खुद सोनिया गांधी ने दिसंबर 2017 की शुरुआत में अपनी सेवानिवृत्ति की घोषणा की थी, जब उन्होंने कहा था, ‘मेरी भूमिका सेवानिवृत्त होने की है।’ हालांकि वह तब से लो प्रोफाइल रख रही हैं और किसी भी विवाद के मामले में अंतिम मध्यस्थ के रूप में अपनी भूमिका निभाती है। बहुतों को उम्मीद थी कि वह इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगीं। इसके विपरीत, उनका नाम उत्तर प्रदेश के उम्मीदवारों की पहली सूची में है। रायबरेली से उनकी उम्मीदवारी साबित करती है कि कांग्रेस अभी सोनिया के बिना नहीं रह सकती, क्योंकि यह माना जा रहा है कि सोनिया गांधी अभी भी वोट दिलाने की क्षमता रखती हैं।
सोनिया 2016 में 70 साल की उम्र में राजनीति से पूर्ण सेवानिवृत्ति का विचार कर रही हैं। कहा जाता है कि उन्होंने अपने करीबी लोगों के साथ अपनी योजनाओं को साझा किया है। हालांकि, पार्टी ने उन पर दबाव डाला और कहा कि वे राजनीति में सक्रियता बनाए रखें और तबतक राजनीति में बनी रहें, जबतक राहुल गांधी खुद को पार्टी प्रमुख के रूप में अपने आपको स्थापित न कर लें। पिछले एक साल से उन्होंने पार्टी के नेताओं से मिलना बंद कर दिया है और मिलने की इच्छा रखले वालों को कहते हैं कि वे राहुल से बात करें। पिछले एक साल में उनकी सार्वजनिक उपस्थिति काफी कम हो गई है। उन्होंने पिछले साल पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में प्रचार नहीं किया था। पिछले दिसंबर में तेलंगाना विधानसभा चुनाव से पहले उनकी आखिरी चुनावी रैली हैदराबाद में थी। उसने दिन-प्रतिदिन की पार्टी गतिविधियों से खुद को पूरी तरह अलग कर लिया है। हालाँकि, पुलवामा और बालाकोट हवाई हमले और वर्तमान राजनीतिक स्थिति ने उन्हंे सेवानिवृत्ति की अपनी योजना को बदलने के लिए मजबूर कर दिया है और इसलिए वह रायबरेली से दोबारा नामांकन कर रही है।
सोनिया गांधी उस राजनीतिक नौसिखिया थीं, जब 1998 में उन्होंने कांग्रेस की अध्यक्षता संभाली थी लेकिन वह जल्द ही बड़े राष्ट्रीय नेताओं में शुमार हो गईं। उन्होंने पार्टी के साथ-साथ राष्ट्रीय परिदृश्य में भी अपने लिए जगह बनाई है। वह 19 साल तक सबसे लंबे समय के लिए पार्टी अध्यक्ष रहीं। उनके नेतृत्व में पार्टी ने 2004 और 2009 में लोकसभा चुनाव जीते। उन्हें पार्टी को एकजुट रखने के लिए एक ताकत के रूप में देखा जाता है। कांग्रेस अपने युवा और पुराने गार्ड के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए उनके अनुभव और परिपक्व मार्गदर्शन पर निर्भर कर रही है। पुराने गार्ड का दबाव भी सोनिया के चुनाव लड़ने का एक कारण है। हालांकि राहुल गांधी ने पुराने गार्ड को समायोजित किया है, लेकिन उन्हें लगता है कि सैम पित्रोदा के साथ मिलकर प्रवीण चक्रवर्ती और जयराम रमेश जैसे लोग उन्हें अलग थलग करने में लगे हुए हैं।
सोनिया की सेवानिवृत्ति योजनाएँ कभी भी अंतिम नहीं थीं। यहां तक कि दिसंबर 2017 में पार्टी राहुल को सौंपने के समय भी कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि सोनिया केवल पार्टी अध्यक्ष के रूप में अपनी भूमिका से सेवानिवृत्त होंगी और राजनीति से नहीं। सुरजेवाला ने ट्विटर पर पोस्ट किया, ‘कांग्रेस की विचारधारा के लिए उनका आशीर्वाद, ज्ञान और सहज प्रतिबद्धता हमेशा हमारी मार्गदर्शक बन जाएगी।’
दूसरे, अन्य विपक्षी दलों से निपटने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है क्योंकि शरद पवार, ममता बनर्जी, सीताराम येचुरी जैसे नेता अभी भी उनका सम्मान करते हैं। कई सहयोगी और संभावित सहयोगी राहुल गांधी के बजाय उनके साथ बातचीत करना पसंद करेंगे। 2004 और 2009 में यूपीए को एक साथ रखने की उनकी क्षमता उनके बातचीत कौशल का प्रमाण है। इसलिए पार्टी चाहेगी कि वह गठबंधन बनाने की भूमिका निभाए।
तीसरा, उन्होंने सक्रिय राजनीति में अपनी बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा को भी लॉन्च किया है। पुलवामा और बालाकोट हवाई हमले के बाद उसकी नाटकीय प्रविष्टि बाधित हुई थी। हालांकि ऐसी अफवाहें थीं कि सोनिया सेवानिवृत्त होंगी और प्रियंका रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी, लेकिन अब ऐसा प्रतीत होता है कि प्रियंका केवल प्रचार के लिए काम करेंगी और पार्टी को मजबूत करने का काम करेंगी। प्रियंका को भी अपनी मां के साथ की जरूरत है। यह सुनिश्चित करना सोनिया का उद्देश्य है कि उनके दो बच्चे मिलकर काम करें और पार्टी को आगे ले जाएं।
इसलिए, सोनिया पार्टी की संरक्षक और रानी मां के रूप में भी कांग्रेस संसदीय दल की नेता और यूपीए अध्यक्ष के रूप में बनी हुई हैं। कांग्रेस को अब हर वोट और हर सीट से ज्यादा उनकी जरूरत है। (संवाद)
2019 के चुनाव में कांग्रेस को सोनिया की जरूरत
कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा के सेवानिवृत होने का यह सही समय नहीं
कल्याणी शंकर - 2019-03-13 19:40
अपना छठा लोकसभा चुनाव जीतने के लिए पूरी तरह तैयार, 72 वर्षीय कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा सोनिया गांधी के एक बार फिर चुनाव लड़ने पर चल रही अटकलबाजी से समाप्त हो गई है। पिछले एक साल से अफवाहें चल रही थीं कि सोनिया गांधी अपनी अस्वस्थता के कारण सक्रिय राजनीति से हट गई हैं और अपना चार्ज अपने बेटे को पूरी तरह दे चुकी हैं। यह भी कहा जा रहा था कि अपने बेटे राहुल को तो उन्होंने अध्यक्ष पद दे ही दिया है और अब उनकी बेटी प्रियंका गांधी भी सक्रिय राजनीति मंे आ गइ्र हैं, तो फिर अब सोनिया राजनीति को अलविदा कह देंगी।