबंध लगाने की तरह पेश किया। भाजपा ने इसके बूते मालवा और महाकौशल में संघ को सक्रिय कर दिया। इस रणनीति से भाजपा को उम्मीद है कि वह कम से कम बहुमत का आंकड़ा हासिल कर लेगी।

इस चुनाव में कांग्रेस भी पूरी तरह आश्वस्त है कि वह बहुमत से ज्यादा सीटें हासिल कर लेगी। उसका यह भरोसा पिछले दो साल में मध्यप्रदेश में हुए विभिन्न उप चुनावों एवं नगरीय निकायों में मिली कांग्रेस की जीत के कारण है। राहुल गांधी बहुत स्पष्ट तौर पर विकास और भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा रहे हैं। यद्यपि वे राज्य के मुद्दों पर ज्यादा बोलने के बजाय नोटबंदी, जीएसटी और रफाल डील पर बोल रहे हैं। राज्य के मुद्दों के तौर पर बेरोजगारी, किसानों की समस्या, महिला हिंसा, कुपोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य चरमराती व्यवस्था पर भी कांग्रेस भाजपा को घेर रही है। राज्य के इन मुद्दों को कांग्रेस ने अपने आरोप पत्र में भी शामिल किया है। कांग्रेस व्यापमं और ई-टेंडरिंग जैसे घोटालों पर शिवराज को घेर रही है। भाजपा के 15 सालों के शासन में उपेक्षा के कारण भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं की नाराजगी से भी कांग्रेस को उम्मीद बढ़ी है। यहां तक कि टिकट वितरण में कांग्रेस से ज्यादा भाजपा में बगावत हुई। मुख्यमंत्री के साले संजय को कांग्रेस में शामिल कर उन्हें टिकट देकर कांग्रेस ने भाजपा और शिवराज को साइकोलाॅजिकल शाॅक भी दिया। लेकिन जनता के भरोसे बैठी कांग्रेस का जमीनी स्तर पर संगठनात्मक ढांचा मजबूत नहीं हो पाया। इस पर किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया, बल्कि यह कहें कि इसके लिए कांग्रेस को समय ही नहीं मिल पाया। बड़े नेताओं की गुटबंदी को सुलझा लेना ही कांग्रेस के लिए इस चुनाव में राहत की बात रही है। कांग्रेस को उम्मीद है कि जमीनी संगठनात्मक ढांचे के बावजूद उप चुनाव में भाजपा को हार मिली है। राज्य सरकार के साथ-साथ जनता मोदी सरकार से भी ज्यादा नाराज है। केन्द्र की योजनाओं का लाभ लोगों को नहीं मिल पाया, बल्कि उनकी परेशानी बढ़ी है। इसलिए इन परिस्थितियों में सरकार बनाने लायक सीटें कांग्रेस को मिल जाएगी।

कांग्रेस और भाजपा से हटकर जनता को विकल्प देने के लिए आम आदमी पार्टी ने 200 से ज्यादा उम्मीदवारों को इस चुनाव में उतारा है। तीसरी शक्ति के रूप में अबतक बसपा, सपा और गोंगपा को ही देखा जाता रहा है। यह सही है कि संसाधनों की कमी, जमीनी कार्यकर्ताओं की कमी और केन्द्रीय नेतृत्व की निष्क्रियता के कारण आप को बड़ी सफलता की उम्मीद नहीं है। लेकिन आप का जोर है कि कुछ सीटें हासिल कर वह प्रदेश में किंगमेकर की भूमिका में आ जाए। अपने शपथ-पत्र के माध्यम से की गई घोषणाएं और दिल्ली सरकार के विकास माॅडल के सहारे आप को उम्मीद है कि विधानसभा में उसके विधायकों की उपस्थिति जरूर रहेगी। यद्यपि आप का मानना है कि उसने 200 से ज्यादा उम्मीदवारों के माध्यम से जनता के सामने विकल्प पेश कर दिया है और मतदाता इस विकल्प की चर्चा भी कर रहे हैं।

मध्यप्रदेश में बसपा और सपा की उपस्थिति पहले से रही है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का गठन मध्यप्रदेश में ही हुआ था। इन तीनों ही दलों के वोट प्रतिशत बेहतर रहा है। पिछले चुनाव में सपा और गोंगपा के कोई भी उम्मीदवार जीत हासिल नहीं कर सके थे। इस बार इन दोनों ने हाथ मिलाया है। बसपा प्रमुख मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव प्रदेश में सघन दौरा कर रहे हैं। विधानसभा में सम्मानजनक उपस्थिति के लिए दोनों ने जोर लगा दिया है, खासकर विंध्य और चंबल के अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में। कांग्रेस के साथ इनका समझौता भले ही नहीं हो पाया, लेकिन इन्हें उम्मीद है कि चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस को इनकी जरूरत पड़ेगी। (संवाद)