लेकिन जब आप धर्म और राजनीति में घालमेल करेंगे, तो वही होगा, जो आज हो रहा है। हनुमानजी को दलित बताकर योगी न केवल प्रहसन का पात्र बन रहे हैं, बल्कि उनको कानूनी नोटिस भी भेजे जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक भी योगी के उस भाषण के लिए अपनी नाखुशी जता चुके हैं। श्री नाईक ने प्रयागराज में संवाददाताओं का जवाब देते हुए कहा कि योगीजी को भाषण देते समय लोगों की आस्थाओं का भी ध्यान रखना चाहिए।

आखिर हनुमान को दलित कहे जाने पर एतराज किसको है? दलित संगठनों ने इस पर एतराज नहीं किया है, हालांकि यह सवाल उठा रहे हैं कि यदि हनुमानजी दलित देवता हैं, तो फिर उनके कंधे पर जनेऊ क्यों रहता है? गौरतलब हो कि आजकल दलित वे कहलाते हैं, जो लंबे समय तक छुआछूत के शिकार होते रहे और आज भी कहीं कहीं हो रहे हैं। उन्हें या तो वर्णव्यवस्था से बाहर रखा गया है या शूद्र वर्ण का माना गया है। उनका जनेऊ संस्कार नहीं होता। जनेऊ संस्कार जिसका होता है, वे शूद्र नहीं रह जाते, बल्कि द्विज हो जाते हैं। मनुस्मृति में लिखा गया है,‘‘ जन्मना जायते शूद्राः सस्कारात् द्विज उच्चयते’’। अब ंसंस्कार से मतलब जनेऊ संस्कार का रह गया है। इसलिए यदि हनुमानजी जनेऊ पहनते हैं, तो वे द्विज हो गए। फिर वे न तो शूद्र रहे और न ही अवर्ण। फिर उन्हें दलित क्यो कहा जाए? जाहिर है, हिन्दुत्व की राजनीति करते करते योगीजी हिन्दुत्व का ही गलत स्वरूप लोगों के सामने पेश कर रहे हैं।

और यह सब किया जा रहा है दलित वोट पाने के लिए। योगीजी को लगा कि हनुमान को दलित बताकर दलितों को खुश किया जा सकता है और उन्होंने वैसा कर भी दिया। लेकिन जो शिक्षित दलित हैं, उन्हें भी पता है कि जनेऊ धारी हनुमान उनके समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते। सच तो यह है कि केन्द्र मे सत्ता में आने के बाद ही भारतीय जनता पार्टी दलितो को अपने साथ जोड़ने के लिए जबर्दस्त मेहनत कर रही है। वह प्रतीकवाद का सहारा लेकर उन्हें अपने पक्ष में करना चाहती है। अम्बेडकर को गौरवान्वित करना उसी रणनीति का हिस्सा है, लेकिन सत्ता के केन्द्र में जब भागीदारी की बात आती है, तो भाजपा की सरकारे पीछे हटती दिखाई पड़ती हैं। इसलिए बीजेपी का भीमराग काम नहीं कर रहा है। और अब योगीजी ने हनुमान राग अलापकर दलितों पर डोरा डालने का काम शुरू कर दिया है।

हनुमान को दलित कहने से सबसे ज्यादा नाराज ब्राह्मण समुदाय ही है। उसी के एक संगठन ने योगीजी को कानूनी नोटिस भेजा है। वे योगीजी के भाषण से आहत महसूस कर रहे हैं। हनुमानजी को पहले गिरीजन और आदिवासी भी कहा जाता था। अब भी कहा जाता है। लेकिन इस पर किसी को आपत्ति नहीं होती, क्योंकि गिरीजन, आदिवासी या वनवासी किसी भी वर्ण का हो सकता है। हनुमान तो जंगल में रहते भी थे, इसलिए उन्हें वनवासी, गिरीजन और आदिवासी कहे जाने पर किसी को एतराज नहीं हो सकता, लेकिन दलित का अपना एक अलग मतलब होता है, जिसका संबंध समाज की जातिवादी और वर्णवादी संरचना से है।

हनुमानजी बानर या उसी की एक प्रजाति से थे। ऐसा बताया गया है। भारतीय जनता पार्टी के एक दलित नेता, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, उन्होंने वानर शब्द की एक अलग व्याख्या पेश की थी। वे नेता थे सूरजभान, जो उत्तर प्रदेश के राज्यपाल भी हुआ करते थे। उन्होंने कहा कि वानर शब्द दो शब्दों के साथ मिलकर बना हुआ एक अपभ्रंश शब्द है। वे दो शब्द हैं वन और नर। हनुमानजी वन नर थे और ये दोनों एक साथ मिलकर वानर हो गए, लेकिन वे मानव प्रजाति के ही थे, न कि बंदर प्रजाति के।

अब हनुमानजी क्या थे और क्या नहीं थे या थे भी या नहीं, लेकिन योगीजी के भाषण ने सोशल मीडिया पर एक बहस छेड़ दी है और देवताओं की जातियां पूछी और बताई जा रही हैं। शिव जी जाति क्या थी और शनि महाराज की जाति क्या है। यमराज की जाति तक पूछी और बताई जा रही है। कोई शिवजी को भंगी बता रहा है, क्योंकि उनका एक नाम भंगी भी है, जो शायद उनकी भंग( विघ्वंस) करने की भूमिका के कारण है, लेकिन गहराई में जाये बिना उन्हें भंगी बताकर योगीजी को सलाह दी जा रही है कि अगले भाषण में वे शिवजी को भी भंगी घोषित कर ही दें, क्योंकि इससे वोटों की बेहतर फसल काटी जा सकती है।

यमराज की सवारी भैंसा होता है। भैंस चराने वाले भी शान से भैंस की सवारी करते हैं। इसलिए सोशल मीडिया में यमराज को अहीर बताया जा रहा है। शनि महाराज को तेल का चढ़ावा पसंद है, इसलिए उनकी जाति तेली बताई जा रही है और योगीजी को सलाह दी जा रही है कि वे बिना हिचक यमराज और शनि महाराज के लिए भी क्रमशः अहीर और तेली जाति का प्रमाणपत्र जारी कर ही दें।

आज राजनीति का विचित्र दौर चल रहा है। जातिवाद और सांप्रदायिकता के सहारे पहले भी चुनाव लड़े और जीते जाते रहे हैं, लेकिन वह सब एक हद के अंदर ही हुआ करता था, लेकिन अब वह हद टूट चुका है। शब्दों की मर्यादा अब टूट चुकी है। जो सड़क छाप नेता पहले आपसी बातचीत या नुक्कड़ की बातचीत में कहा करते थे, अब वही बातें विशाल जनसभाओं में भी की जाती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन सच है। (संवाद)