युवा शक्ति का आव्हान करते हुए उन्होंने एक मंत्र दिया था, ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत’ अर्थात् ‘उठो, जागो और तब तक मत रूको, जब तक कि मंजिल प्राप्त न हो जाए।’ ऐसा अनमोल मूलमंत्र देने वाले स्वामी विवेकानंद ने सदैव अपने क्रांतिकारी और तेजस्वी विचारों से युवा पीढ़ी को ऊर्जावान बनाने, उसमें नई शक्ति एवं चेतना जागृत करने और सकारात्कमता का संचार करने का कार्य किया। युवाओं को उन्होंने धैर्य, व्यावहारिक शुद्धता, पक्षपात न करने, आपस में न लड़ने तथा सदैव संघर्षरत रहने का संदेश दिया। युवाओं को प्रेरित करते हुए वह कहा करते थे कि हमारे देश को नायकों की जरूरत हैं, अतः नायक बनो। तुम्हारा कर्तव्य हैं काम करते जाओ और फिर सभी तुम्हारा खुद अनुसरण करेंगे। उनका दर्शन, उनके सिद्धांत, उनके अलौकिक विचार और उनके आदर्श ऐसे हैं, जिनका उन्होंने स्वयं तो पालन किया ही, विश्व के अन्य देशों में भी उन्हें स्थापित किया। उनके यही अनमोल विचार और आदर्श न सिर्फ युवा वर्ग के लिए प्रेरणास्रोत हैं बल्कि दुनिया भर के करोड़ों लोगों का जीवन दर्शन बन गए हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1984 में जब ‘अंतर्राष्ट्रीय युवा वर्ष’ की घोषणा की गई और 12 अगस्त को यह दिवस मनाने का निर्णय लिया गया, तब युवा शक्ति को समर्पित इस दिवस की महत्ता समझते हुए भारत सरकार द्वारा भी 12 जनवरी 1985 से प्रतिवर्ष स्वामी विवेकानंद की जयंती को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाए जाने का निर्णय लिया गया। दरअसल सरकार का मानना था कि स्वामी विवेकानंद का दर्शन और उनके आदर्श देश के युवाओं के लिए प्रेरणा का बहुत बड़ा स्रोत हो सकते हैं। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अपने एक वक्तव्य में स्वामी जी को आधुनिक भारत का निर्माता कहा था जबकि नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा था कि यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए क्योंकि उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।

12 जनवरी 1863 को कोलकाता में जन्मे स्वामी विवेकानंद एक ऐसे महान व्यक्तित्व थे, जिनकी ओजस्वी वाणी सदैव युवाओं के लिये प्रेरणास्रोत बनी रही। उन्होंने देश को सुदृढ़ बनाने और विकास पथ पर अग्रसर करने के लिए हमेशा युवा शक्ति पर भरोसा किया। युवा वर्ग से उन्हें बहुत उम्मीदें थीं और युवाओं की अहम् भावना को खत्म करने के उद्देश्य से ही उन्होंने अपने एक भाषण में कहा भी था कि यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खड़े हो जाओगे तो तुम्हें सहायता देने के लिए कोई भी आगे नहीं बढ़ेगा। इसलिए यदि सफल होना चाहते हो तो सबसे पहले अपने अहम् का नाश कर डालो।

जब भारत पराधीन था और लोग अंग्रेजों के जुल्मों से कराह रहे थे, तब स्वामी विवेकानंद ने अपने ओजस्वी भाषणों से देशवासियों की सुप्त अंतर्चेतना को जगाते हुए उनमें नई ऊर्जा और उमंग का संचार किया। मद्रास में 1897 में अपने ऐसे ही एक भाषण में युवाओं को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि हम महान विजेता रह चुके हैं और हमारी विजय गाथा को सम्राट अशोक ने धर्म व आध्यात्मिकता की ही विजयगाथा बताया था और अब समय आ गया है कि भारत फिर से विश्व पर विजय प्राप्त करे। उनका कहना था कि हमारे सामने एक ही महान आदर्श है और वह है भारत की विश्व पर विजय, हर किसी को इसके लिए तैयार रहना चाहिए। इससे कम कोई लक्ष्य या आदर्श नहीं चलेगा। अतः उठो भारत, तुम अपनी आध्यात्मिक शक्ति द्वारा विजय प्राप्त करो। उन्होंने कहा था कि उनकी आशाएं देश के युवा वर्ग पर ही टिकी हुई हैं।

11 सितम्बर 1893 को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म पर अपने प्रेरणात्मक भाषण की शुरूआत उन्होंने ‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों’ के साथ की तो बहुत देर तक तालियों की गड़गड़ाहट होती रही। अपने उस भाषण के जरिये उन्होंने दुनियाभर में भारतीय अध्यात्म का डंका बजाया। विदेशी मीडिया और वक्ताओं द्वारा भी स्वामीजी को धर्म संसद में सबसे महान व्यक्तित्व और ईश्वरीय शक्ति प्राप्त सबसे लोकप्रिय वक्ता बताया जाता रहा। यह स्वामी विवेकानंद का अद्भुत व्यक्तित्व ही था कि वे यदि मंच से गुजरते भी थे तो तालियों की गड़गड़ाहट होने लगती थी। उन्होंने 1 मई 1897 को कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन तथा 9 दिसंबर 1898 को कलकत्ता के निकट गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। 4 जुलाई 1902 को इसी रामकृष्ण मठ में ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण किए वे चिरनिद्रा में लीन हो गए।

युवा शक्ति का आव्हान करते हुए स्वामी विवेकानंद ने अनेक मूलमंत्र दिए, जो देश के युवाओं के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बने रहेंगे। उनका कहना था, ‘‘ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से ही हमारी हैं। वो हम ही हैं, जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है। मेरा विश्वास युवा पीढ़ी में है, आधुनिक पीढ़ी से मेरे कार्यकर्ता आ जाएंगे। डर से भागो मत, डर का सामना करो। यह जीवन अल्पकालीन है, संसार की विलासिता क्षणिक है लेकिन जो दूसरों के लिए जीते हैं, वे वास्तव में जीते हैं। जो भी कार्य करो, वह पूरी मेहनत के साथ करो। दिन में एक बार खुद से बात अवश्य करो, नहीं तो आप संसार के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति से मिलने से चूक जाओगे। उच्चतम आदर्श को चुनो और उस तक अपना जीवन जीयो। सागर की तरफ देखो, न कि लहरों की तरफ। महसूस करो कि तुम महान हो और तुम महान बन जाओगे। काम, काम, काम, बस यही आपके जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। धन पाने के लिए कड़ा संघर्ष करो पर उससे लगाव मत करो। जो गरीबों में, कमजोरों में और बीमारियों में शिव को देखता है, वो सच में शिव की पूजा करता है। पृथ्वी का आनंद नायकों द्वारा लिया जाता है, यह अमोघ सत्य है, अतः एक नायक बनो और सदैव कहो कि मुझे कोई डर नहीं है। मृत्यु तो निश्चित है, एक अच्छे काम के लिए मरना सबसे बेहतर है। कुछ सच्चे, ईमानदार और ऊर्जावान पुरुष और महिलाएं एक वर्ष में एक सदी की भीड़ से अधिक कार्य कर सकते हैं। विश्व एक व्यायामशाला है, जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं। (संवाद)