झारखंड भी एक हिन्दी प्रदेश है और इसकी सीमाएं मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से लगी हुई है। संस्कृति के हिसाब से यह छत्तीसगढ़ से ज्यादा नजदीक है। सच तो यह है कि झारखंड के लिए जब आंदोलन हुआ करता था, तो छत्तीसगढ़ के एक हिस्से को भी प्रस्तावित राज्य के अंदर ही दिखाया जाता था। छत्तीसढ़ के अलावा उड़ीस और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्से को भी प्रस्तावित राज्य का हिस्सा माना जााता था।
बहरहाल, झारखंड का निर्माण बिहार के विभाजन से ही हुआ है और अन्य तीनों राज्य के कथित झारखंडी हिस्से अभी उनके पास ही हैं। राजनैतिक रूप से भले ही वे हिस्से झारखंड के पास न हों, लेकिन उनके साथ झारखंड की सांस्कृतिक एकता है। और इसके कारण ही कोलेबिरा के चुनावी नतीजे को दिलचस्पी के साथ देखा जा रहा था।
छत्तीसगढ़ में भाजपा की करारी हार हुई है और वहां कंाग्रेस ने जबर्दस्त वापसी की है। झारखंड के कोलेबिरा में भी कांग्रेस प्रत्याशी का भारी मतों से जीतना यह साबित करता है कि भाजपा के पैरों तले जमीन न केेेेेेेेेेवल छत्तीसगढ़ में, बल्कि झारखंड में भी खिसक रही है। वहां कांग्रेस की जीत अनेक कारणों से महत्वपूर्ण है।
सबसे बड़ा कारण तो यह है कि पिछले 15 साल से यह सीट कागेस के पास नहीं थी। यानी जब से झारखंड राज्य का गठन हुआ, उसके बाद हुए किसी चुनाव में इस सीट से कांग्रेस का उम्मीदवार नहीं जीता था। पिछले आमचुनाव में तो कंाग्रेस उम्मीदवार जीतने वाले उम्मीदवार एनोस एक्का का मुख्य प्रतिद्वंद्वी भी नहीं था। ऐसी हालत में उसकी जीत निश्चय ही कांग्रेस के लिए काफी मायने रखती है।
दूसरा कारण यह है कि कांग्रेस का उम्मीदवार कथित महागठबंधन का उम्मीदवार नहीं था। उसे प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा का समर्थन हासिल नहीं था। हेमंत सोरने का झारखंड मुक्ति मोर्चा झारखंड पार्टी की उम्मीदवार का समर्थन कर रहा था। इसलिए इस जीत का श्रेय झारखंड मुक्ति मोर्चा के समर्थन को नहीं जाता है। यह जीत कांग्रेस की अपनी जीत है। हालांकि यह भी सच है कि बाबूलाल मरांडी का दल झारखंड विकास मोर्चा कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन कर रहा था।
एक तीसरे कारण से भी कांग्रेस की जीत महत्वपूर्ण है और वह कारण है झारखंड पार्टी की उम्मीदवार का एनोस एक्का की पत्नी होना। यह सच है कि यह उपचुनाव एनोस एक्का को मिली सजा के कारण हुआ था। उनके खिलाफ हत्या का एक मुकदमा चल रहा था और उस मुकदमे मे एक्का को सजा मिली और उसके कारण उनकी विधानसभा की सदस्यता समाप्त हो गई। लेकिन इस तथ्य के बावजूद उनकी पत्नी को सहानुभूति का लाभ मिलने की उम्मीद की जा रही थी। पर कांग्रेस उम्मीदवार के सामने झारखंड पार्टी की उम्मीदवार को सहानुभूति का लाभ भी नहीं मिला। वह दूसरे क्या तीसरे नंबर पर भी वोट पाने के मामले में नहीं थीं। वोटों को पाने के मामले में वह चौथे नंबर पर थी और वह भी हेमंत सोरेन के समर्थन मिलने के बावजूद।
गौरतलब हो कि एनोस एक्का पिछले तीन बार से इस क्षेत्र में लगातार चुनाव जीत रहे थे। चुनाव जीतने के बाद त्रिशंकु विधानसभा में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती थी और इसका वे लाभ भी उठाते थे। उन्होंने काफी धन भी इकट्ठा कर लिया था और आय के ज्ञात स्रोत से ज्यादा धन होने का एक मुकदमा भी उनके खिलाफ चल रहा है और प्रवत्र्तन निदेशालय ने उनकी काफी संपत्तियां जब्त भी कर ली हैं।
आज को जो राजनैतिक माहौल बन गया है, उसमें नेता का सजा होना चुनावी दृष्टि से ज्यादा मायने नहीं रखता। राजनीति में व्यक्तिपूजा का यह दौर है और इसके कारण सजायाफ्ता नेता के परिवार को भी सहानुभूति का लाभ मिल जाता है। पर श्रीमती एक्का वह लाभ उठा नहीं पाईं और उन्हें वोटों के लिहाज से चौथा स्थान प्राप्त हुआ।
श्रीमती एक्का का चौथा स्थान प्राप्त होना और कांग्रेस उम्मीदवार का जीत जाना यह निष्कर्ष निकालने के लिए काफी है कि झारखंड पार्टी के आधार का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस की ओर आ गया है। क्या इसका यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि कांग्रेस अपने पुराने जनाधार को झारखं डमें हासिल कर रही है?
गौरतलब हो कि 1990 के पहले जब झारखंड बिहार का हिस्सा था, तो वहां के आदिवासियों का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस के साथ ही हुआ करता था। अलग राज्य की मांग करते हुए झारखंड पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा का निर्माण हुआ था, लेकिन ये दल मुख्यधारा के दल नहीं हुआ करते थे। कांग्रेस के बाद जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी वहां मुख्य विपक्ष हुआ करती थी। पर मंडल आंदोलन के बाद कांग्रेस वहां अपना आधार खोती गई और उसकी कीमत पर झारखंड नाम रखने वाली पार्टियां वहां आदिवासियों को अपनी ओर आकर्षित करने लगीं।
झारखंड प्रदेश के निर्माण के बाद तो कांग्रेस की स्थिति और भी बिगड़ गई और वह वहां की प्रमुख राजनैतिक खिलाड़ी भी नहीं रह गई थी। उसे झारखंड मुक्ति मोर्चा की शरण में भी जबतब जाना पड़ा। लेकिन कोलेबिरा विधानसभा के उपचुनाव का संकेत यही है कि कांग्रेस अब अपना पुराना जनाधार प्राप्त करने लग गई है। इसका कारण क्षेत्रीय वंशवादी परिवारवादी दलों से लोगों का हो रहा मोहभंग है। तीन हिन्दी राज्यों मे कांग्रेस की सरकार बनने के बाद राजनैतिक पर्यवेक्षक अब दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस हिन्दी प्रदेशों में खोया हुआ अपना पुराना जनाधार वापस पाने की ओर अग्रसर है। कोलेबिरा का नतीजा उनके दावे की पुष्टि ही करता है। (संवाद)
कोलेबिरा उपचुनाव में कांग्रेस की जीत
क्या कांग्रेस हिन्दी क्षेत्र में अपना जनाधार वापस पा रही है?
उपेन्द्र प्रसाद - 2018-12-26 13:57
एक उपचुनाव के नतीजे को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाना चाहिए। इसलिए यदि झारखंड के कोलेबिरा विघानसभा क्षेत्र में कांग्रेस की जीत से कोई खास निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए। लेकिन यह उपचुनाव एक विशेष माहौल में हुआ था। इस उपचुनाव के मतदान के कुछ दिन पहले ही तीन हिन्दी प्रदेशों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आए थे और तीनों में भारतीय जनता पार्टी पराजित हुई थी और कांग्रेस ने जीत हासिल की थी।