हाल ही में जारी ‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट-2019’ में भारत को 140वां स्थान मिला है। पिछले वर्ष भारत का स्थान 133वां था और उससे पहले 122 वां था। इस बार सर्वे में शामिल 156 देशों में भारत का स्थान इतना नीचे है, जितना कि अफ्रीका के कुछ बेहद पिछडे देशों का है। हैरान करने वाली बात यह है कि इस सूचकांक में चीन (93) जैसा सबसे बडी आबादी वाला देश ही नहीं बल्कि पाकिस्तान (67), भूटान (95) , बांग्लादेश (125), और श्रीलंका (130) जैसे छोटे-छोटे पडोसी देश भी खुशहाली के मामले में भारत से ऊपर हैं। यानी इन देशों के नागरिक भारतीयों के मुकाबले ज्यादा खुश हैं।

‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट’ संयुक्त राष्ट्र का एक संस्थान ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क’ (एसडीएसएन) हर साल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वे करके जारी करता है। इसमें अर्थशास्त्रियों की एक टीम समाज में सुशासन, प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य, जीवित रहने की उम्र, दीर्घ जीवन की प्रत्याशा, भरोसेमंदी, सामाजिक सहयोग, स्वतंत्रता, उदारता आदि पैमानों पर दुनिया के सारे देशों के नागरिकों के इस अहसास को नापती है कि वे कितने खुश हैं। इसमें इस बात पर भी गौर किया जाता है कि सारे देशों के नागरिकों में चिंता, उदासी और क्रोध सहित नकारात्मक भावनाओं में कितनी वृद्धि हुई है।

इस साल जो ‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट’ जारी हुई है, उसके मुताबिक भारत उन चंद देशों में से है, जो नीचे की तरह खिसके हैं। हालांकि भारत की यह स्थिति खुद में कोई चैंकाने वाली नहीं है। लेकिन यह बात जरूर गौरतलब है कि कई बडे देशों की तरह हमारे देश के नीति-नियामक भी आज तक इस हकीकत को गले नहीं उतार पाए हैं कि देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) या विकास दर बढा लेने भर से हम एक खुशहाल समाज नहीं बन जाएंगे। यह गुत्थी भी कम दिलचस्प नही है कि पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान और श्रीलंका जैसे देश इस रिपोर्ट मंे आखिर हमसे ऊपर क्यों हैं, जिन्हें हम स्थायी तौर आपदाग्रस्त देशों में ही गिनते हैं। यहां तक कि लगातार युद्ध से आक्रांत फिलिस्तीन और अकाल और भुखमरी से पीडित सोमालिया भी इस सूची में भारत से बेहतर स्थिति में हैं। सार्क देशों में सिर्फ अफगानिस्तान ही खुशमिजाजी के मामले में भारत से पीछे है। दिलचस्प बात है कि छह साल पहले यानी 2013 की रिपोर्ट में भारत 111वें नंबर पर था। तब से अब तक हमारे शेयर बाजार तो लगभग लगातार ही चढते जा रहे हैं, फिर भी इस दौरान हमारी खुशी का स्तर नीचे खिसक आने की वजह क्या हो सकती है?

दरअसल, यह रिपोर्ट इस हकीकत को भी साफ तौर पर रेखांकित करती है कि केवल आर्थिक समृद्धि ही किसी समाज मे खुशहाली नहीं ला सकती। इसीलिए आर्थिक समृद्धि के प्रतीक माने जाने वाले अमेरिका (19), ब्रिटेन (15) और संयुक्त अरब अमीरात भी इस साल दुनिया के सबसे खुशहाल 10 देशों में अपनी जगह नहीं बना पाए हैं। अगर इस रिपोर्ट को तैयार करने के तरीकों और पैमानों पर सवाल खडे किए जाएं, तब भी कुछ सोचने का मसाला तो इस रिपोर्ट से मिलता ही है। किसी भी देश की तरक्की को मापने का सबसे प्रचलित पैमाना जीडीपी या विकास दर है। लेकिन इसे लेकर कई सवाल उठते रहे हैं। एक तो यह कि यह किसी देश की कुल अर्थव्यवस्था की गति को तो सूचित करता है, पर इससे यह पता नहीं चलता कि आम लोगों तक उसका लाभ पहुंच रहा है या नहीं। दूसरे, जीडीपी का पैमाना केवल उत्पादन-वृद्धि के लिहाज से किसी देश की तस्वीर पेश करता है।

ताजा ‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट’ में फिनलैंड दुनिया का सबसे खुशहाल मुल्क है। पिछले साल भी वह पहले स्थान पर था और उससे पहले 2017 में वह पांचवें स्थान पर था। फिनलैंड को दुनिया में सबसे स्थिर, सबसे सुरक्षित और सबसे सुशासन वाले देश का दर्जा दिया गया है। वह कम से कम भ्रष्ट और सामाजिक तौर पर प्रगतिशील है। उसकी पुलिस दुनिया में सबसे ज्यादा साफ-सुथरी और भरोसेमंद है। वहां हर नागरिक को मुफ्त इलाज की सुविधा प्राप्त है, जो देश के लोगों की खुशहाली की बडी वजह है।

वर्ष 2019 की रिपोर्ट में सबसे खुशहाल मुल्कों में फिनलैंड के बाद क्रमशः डेनमार्क, नार्वे, आइसलैंड, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, स्वीडन, न्यूजीलैंड, कनाडा और आस्ट्रेलिया का नंबर है। इन सभी देशों में प्रति व्यक्ति आय काफी ज्यादा है। यानी भौतिक समृद्धि, आर्थिक सुरक्षा और व्यक्ति की प्रसन्नता का सीधा रिश्ता है। इन देशों में भ्रष्टाचार भी कम है और सरकार की ओर से सामाजिक सुरक्षा काफी है। लोगों पर आर्थिक सुरक्षा का दबाव कम है, इसलिए जीवन के फैसले करने की आजादी भी ज्यादा है। जबकि भारत की स्थिति इन सभी पैमानों पर बहुत अच्छी नहीं है। फिर भी हम पाकिस्तान, बांग्लादेश और ईरान से भी बदतर स्थिति में हैं, यह बात हैरान करने वाली है। लेकिन इस हकीकत की वजह शायद यह है कि भारत में विकल्प तो बहुतायत में हैं लेकिन सभी लोगों की उन तक पहुंच नहीं है, जिसकी वजह से लोगों में असंतोष है। इस स्थिति के बरक्स कई देशों में जो सीमित विकल्प उपलब्ध है उनके बारे में भी लोगों को ठीक से जानकारी ही नहीं है, इसलिए वे अपने सीमित दायरे में ही खुश और संतुष्ट हैं। फिर भारत में तो जितनी आर्थिक असमानता है, वह भी लोगों में असंतोष या मायूसी पैदा करती है। मसलन, भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च ज्यादा होता है, पर स्वास्थ्य के मानकों के आधार पर पाकिस्तान और बांग्लादेश हमसे बेहतर स्थिति में है। दरअसल किसी देश की समृद्धि तब मायने रखती है जब वह नागरिकों के स्तर पर हो। जबकि भारत और चीन का जोर आम लोगों की खुशहाली के बजाय राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ाने पर रहता है। इसलिए आश्चर्य की बात नही कि लंबे समय से जीडीपी के लिहाज से दुनिया में अव्वल रहने के बावजूद चीन ‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट’ में 93वें स्थान पर है। (संवाद)