पिछले एक दशक से कांग्रेस में गुटबंदी की बात को जोर-शोर से उठाने वाली भाजपा में खुले तौर पर गुटबंदी नहीं दिख रही है, लेकिन अंदरुनी तौर पर शह-मात का खेल चलने लगा है। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में हार की जिम्मेदारी अकेले शिवराज सिंह चौहान को लेनी पड़ी और उसके बाद प्रदेश भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं की अलग-अलग राग में बयानबाजी होने लगी। कुछ नेताओं को यह उम्मीद थी कि संख्या बल में कांग्रेस से थोड़ा ही पीछे रह जाने के बाद भी वे विधानसभा के अध्यक्ष पद के चुनाव में कांग्रेस को हरा सकते हैं। बहुत ही अनमनेपन से भाजपा ने अध्यक्ष पद के लिए विजय शाह को अपना उम्मीदवार बना दिया। लेकिन भाजपा अपनी ही बनाई रणनीति में उलझ गई और 15वीं विधानसभा के पहले ही सत्र में भाजपा को कांग्रेस से शिकस्त झेलनी पड़ी। एक मजबूत विपक्ष की भूमिका के बजाय भाजपा पहले ही सत्र में कमजोर साबित हो गई।

मध्यप्रदेश में पिछले तीन दशक से विधानसभा अध्यक्ष सत्ता पक्ष से और उपाध्यक्ष विपक्ष से बनते आए हैं, लेकिन इस बार यह परंपरा टूट गई और विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों ही पद पर कांग्रेस के सदस्य काबिज हो गए। विधानसभा में इस प्रदर्शन के बाद प्रदेश भाजपा की आंतरिक गुटबाजी बाहर आने की अटकलें लगाई जाने लगी है। जो भाजपा पिछले 15 साल से मजबूत और अपराजेय दिख रही थी, उसे आगामी लोकसभा में खराब प्रदर्शन का भय सताने लगा है।

मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष पद के लिए रणनीति बनाने में जिन नेताओं ने पहल की, वे विधानसभा चुनाव में मिली हार को पचा नहीं पा रहे हैं। यहां तक कि पहले ही दिन से शिवराज सिंह चौहान ने कहना शुरू कर दिया कि भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले हैं, लेकिन नंबर में पिछड़ जाने के कारण सरकार नहीं बना पाई। इसके बाद भाजपा के कई नेताओं ने यह कहना शुरू कर दिया कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की अल्पमत की सरकार है। भाजपा के कई नेताओं की लगातार कोशिश रही कि बहुमत से दो सीट पीछे रह गई कांग्रेस को किसी तरह से पटखनी दी जाए। चूंकि मंत्रीमंडल के गठन में कांग्रेस के कई विधायकों के साथ-साथ बसपा, सपा और निर्दलीय विधायकों ने नाखुशी जाहिर की थी। इससे भाजपा के कई नेता उत्साहित हो गए और उन्हें लगा कि असंतुष्टों को अपनी ओर मिलाकर कांग्रेस को विधानसभा में मात दी जा सकती है।

भाजपा की यह रणनीति फेल हो गई। यहां तक कि भाजपा पर हाॅर्स ट्रेडिंग की कोशिश के आरोप भी कांग्रेस ने लगा दिया। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने बताया कि भाजपा हॉर्स ट्रेडिंग करना चाह रही थी और उसने कई विधायकों को 50 से 100 करोड़ रुपए और मंत्री पद का ऑफर दिया था। कांग्रेस विधायक ने भी कहा कि उन्हें ऑफर मिला था। भाजपा इसे नकारती रही। भाजपा नेताओं की इस रणनीति में भाजपा ने विधानसभा उपाध्यक्ष का पद खो दिया। भाजपा में नेता प्रतिपक्ष को लेकर भी काफी खिंचतान हुई। पूर्व मुख्यमंत्री इस पद पर काबिज होना चाहते थे, लेकिन उनकी मंशा पूरी नहीं हो पाई। यद्यपि नेता प्रतिपक्ष के रूप में गोपाल भार्गव के चुन लिए जाने के बाद भी सदन में श्री चौहान नेता प्रतिपक्ष के लिए निर्धारित सीट पर बैठते रहे। जब सत्ता पक्ष ने इस ओर ध्यान दिलाया, तो उन्होंने अपनी सीट बदल ली।

सत्ता में रहते हुए भाजपा ने सदन में तत्कालीन विपक्षी पार्टी कांग्रेस के खिलाफ कई मास्टर स्ट्रोक लगाए, लेकिन विपक्ष में रहते हुए वह ऐसा नहीं कर पाई। विधानसभा में श्री चौहान हर मामले में लीड लेने की कोशिश करते रहे और अपनी सक्रियता दिखाते रहे, लेकिन नेता प्रतिपक्ष के कई दावेदार नेता सदन में सक्रिय नजर नहीं आए। इसे गुटबाजी की शुरुआत मानी जा रही है। विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद सदन के भीतर भी अकारण शक्ति प्रदर्शन में मात खाने के बाद भाजपा मनोवैज्ञानिक रूप से भी अब कांग्रेस पर हावी नहीं रह पाएगी। ऐसे में महज तीन महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव उसके लिए ज्यादा मुश्किल भरा होगा। (संवाद)