सवर्ण और ओबीसी के कारण ही भाजपा की सरकारें बनती रही हैं। मुस्लिम और दलित उन्हें वोट नहीं देते हैं। मुस्लिम वोटों की तो भाजपा को परवाह नहीं है, लेकिन दलित मतों के लिए वह 2014 से ही बहुत ज्यादा सक्रिय है और प्रधानमंत्री सत्ता संभालने के बाद ही भीम भीम की माला जप रहे हैं। उन्हीं कोशिशों के तहत उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए एससी/एसटी एक्ट को अपने मूल रूप में स्थापित कर दिया। इसके कारण उन्हें दलितों का वोट तो नहीं मिला, लेकिन उनके सवर्ण और ओबीसी मतदाता उनसे जरूर भड़क गए और इसका खामियाजा उनकी पार्टी को पिछले चुनावों में भुगतना पड़ा है।
एससी/एसटी एक्ट पर मोदी सरकार द्वारा दिखाई गई सक्रियता एक और कारण से प्रधानमंत्री के गले की फांस बनी हुई है। भाजपा के मूल समर्थक अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विवादित स्थल पर रामलला का भव्य मंदिर चाहते हैं। उस स्थल का विवाद सुप्रीम कोर्ट में है। अब उनका कहना है कि यदि एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धता बताते हुए कानून बनाया जा सकता है, तो फिर राम मंदिर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट को धता बताने में क्या दिक्कत है। उनके समर्थक इस विवाद से संबंधित कानूनी पेचदगियों को समझने के लिए तैयार नहीं हैं और मंदिर निर्माण के लिए नरेन्द्र मोदी पर दबाव डाल रहे हैं। उनमें से कुछ तो भाजपा के विरोध तक जाने की हद तक नाराज हो चुके हैं। भाजपा की इन तीनों राज्यों मंे हार का एक कारण यह भी है। हालांकि सच यह भी है कि संघ और संघ परिवार भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए वह सब कुछ रहा था, जो उनसे संभव था। इसके कारण ही तीनों राज्यों में रिकाॅर्ड मतदान हुए। मध्यप्रदेश और राजस्थान में पराजित होने के बावजूद भाजपा ने कांग्रेस को कड़ी टक्क्र दी। मध्यप्रदेश में तो उसे बहुमत पाने से भी रोक दिया। राजस्थान में भी कांग्रेस अपने टिकट पर बहुमत नहीं पा सकी, हालांकि अपने चुनाव पूर्व सहयोगियों की सहायता से वह बहुमत के आंकड़े को छू चुकी है।
भाजपा चुनाव हार चुकी है, लेकिन कांग्रेस के लिए भी मध्यप्रदेश और राजस्थान में जश्न मनाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वह सिर्फ भाजपा पर बढ़त का दावा कर सकती है, जीत का नहीं। छत्तीसगढ़ में उसकी निर्णायक जीत जरूर हुई है, लेकिन उसके लिए वह खुद नहीं, बल्कि वहां की परिस्थितियां जिम्मेदार हैं। छत्तीसगढ़ नक्सलवाद से ग्रस्त राज्य है और प्रदेश तथा केन्द्र में भाजपा की सरकार होने के कारण वहां नक्सलियों पर पुलिस और सुरक्षाबलों पर काफी दबाव बढ़ा हुआ था। दोनों सरकारें छत्तीसगढ़ की जमीन जंगल और जल को काॅर्पोरेट के हाथों बेचने को सक्रिय थे। नक्सलियों का कांग्रेस से कोई प्रेम नहीं है, लेकिन उन्होंने इस बार उनकी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, क्योंकि उन्हें लगा कि केन्द्र और राज्य सरकारों में अलग अलग पार्टियों की सरकारें होना उनके हित में है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में भी भारी मतदान हुए और वह मतदान कांग्रेस के पक्ष में गया। रमन सिह सरकार ने एक पत्रकार को एक कथित सीडी कांड में गिरफ्तार कर लिया था। वह पत्रकार छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष भूपेश बघेल का रिश्तेदार भी था। श्री बघेल को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। इसके कारण बघेल के प्रति छत्तीसगढ़ में सहानुभूति का भाव था। जेल जाने के बावजूद कांग्रेस ने उन्हें उनके अध्यक्ष पद से नहीं हटाया था। इसका लाभ कांग्रेस को हुआ। राहुल गांधी द्वारा किसानों की कर्जमाफी की घोषणा का भी किसानों द्वारा भारी स्वागत हुआ। इन सब कारणों के सम्मिलित प्रभाव ने वहां कांग्रेस को भारी बहुमत से सत्ता थमा दी है।
तीन राज्यों को भाजपा गंवा चुकी है। ये तीन राज्य वे हैं, जो भाजपा का अपने जन्मकाल से ही सबसे मजबूत गढ़ रहे हैं। राजस्थान और अविभाजित मध्यप्रदेश, जिसका एक हिस्सा अभी झारखंड है, में भारतीय जनता पार्टी और उसके पहले भारतीय जनसंघ कांग्रेस को चुनौती देने वाली एक मात्र पार्टी हुआ करती थी। अन्य राज्यों में तो भाजपा बाद मेें मजबूत पार्टी बनी। अब उन राज्यों में ही वह सत्ता से बाहर हो चुकी है। और उसके बाद सवाल उठता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा का क्या होगा? नरेन्द्र मोदी भाजपा के लिए वोट जुगाड़ करने वाले सबसे बड़े नेता हैं। भाजपा में उनका अभी कोई विकल्प नहीं है। क्या वे 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी को एक बार फिर सत्ता दिला सकेंगे- यह आज का सबसे बड़ा राजनैतिक सवाल है।
यदि मोदी मैजिक की बात की जाय, तो छत्तीसगढ़ में वह मैजिक नहीं चला, लेकिन राजस्थान में वह मैजिक अवश्य चला है, क्योंकि वहां भाजपा की एक बड़ी हार की संभावना व्यक्त की जा रही थी। इसका कारण यह है कि पिछले कुछ उपचुनावों में वहां भाजपा की करारी हार हुई थी। वहां का पूरा माहौल भाजपा और खासकर वसुधरा के खिलाफ था, लेकिन मोदी की कुछ रैलियों के बाद वहां की फिजा बदली और भारतीय जनता पार्टी फिर मुकाबले में आ गई और उसने कांग्रेस को बड़ी जीत से वंचित कर दिया। लेकिन दूसरी तरफ मध्यप्रदेश में शायद मोदी का जादू नहीं चला। वहां एससी/एसटी एक्ट को लेकर समाज के कुछ तबके में बहुत रोष था और वह रोष मोदी मैजिक पर भारी पड़ा, हालांकि किसानों की समस्या जैसे अन्य मसले भी उसके खिलाफ काम कर रहे थे। तीन राज्यों की हार ने मोदी सरकार की 2019 के बाद वापसी पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर दिए हैं। (संवाद)
तीन राज्यों में भाजपा ने खो दी सरकार
क्या केन्द्र में फिर आ पाएगी अब मोदी सरकार?
उपेन्द्र प्रसाद - 2018-12-12 11:05
तीन हिन्दी प्रदेशों में भाजपा को मिली हार अप्रत्याशित नहीं है। पिछले कुछ समय से देश का राजनैतिक माहौल कुछ ऐसा बन रहा था, जिसके कारण भारतीय जनता पार्टी का सितारा गर्दिश में जाता प्रतीत हो रहा था। यह सच है कि नोटबंदी और जीएसटी की यादों से लोग मुक्त हो चुके थे, लेकिन एससी/एसटी एक्ट के कारण देश की अधिसंख्य आबादी के लोग भाजपा सरकार से बहुत नाराज हो गए थे। भाजपा के लिए सबसे अधिक चिंता की बात यह थी कि नाराज होने वाले लोगों में वे ही लोग ज्यादातर थे, जो उन्हें सत्ता में लाया करते थे।