बताया जा रहा है कि गोहत्या की एक घटना के बाद भीड़ बेकाबू हो गई थी। पुलिस ने समझाने की कोशिश की लेकिन भीड़ ने थाने पर पथराव कर दिया, वाहन फूंक डाले और इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिह को गोली मार दी। उन पर गोली चलाने से पहले भीड में शामिल हत्यारों ने उनकी रिवाल्वर और मोबाइल फोन भी छीन लिए। भीड ने वायरलैस सेट सहित थाने की संपत्ति को भी तोडा-फोडा और थाने में आग लगा दी। इस दौरान पुलिस की ओर से की गई जवाबी फायरिंग एक युवक की भी मौत हो गई। सवाल है कि गोहत्या से नाराज लोग हथियार लेकर पुलिस के खिलाफ गोलबंद क्यों हुए थे? पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही ऐसा कई बार हो चुका है कि लोग पुलिस-प्रशासन के पास इस तरह की शिकायत लेकर गए और जांच-पड़ताल के बाद मामले को शांतिपूर्वक हल कर लिया गया। लेकिन बुलंदशहर के घटनाक्रम से जाहिर होता है कि हथियारों से लैस भीड़ पुलिस पर हमला करने की नीयत से ही आई थी। वीडियो रिकॉîडग के आधार पर बजरंग दल और गोरक्षा वाहिनी नामक संगठनों के पदाधिकारियों का नाम इस मामले में खुलकर सामने आ रहा है। घटना के सिलसिले में पुलिस ने जिन लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है, उनमें बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और भारतीय जनता युवा मोर्चा के स्थानीय पदाधिकारियों के नाम भी शामिल हैं। बजरंग दल के जिला अध्यक्ष योगेश राज को भारतीय जनता युवा मोर्चा के नगर अध्यक्ष शिखर अग्रवाल को मुख्य आरोपी बनाया गया है। इन दोनों सहित तमाम आरोपी अभी भी फरार हैं और सोशल मीडिया पर अपने वीडियो संदेश जारी कर कानून-व्यवस्था को ठेंगा दिखा रहे हैं।

बुलंदशहर की घटना के संबंध में उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि यहां पास के ही एक गांव में घटना के चार दिन पहले मुसलमानों के एक बहुत बडे धार्मिक जलसे ‘इज्तेमा’ का आयोजन हुआ था, जिसमें देशभर से आए आठ से दस लाख लोगों ने शिरकत की थी। आयोजन शांतिपूर्वक समाप्त हो चुका था और अधिकांश लोग अपने-अपने घरों को लौट गए थे। घटना वाले दिन यानी 3 दिसंबर को भी कुछ लोग लौटते समय जब यातायात जाम हो जाने की वजह से रास्ते में फंस गए और उनकी नमाज का वक्त हो गया तो इसी बुलंदशहर के लोगों ने गहन मानवीय संवेदना और सांप्रदायिक सद्भाव का परिचय देते हुए उन लोगों को समीप के शिव मंदिर परिसर में नमाज अदा करने के लिए बुला लिया था। लेकिन उसी बुलंदशहर के दूसरे हिस्से में उसी दिन गोकशी के नाम पर इस शर्मनाक घटना को अंजाम दे दिया गया।

बुलंदशहर में गो आतंकियों के हाथों पुलिस अधिकारी की हत्या एक दशक पहले मुंबई में आतंकवादी हमले के दौरान रहस्मय स्थितियों में मारे गए पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे की याद ताजा कराती है। गौरतलब है कि उन दिनों हेमंत करकरे महाराष्ट्र एटीएस के प्रभारी की हैसियत से मालेगांव बम धमाकों के मामले की जांच कर रहे थे, जिसमें साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, असीमानंद, कर्नल पुरोहित आदि अभियुक्त थे। चूंकि करकरे को जांच में इन अभियुक्तों के खिलाफ पुख्ता सबूत मिले थे, इसलिए वे इन अभियुक्तों के संरक्षकों-समर्थकों के निशाने पर थे। करकरे को आतंकवादी हमले के दौरान रास्ते से हटा दिया गया और शहीद करार देकर उनकी मौत को आतंकवादियों के खाते में डाल दिया गया। इस बात को करकरे की पत्नी अच्छी तरह समझती थी, लिहाजा उन्होंने अपने पति की मौत की जांच की मांग करते हुए राज्य सरकार द्वारा दी गई मुआवजा राशि लेने से इनकार कर दिया था।

लगता है कि बुलंदशहर में पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह को भी करकरे की तर्ज पर ही रास्ते से हटाया गया है। उनकी हत्या के तार दादरी के बहुचर्चित अखलाक हत्याकांड की जांच से जुडे होने की आशंका है। गौरतलब है कि नोएडा के दादरी गांव में गोमांस अपने घर में रखने के झूठे आरोप में उन्मादी तत्वों ने अखलाक नामक एक व्यक्ति की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। उस हत्याकांड की जांच बुलंदशहर की घटना में मारे गए पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार ने ही की थी। आरोपियों को बचाने के लिए जांच के दौरान उन पर काफी दबाव आया था लेकिन उस दबाव में आए बगैर उन्होंने मामले की जांच की। जांच में बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद से जुडे कुछ लोगों का नाम हत्याकांड के लिए जिम्मेदारों के तौर पर उभरकर आया था। यह तथ्य भी बुलंदशहर कांड के पीछे साजिश की आशंका को जन्म देता है। सुबोध कुमार की पत्नी और बहन ने भी इसी आशय का आरोप लगाया है।

यह भी कम शर्मनाक और दुखद बात नहीं है कि घटना के वक्त तेलंगाना और राजस्थान में चुनाव प्रचार करते हुए भडकाऊ भाषण परोसने में मशगूल राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटना पर तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और जब बाद में अपना मुंह खोला भी तो पुलिस अधिकारी की हत्या को एक दुर्घटना करार देते हुए गोहत्या करने वालों पर कार्रवाई करने के निर्देश जारी किए।

उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर की घटना कोई पहली घटना नहीं है। हाल के वर्षों में खासकर उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद इस तरह की कई घटनाएं हो चुकी हैं। ऐसी ही घटनाएं अन्य राज्यों में भी हुई हैं और किसी भी घटना में आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। 2017 के पहले छह महीनों के दौरान गोहत्या की अफवाह पर 20 लोग भीड की हिंसा का शिकार हुए। ये मामले 2016 की तुलना में 75 फीसद ज्यादा थे। इस साल देश के दस राज्यों में गोरक्षा के नाम पर भीड के हमले के 14 मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें 31 लोगों की मौत हुई। 2010 से 2017 के बीच दर्ज 63 मामलों में से 97 फीसद मामले पिछले तीन साल में दर्ज हुए हैं। इस तरह की घटनाओं का लगातार दोहराव देश के भविष्य के बेहद अशुभ संकेत है। (संवाद)