फिर उन्होंने पवित्र स्थानों पर वरिष्ठ हिंदू नागरिकों की तीर्थयात्रा के वित्तपोषण के लिए एक और योजना शुरू की। राज्य सरकार ‘तीर्थ यात्रा’ पर किए गए कुल व्यय को वहन करती थी। सरकार पूरी की पूरी ट्रेन को ही किराए पर लेती थी, जिसका इस्तेमाल वरिष्ठ हिंदू नागरिकों को विभिन्न पवित्र स्थानों पर ले जाने के लिए किया जाता था। हिंदू दूल्हे और दुल्हन के सामूहिक विवाह भी बड़े पैमाने पर सरकार द्वारा आयोजित करवाए। जिला कलेक्टर इन समारोहों की निगरानी करते थे। नए विवाहित जोड़े को दहेज के रूप में पर्याप्त रकम और अन्य सामान भी दिए जाते थे।

उज्जैन में सिंहस्थ पर भारी रकम खर्च करके उन्होंने साधु और संतों को खुश करने की कोशिश की। पहले कुंभों में राज्य सरकार की भूमिका तीर्थयात्रा की व्यवस्था करने और कानून व्यवस्था तक ही सीमित हुआ करती थी। लेकिन चौहान ने साधुओं और विभिन्न धार्मिक संगठनों के प्रमुखों को मुफ्त आवास और बोर्डिंग सुविधाएं दीं। इतना ही नहीं, कुंभ के दौरान कई सांस्कृतिक और शैक्षणिक कार्यक्रम सरकारी खर्चों से आयोजित किए गए।

एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी भी आयोजित की गई, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों और विदेशों से विभिन्न विषयों पर सैकड़ों विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया था। सेमिनार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस प्रमुख ने भी भाग लिया था।

सरकार ने कुंभ के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान शुरू किया था। विज्ञापन नेशनल ज्योग्राफिक जैसे प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए और देश की कई एयरलाइनों और प्रमुख अंतरराष्ट्रीय एयरलाइंस में भी प्रदर्शित हुए।

ऐसे कुछ विज्ञापनों के बारे में सबसे दिलचस्प तथ्य यह था कि भाषा हिंदी थी। मुख्यमंत्री को खुश करने के लिए राज्य सरकार के अधिकारियों ने ‘पूजा’ का प्रदर्शन किया और महत्वपूर्ण शुभ दिन पर पवित्र ‘शिप्रा’ में डुबकी ली। मुख्यमंत्री ने अपनी पत्नी के साथ कई बार कुंभ स्थल उज्जैन का दौरा किया। यह कुंभ के दौरान उज्जैन जाने से परहेज करने वाले मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों के अभ्यास के विपरीत था क्योंकि उनकी यात्राओं से कानून व्यवस्था की समस्याएं पैदा होने का खतरा बना रहता था।

मुख्यमंत्री ने बड़े पैमाने पर ‘नर्मदा परिक्रमा’ भी लॉन्च किया। उन्होंने अपनी पत्नी साधना सिंह के साथ इस तीर्थयात्रा पर चार महीने से अधिक समय व्यतीत किया। इस कार्यक्रम में पूरी प्रशासनिक मशीनरी शामिल थी। न केवल इस कार्यक्रम पर सरकारी धन खर्च किए गए थे बल्कि कलेक्टरों को जनता से धन जुटाने के लिए अधिकृत किया गया था। नर्मदा के तट पर विभिन्न स्थानों पर मुख्यमंत्री के स्वागत के लिए बड़े पैमाने पर व्यवस्था की गई। अधिकारियों ने न केवल तीर्थयात्रा के लिए व्यवस्था की बल्कि भक्त हिंदुओं के रूप में भी भाग लिया।

सरकार ने आदि शंकरचार्य की जयंती भी मनाई। शंकरचार्य की जयंती को चिह्नित करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था।

चौहान ने पांच साधुओं को प्रदेश के राज्यमंत्री का दर्जा तक दे दिया। यह तो धार्मिक तुष्टिकरण की पराकाष्ठा थी। लेकिन कंप्यूटर बाबा के रूप में विख्यात एक साधु ने मंत्रिस्तरीय पद से इस्तीफा दे दिया और मुख्यमंत्री व भाजपा के खिलाफ प्रचार किया।

शायद हिंदुओं को खुश करने के उद्देश्य से उन्होंने विधानसभा के पटल पर घोषित किया कि किसी भी परिस्थिति में उनकी सरकार सच्चर समिति की सिफारिशों को लागू नहीं करेगी। उन्होंने कहा, यदि वे लागू किए जाते हैं तो इसका परिणाम दूसरे पाकिस्तान के निर्माण में होगा।

इस प्रकार हिंदुओं को प्रसन्न करने के उनके सारे प्रयास विफल हो गए और आखिरकार चौहान को सत्ता से बाहर होना पड़ा। (संवाद)