दरअसल सरकार के नए नियमों के अनुसार आर्थिक रूप से कमजोर तबकों की सब्सिडी का पैसा सीधे उनके बैंक खातों में जाता है, जिसके चलते एटीएम सेवाओं पर ऐसे लोगों की निर्भरता पिछले कुछ समय में काफी बढ़ी है और एटीएम बंद होने का सर्वाधिक असर उन्हीं पर पड़ेगा। नोटबंदी के बाद से बैंकों की भीड़ से बचने और आधी रात को भी पैसे निकालने की सुविधा के चलते एटीएम सुविधा आज आधुनिक जनजीवन की एक बड़ी जरूरत बन गई है। ऐसे में आधे से अधिक एटीएम बंद करने की चेतावनी ने पहले से ही भारी एनपीए का बोझ झेल रहे बैंकिंग सेक्टर के साथ-साथ सरकार के माथे पर भी बल डाल दिए हैं क्योंकि इससे सरकार की डिजिटल इंडिया मुहिम को झटका लगना तय है। कैटमी द्वारा भी यह स्वीकार किया जा रहा है कि इतने सारे एटीएम बंद होने से लोगों को कैश निकालने की समस्या का सामना करना पड़ेगा, साथ ही लाखों लोगों के बेरोजगार होने का खतरा भी उत्पन्न होगा क्योंकि प्रत्येक एटीएम से 1-2 लोगों को रोजगार तो मिलता ही है। अगर एटीएम बंद होते हैं तो इसका देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा क्योंकि अर्थव्यवस्था के प्रसार के लिए सुविधाजनक वित्तीय लेन-देन अत्यावश्यक है किन्तु एटीएम बंद होने से उसमें बड़ी बाधा उत्पन्न होगी।

कैटमी के मुताबिक इस समय देश में करीब 2 लाख 38 हजार एटीएम हैं, जिनमें से करीब एक लाख आॅफ साइट और 15 हजार से अधिक व्हाइट लेबल एटीएम बंद हो जाएंगे। जिन एटीएम की देखरेख और संचालन गैर बैंकिंग संस्थाओं द्वारा की जाती है, उन्हें व्हाइट लेबल एटीएम कहा जाता है, ब्राउन लेवल एटीएम का खर्च कई संस्थाएं मिलकर उठाती हैं जबकि अधिकांश एटीएम सीधे बैंकों द्वारा संचालित किए जाते हैं। देश में चल रहे एटीएम भी तीन तरह के हैं। एक वो, जिनकी निगरानी खुद बैंक करते हैं या ऐसी कम्पनियों को उनकी जिम्मेदारी दे देते हैं, जो एटीएम से जुड़े सारे काम देखती हैं। दूसरे वो, जिन्हें बैंक एटीएम उपलब्ध कराने वाली कम्पनी को ठेका देकर जरूरत के अनुसार लगवाते हैं और कम्पनियां प्रत्येक ट्रांजैक्शन के लिए बैंक से कमीशन लेती हैं। इन दोनों ही तरह के एटीएम में कैश डलवाने की जिम्मेदारी बैंक की ही होती है। तीसरे वो एटीएम हैं, जो 2013 में आरबीआई द्वारा कुछ कम्पनियों को अपने हिसाब से एटीएम मशीनें लगाकर बैंकों को एटीएम सुविधा उपलब्ध कराने के लिए लाइसेंस दिया गया था, जिसके बदले उन्हें कमीशन अथवा एटीएम इंटरचेंज फीस मिलती हैं। इन एटीएम के लिए किराये पर जगह का चयन, एटीएम की देखभाल, मशीनों में कैश डलवाना तथा अन्य सभी कार्य इन कम्पनियों की ही जिम्मेदारी है। कम्पनियों को कमीशन नेशनल पेमेंट काॅरपोरेशन आॅफ इंडिया तथा आरबीआई के बीच विचार-विमर्श के बाद ही तय होता है किन्तु इस कमीशन में पिछले पांच वर्षों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है जबकि एटीएम के संचालन से संबंधित खर्चों में विशेषकर नोटबंदी के बाद नोटों का आकार बदलने के पश्चात् काफी बढ़ोतरी हुई है।

आरबीआई के बदले नियमों और एटीएम अपग्रेडेशन के चलते एटीएम इंडस्ट्री पहले से ही काफी दबावों के बोझ तले दबी है। कैटमी द्वारा कहा गया है कि उन्हें हर एटीएम कैश ट्रांजैक्शन के लिए 15 रुपये कमीशन मिलता है जबकि उनका खर्च काफी बढ़ गया है और अब आरबीआई द्वारा जिस प्रकार के कड़े नियम लागू किए जा रहे हैं, उससे नोटबंदी के बाद से अब तक पूरी तरह नहीं उबर पाए एटीएम उद्योग के लिए आर्थिक संकट और गहरा गया है। आरबीआई के नए निर्देशों में एटीएम मशीनों में साॅफ्टवेयर अपग्रेडेशन कर तकनीक बेहतर करने के साथ-साथ नकदी का हस्तांतरण करने वाली कम्पनियों की वित्तीय क्षमता एक अरब रुपये करने और यातायात तथा सुरक्षा का स्तर बढ़ाने जैसी कड़ी शर्तें शामिल हैं। कैटमी का कहना है कि इससे एटीएम उद्योग का खर्च काफी बढ़ जाएगा और आरबीआई के इन सब प्रावधानों को लागू करने के लिए एटीएम सेवा प्रदाता कम्पनियों को बहुत बड़े निवेश की जरूरत पड़ेगी और चूंकि उनके पास निवेश के लिए पर्याप्त धन नहीं है तथा रिजर्व बैंक के निर्देशों पर अमल करने पर एटीएम के हर लेन-देन पर उनके खर्च में 6-10 फीसदी वृद्धि हो सकती है, इसलिए मजबूरन उन्हें एटीएम बंद करने का निर्णय लेना पड़ेगा। नोटबंदी की वजह से एटीएम मशीनों में पहले ही हार्डवेयर और साफ्टवेयर में काफी बदलाव करने पड़े हैं, जिससे एटीएम कम्पनियों को पहले ही काफी खर्च उठाना पड़ा है।

नोटबंदी के बाद सभी 2.38 लाख एटीएम को 500 और 2000 के नए नोटों के हिसाब से अपग्रेड किया गया। उसके कुछ समय बाद 200 रुपये के नोट जारी हुए तो एटीएम में फिर इन नए नोटों के हिसाब से बदलाव करने पड़े और इसी साल जुलाई माह में अलग साइज के 100 रुपये के नोट जारी किए गए तो एटीएम को इन नए नोटों के लिए तैयार करने की भी जरूरत महसूस हुई और इसके लिए बैंकिंग इंडस्ट्री द्वारा 100 करोड़ रुपये का खर्च तथा करीब एक साल का समय लगने का अनुमान लगाया गया है। बताया जा रहा है कि नए नोटों के हिसाब से प्रत्येक एटीएम को तैयार करने पर करीब तीन हजार रुपये का खर्च आता है और इसके लिए बैंकों और एटीएम सेवा प्रदाताओं को ही सारा खर्च वहन करना है। एटीएम के हार्डवेयर और साॅफ्टवेयर को नए नोटों के हिसाब से अपडेट करने पर करीब तीन हजार करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान है, इसलिए एटीएम उद्योग द्वारा ऐसे एटीएम की संख्या कम करने का निर्णय लिया गया है।

हालांकि रिजर्व बैंक के कड़े निर्देशों पर उंगली उठाने से पहले यह जान लेना भी जरूरी है कि उसके ये निर्देश बैंकिंग तंत्र को अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में एक ठोस पहल है किन्तु दूसरी ओर एटीएम सेवा प्रदाता कम्पनियों की समस्याओं की अनदेखी करना भी उचित नहीं होगा। फिलहाल इस समस्या का एकमात्र समाधान यही है कि एटीएम कम्पनियां तथा बैंकिंग संगठन रिजर्व बैंक के साथ मिलकर इसका कोई संतुलित समाधान निकालने का प्रयास करें। कैटमी का कहना है कि अगर बैंक एटीएम के अपडेटेशन पर आने वाले खर्च को वहन करें या एटीएम लगाने वाली कम्पनियों को कुछ अतिरिक्त छूट उपलब्ध कराई जाए, तभी इस संकट का समाधान संभव है। (संवाद)