ग्वाले की बात सुनकर भगवान महावीर दो क्षण के लिए वहीं रूक गए और अपने दोनों हाथ अभयसूचक मुद्रा में ऊपर उठा दिए, मानो वहां उपस्थित लोगों से कह रहे हों कि तुम लोग घबराओ नहीं, चिन्ता छोड़ दो। उसके बाद वे शांत एवं निश्चिन्त भाव से आगे चल पड़े। वहां उपस्थित लोगों ने भगवान महावीर को समझाने का लाख प्रयत्न किया और उन्हें आगे जाने से रोकना चाहा लेकिन भगवान महावीर अपनी ही धुन में मस्त आगे बढ़ते गए।

चण्डकौशिक नामक उस भयानक काले नाग, जिसके बारे में ग्वाले ने भगवान महावीर को बताया था, की बांबी के पास एक बहुत प्राचीन देवालय था। भगवान महावीर सीधे वहीं पहुंचे और वहीं पर ध्यानमग्न हो गए। कुछ देर बाद जब वह काला नाग जंगल में घूमने के पश्चात् लौटकर अपनी बांबी में आया तो उसने बांबी के पास एक मनुष्य को निश्चिन्त भाव से देवालय में ध्यानमग्न देखा। यह देखकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि उसके भय से कोई भी प्राणी इस क्षेत्र में आने से घबराता था।

नागराज को भगवान महावीर पर बहुत क्रोध आया और मारे क्रोध के वह जोर-जोर से फुफकारने लगा। उसने गुस्से में भरकर अपनी विषमयी दृष्टि से महावीर की ओर देखा तो उसकी आंखों से विषमयी ज्वालाएं निकलने लगी किन्तु यह क्या, नागराज की आंखों से निकल रही तीव्र विषमयी ज्वालाओं का भगवान महावीर पर कोई असर नहीं हो रहा था। अगर कोई और प्राणी होता तो इतनी देर में तो वह जलकर खाक हो जाता।

अब तो नागराज का क्रोध और बढ़ गया और उसने महावीर पर बार-बार प्रहार करने शुरू कर दिए लेकिन फिर भी महावीर पर कोई असर न पड़ते देख नागराज ने भगवान महावीर के पैर के अंगूठे में तीव्र दंश मारा। अब तो नागराज के आश्चर्य की सीमा न रही क्योंकि इस दंश से महावीर पर कोई प्रभाव पड़ने के बजाय महावीर के पैर के अंगूठे से दूध की धारा फूट पड़ी।

जब नागराज भगवान महावीर को विचलित करने और उन्हें भस्मसात् करने की अपनी सारी कोशिशें करके थक गया और भगवान महावीर का बाल भी बांका न कर सका तो भगवान महावीर ने अपनी आंखें खोली और नागराज को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘हे चण्डकौशिक! अब तो तुम शांत हो जाओ और अपना क्रोध शांत करो।’’

भगवान महावीर के मुख से अमृतमयी वचन सुनते ही मानो जादू हो गया और चण्डकौशिक नामक उस भयानक काले नाग का सारा क्रोध उसी क्षण पानी-पानी हो गया। भगवान महावीर की कृपा दृष्टि से उसे अपने पूर्वजन्मों का स्मरण हो आया कि किस प्रकार उसने अपने क्रोध के कारण ही पूर्व जन्मों में भी काफी भयंकर कष्ट झेले थे। वह शांत भाव से अब भगवान महावीर के चरणों में लोट गया और उनसे क्षमायाचना करने लगा। जब दूर से गांव वालों ने यह अद्भुत दृश्य देखा तो उनके आश्चर्य का पारावर न रहा और सभी भगवान महावीर का गुणगान करने लगे।

भगवान महावीर ने जीवन पर्यन्त अपने अमृत वचनों से समस्त मानव जाति को ऐसी अनुपम सौगात दी, जिन पर अमल करके मानव चाहे तो इस धरती को स्वर्ग बना सकता है। प्रस्तुत हैं उनके ऐसे ही कुछ अमृत वचन:-

- संसार के सभी प्राणी बराबर हैं, अतः हिंसा को त्यागिए और ‘जीओ व जीने दो’ का सिद्धांत अपनाइए।

- जिस प्रकार अणु से छोटी कोई वस्तु नहीं और आकाश से बड़ा कोई पदार्थ नहीं, उसी प्रकार अहिंसा के समान संसार में कोई महान् व्रत नहीं।

- जो मनुष्य स्वयं प्राणियों की हिंसा करता है या दूसरों से हिंसा करवाता है अथवा हिंसा करने वालों का समर्थन करता है, वह जगत में अपने लिए बैर बढ़ाता है।

- धर्म उत्कृष्ट मंगल है और अहिंसा, तप व संयम उसके प्रमुख लक्षण हैं। जिन व्यक्तियों का मन सदैव धर्म में रहता है, उन्हें देव भी नमस्कार करते हैं। जो लोग कष्ट में धैर्य को स्थिर नहीं रख पाते, वे अहिंसा की साधना नहीं कर सकते। अहिंसक व्यक्ति तो अपने से शत्रुता रखने वालों को भी अपना प्रिय मानता है।

- मानव व पशुओं के समान पेड़-पौधों, अग्नि, वायु में भी आत्मा वास करती है और पेड़ पौधों में भी मनुष्य के समान दुख अनुभव करने की शक्ति होती है।

- संसार में प्रत्येक जीव अवध्य है, इसलिए आवश्यक बताकर की जाने वाली हिंसा भी हिंसा ही है और वह जीवन की कमजोरी है, वह अहिंसा कभी नहीं हो सकती।

- छोटे-बड़े किसी भी प्राणी की हिंसा न करना, बिना दी गई वस्तु स्वयं न लेना, विश्वासघाती असत्य न बोलना, यह आत्मा निग्रह सद्पुरूषों का धर्म है।

- ज्ञानी होने का यही एक सार है कि वह किसी भी प्राणी की हिंसा न करे। यही अहिंसा का विज्ञान है।

- क्रोध प्रेम का नाश करता है, मान विषय का, माया मित्रता का नाश करती है और लालच सभी गुणों का। जो व्यक्ति अपना कल्याण चाहता है, उसे पाप को बढ़ाने वाले इन चारों दोषों क्रोध, मान, माया और लालच का त्याग कर देना चाहिए।

- जो लोग कष्ट में अपने धैर्य को स्थिर नहीं रख पाते, वे अहिंसा की साधना नहीं कर सकते। अहिंसक व्यक्ति तो अपने से शत्रुता रखने वालों को भी अपना प्रिय मानता है।

- संसार में रहने वाले चल और स्थावर जीवों पर मन, वचन एवं शरीर से किसी भी तरह के दंड का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

- ब्राह्मण कुल में पैदा होने के बाद यदि कर्म श्रेष्ठ हैं, वही व्यक्ति ब्राह्मण है किन्तु ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बाद भी यदि वह हिंसाजन्य कार्य करता है तो वह ब्राह्मण नहीं है जबकि नीच कुल में पैदा होने वाला व्यक्ति अगर सुआचरण, सुविचार एवं सुकृत्य करता है तो वह बाह्मण है।

- प्रत्येक प्राणी एक जैसी पीड़ा का अनुभव करता है और हर प्राणी का एकमात्र लक्ष्य मुक्ति ही है।
- आत्मा शरीर से भिन्न है, आत्मा चेतन है, आत्मा नित्य है, आत्मा अविनाशी है। (संवाद)