दिसंबर 2008 में बीमा (संशोधन) विधेयक 2008 संसद में पेश किया गया था। यूपीए सरकार के पिछले कार्यकाल मे तो उसपर मामला आगे नहीं बढ़ा था, लेकिन उम्मीद की जा रही थी कि दुबारा सत्ता में आई सरकार संसद के पहले ही स़त्र में उसे संसद से पेश करवा देगी। अब बजट सत्र चल रहा है, लेकिन उस दिशा में प्रगति होने के आसार धूमिल हो गए हैं, क्योंकि केन्द्र सरकार के ख्लिाफ विपक्षी एकता बढ़ गई है। भाजपा और बामपंथी पार्टियां दोनों मह्रगाई के मसले पर केन्दग सरकार के खिलाफ एक साथ खड़े हो गए हैं। महिला संसद विधेयक का विरोध करते करते लालू मुलायम तो केन्द्र सरकार से समर्थन वापस लेने की बात भी करने लगे हैं।
जहां तक बीमा कानून संशोधन विधेयक की बात है, तो उस पर तृणमूल कांग्रेस और डीएमके दोनों सहमत नहीं दिखाई देते। बीमा कानून में संशोधन कर केन्द्र सरकार विदेशी निवेश की वर्तमान सीमा को 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी करना चाहती है। डीएमके और तृणमूल ने उसपर अपना विरोध जता दिया है। भाजपा और वामपंथी दलों के सांसदों ने भी वित्तीय मंत्रालय की स्थाई समिति की पिछली बैठक में इस संशोधन विधेयक के ख्लिाफ अपना विरोध जाहिर किया था। अगली बैठक में उनके विचार बदलेंगे, इसकी संभावना बहुत कम है।
कुछ समय पहले केन्द्र सरकार भाजपा के साथ बातचीत कर इस मसले पर उसका समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही थी। सरकार मुख्य विपक्षी दल को याद दिला रही थी कि वाजपेयी सरकार के समय वह भी इस विधेयक को पास करना चाहती थी। लेकिन भाजपा नेताओं ने केन्द्र सरकार की बातें मानने से इनकार कर दिया। वे केन्द्र के साथ इस मसले पर अपने आपको खड़ा नहीं देखना चाहते हैं। मुरली मनोहर जोशी वित्त मंत्रालय की स्थाई समिति के अध्यक्ष हैं। उन्होंने दो टुक शब्दों में इस मसले पर अपना विरोध जाहिर कर दिया है। इसलिए आने वाले दिनों में सरकार भाजपा के साथ इस मसले पर कोई बातचीत करने वाली भी नहीं है।
सीपीआई नेता और वित्तीय मंत्रालय की स्थाई समिति के सदस्य गुरुदास दासगुप्ता ने बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा वर्तमान 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी करने का साफ विरोध किया है। उनका कहना है कि विश्व आर्थिक मंदी के समय बहुराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की स्थिति खराब रही। अनेक तो अपने आपको बचा भी नहीं सके, जबकि भारत के सरकारी क्षेत्र की बीमा कंपनियों का रिकार्ड बहुत अच्छा रहा। इसलिए वे बीमा कंपनियों में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाने का समर्थन नहीं कर सकते। (संवाद)
वित्तीय सुधार विधेयकों पर धीरे चलेगी सरकार
विपक्ष की एकता ने सरकार को मुश्किल में डाला
नित्य चक्रवर्ती - 2010-03-11 09:43
नई दिल्लीः बढ़ती कीमतों के मसले पर विपक्षी दलों में आई एकता ने केन्द्र सरकार को चिंता में डाल दिया है और उसके कारण वित्तीय सुधारों का उसका इरादा खटाई में पड़ता दिख रहा है। घरेलू एवं विदेशी स्रोतों से विदेशी निवेश हासिल करने के लिए केन्द्र सरकार वित्तीय क्षेत्रों में सुधार का इरादा रखती थी। मनमोहन सिंह की सरकार अपनी पहली पाली में उन सुधारों पर आगे नहीं बढ़ पाई थी, क्योंकि तब उसके समर्थक वामपंथी दल उसे उनपर आगे नहीं बढ़ने दे रहे थे। लेकिन अब बढ़ती कीमतों के मसले पर विपक्षी दलों में पैदा हुई एकता ने उसका काम कठिन कर दिया है।