सच यह है कि इस विधेयक को अब तक कभी भी बहुमत का समर्थन हासिल ही नहीं था। कम्युनिस्ट पार्टियों को छोड़कर किसी भी पार्टी के बहुसंख्यक विधायकों अथवा सांसदों का समर्थन इसे कभी भी हासिल नहीं था। इसका कारण कोई विचारधारा नहीं, बल्कि सांसदों और विधायकों का शुद्ध स्वार्थ रहा है। लालू, मुलायम और शरद यादव का विरोध भी पिछड़े अथवा मुस्लिमों के प्रति किसी प्रेम का नतीजा नहीं था, बल्कि उनकी यह सोच थी कि जिन सीटों से वे चुनाव लड़ते हैंण् यदि वे सीटें ही आरक्षित हो गई, तो फिर उनका क्या होगा। यही डर तमाम पुरुष सांसदों और विधायकों के मन में रहा है- चाहे वे कांग्रेस के हों या भाजपा अथवा किसी और पार्टी के। संभवतः कम्युनिस्ट पार्टियां इसका अपवाद रही हैं।
अब चूंकि लालू या मुलायम यह तो नहीं कह सकते थे कि इसके कारण उन्हें खुद की अपनी राजनीति पर खतरा लग रहा है, इसलिए उन्होंने पिठड़ा और मुस्लिम राग अलापना शुरू कर दिया और अन्य पार्टियों के विधायक सांसद यह मनौती मनाते रहे कि पिछड़े और मुसलमानों के नाम पर यह विधेयक कभी पारित ही नहीं हो। चूंकि उनका पार्टी नेतृत्व इसका समर्थन कर रहा था, इसलिए वे अपनी पार्टी के नेताओं की नजर में बुरे नहीं दिखना चाहते थे, क्योंकि वैसा होने से पार्टी का टिकट ही कठ जाने का खतरा था। इसलिए इस विधेयक पर चुप रहना और जरूरत पड़ने पर इसके समर्थन में कसीदे पढ़ना उनकी मजबूरी थी।
लेकिन अब जब महिला आरक्षण विधेयक हकीकत बनता जा रहा है, तो उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ दी है। अब महिला आरक्षण विधेयक का उनका विरोध मुखर हो गया है। उनके विरोध का सबसे ज्यादा असर भाजपा के नेतृत्व पर पड़ रहा है। कांग्रेस के सांसद भी इस विरोध में पीछे नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व भाजपा के नेतृत्व से ज्यादा मजबूत है और सोनिया गांधी का खौफ का्रग्रेसियो के ऊपर बहुत ही ज्यादा है, इसलिए वे मुखर नहीं हो रहे हैं। पहले व चसह रहे थे कि मुस्लिम और पिछड़े के शोर में महिला आरक्षण विधेयक दबकर रह जाए, अब वे चाह रहे हैं कि भाजपा सासंदों का विरोध महिला आरक्षण विधेयक की मौत का कारण बने। पहले काग्रेस और भाजपा के पुरुष सांसद लालू- मुलायम के पास जाकर उनको मुहिम जारी रखने की अपील करते थे अब कांग्रेसी सांसद भाजपा सांसदों के पास जाकर कह रहे हैं कि हम तो सरकारी पक्ष के हैं, अस विधेयक के खिलाफ कुछ बोल नहीं सकते, लेकिन आप तो बोल सकते हैं, क्योंकि आप विरोधी हैं।
लोकसभा में भाजपा के नेता सुषमा स्वराज ने कांग्रेसी सांसदों पर इस तरह का आरोप लगा भी दिया है। उन्होंने खुलेआम कहा है कि कांग्रेसी सांसद भाजपा सांसदों को महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करने के लिए भड़का रहे हैं। उन्होंने दो कांग्रेसी सांसद का नाम भी लिया है, जिन्होने भाजपा सांसदों को भड़काने का काम किया। एक सासद तो दिल्ली की कांग्रेसी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित ही हैं। उन्हें लग रहा है कि यदि उनकी संसदीय सीट पूर्वी दिल्ली यदि महिलाओं के लिए आरक्षित हो गई, तो उनका क्या होगा। यह असुरक्षा बोध एक ऐसे सांसद को है, जिनकी मां दिल्ली की मुख्यमंत्री और सोनिया गांधी की बेहद करीबी है, तो अंदाज लगया जा सकता है कि कांग्रेस के अन्य सांसदों को अपनी सीटों के आरक्षित होने का कितना खौफ सता रहा होगा।
भाजपा और कांग्रेस नेताओं को पहले से ही पता है कि उनके सांसदों का बहुमत महिला आरक्षण विधेयक के खिलाफ है। यही कारण है कि राज्य सभा में दोनों पार्टियों को व्हिप जारी कर अपने सांसदों को वोट देने के लिए बाघ्य करना पड़ा। इस तरह का व्हिप तभी जारी किया जाता है, जब सांसद अथवा विधायक के पार्टी लाइन से बाहर जाने का खतरा हो। दोनों के अलावा किसी अन्य पार्टी ने व्हिप जारी नहीं किया। कम्युनिस्ट सांसद तो पार्टी लाइन पर चलने में विश्वास रखते हैं, इसलिए उन्हें विहल की जरूरत नहीं पड़ती और राज्य सभा के अन्य छोटे मोटे दल पार्टी लाइन का उल्लंघन कर भी मतदान के नतीजों को प्रभावित नहीं कर सकते थे, इसलिए कांग्रेस और भाजपा के अलावा किसी अन्य पाटीै ने व्हिप जारी ही नहीं किया।
आरक्षण लोकसभा की सीटों का हो रहा है, इसलिए दांव पर लोकसभा के सांसद लगे हुए हैं। उन्हें ही यह विधेयक पारित करना है और उन्हें ही इससे प्रभावित भी होना है। लायम की भाषा में कहें तो लोकसभा सांसदों द्वारा महिला विधेयक के पक्ष मे मतदान करने का मतलब अपनी मौत के वारंट पर दस्तखत करना है। भाजपा के सांसद इसे आत्म हत्या कह रहे हैं। भाजपा के सांसद हुकुमदेव नारायण यादव ने कहा कि विधेयक के पक्ष में मतदान करना सुसायड करना है और व्हिप का उल्लंधन कर लोकसभा की अपनी सदस्यता गंवाना शहीद होना है। उन्होंने कहा कि सुसायड करने क बदले वे शहीद होना मंजूर करेंगे। भाजपा के चीफ व्हिप रमेश बैस यह कहते दिखाई पड़े कि भाजपा के 70 फीसदी सांसद इस विधेयक के खिलाफ हैं। गौरतब है कि चीफ व्हिप रमेश बैस को ही व्हिप जारी कर भाजपा सांसदों को यह कहना है कि विधेयक के पक्ष में मतदान करो।
सुषमा स्वराज को भी पता है कि उनकी पार्टी के ज्यादातर सांसद इस आरक्षण विधेयक के विरोधी हैं। इसलिए असंतोष उभरने के बाद घोषणा कर दी कि पार्टी का व्हिप जारी होगा और सभी पार्टी के व्हिप का पालन करते हुए विधेयक के पक्ष में मतदान करेेगे। सांसद आदित्यनाथ अपने क्षेत्र से चुनाव जीतने के लिए भाजपा के टिकट की परवाह नहीं करते। इसलिए उन्होंने कह दिया कि व्हिप का उल्लंधन करने में भी उन्हें कोई संकोच नहीं होगा। सवाल उठता है कि यदि सांसदों का बहुमत व्हिप का उल्लंधन करने के लिए आमादा होख् तो फिर व्हिप का मतलग ही क्या रह जाता है। यदि सांसदों का बहुमत चाहे तो अपने नेता ही बदल दें और अपने पक्ष के व्यक्ति को चीफ व्हिप बना दें और जो विधेयक के खिलाफ मतदान करने का व्हिप जारी करवा दें। जाहिर है व्हिप महिला आरक्षण विधेयक को पारित करवाने का कोई ठोस आधार नहीं है। अब विरोध सतह से नीचे उतर चुका है और महिला आरक्षध विधेयक का वर्तमान स्वरूप में पारित होकर कानून बनाना लगभग असंभव हो गया है। (संवाद)
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क्या हकीकत बन पाएगा महिला आरक्षण?
असली विरोध तो अब शुरू हुआ है
उपेन्द्र प्रसाद - 2010-03-13 09:14
महिला आरक्षण विधेयक को असली विरोध का सामना राज्य सभा से पारित होने के बाद करना पड़ रहा है। उसके पहले जो विराध हो रहा था, वह सतही था। इसके असली विरोधी चुपचाल तमाशा देख रहे थे और चाह रहे थे कि वह सतही विरोध की विधेयक पर भारी पड़ जाए और वह हकीकत नहीं अन पाए। पिछड़ों और मुसलमानों के हितों की दुहाई की आड़ में आरक्षण विरोधी अपने हित को साधने की फिराक मे थे। लेकिन जिस तरह से उस सतही विरोध को दरकिनार कर राज्य सभा से उस विधेयक को पारित कर दिया गया, उसी तरह से उसे लोकसभा में पारित किया जा सकता है। इस डर के बाद इस आरक्षण विधेयक का असली विरोध शुरू हो गया है। इसके साथ की महिला आरक्षण विधेयक को अब तक की सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।