प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भ्रष्टाचार के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन के कारण ही प्रधानमंत्री बने हैं। उस आंदोलन का नेतृत्व अन्ना हजारे कर रहे थे, लेकिन पार्टी पाॅलिटिक्स के खिलाफ विचार रखने वाले अन्ना हजारे अपने उस आंदोलन को राजनैतिक पार्टी का रूप नहीं दे सके, जिसका फायदा नरेन्द्र मोदी उठा ले गए। लोगों ने उन्हें ईमानदार माना, क्योंकि उनका अपना कोई परिवार नहीं है, जिसके लिए वे भ्रष्ट आचरण करके पैसा कमाएं। अन्ना के नेतृत्व में चले उस आंदोलन ने कांग्रेस और उसे समर्थन दे रही तमाम पार्टियों के सूफड़े साफ कर दिए थे और नरेन्द्र मोदी को जबर्दस्त समर्थन मिला व भारतीय जनता पार्टी ने अपने बूते ही लोकसभा में बहुमत हासिल कर लिया।

लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ नरेन्द्र मोदी की सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। यूपीए के दूसरे कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के जो बड़े बड़े मुद्दे उठ रहे थे, उन पर सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। राष्ट्रमंडल खेलों के भ्रष्टाचार का एक भी मामला मोदी सरकार ने नहीं खोला। वाड्रा के भ्रष्टाचार की बहुत चर्चा उस दौरान हो रही थी। उस मामले पर भी मोदी सरकार की सुस्ती बरकरार रही, हालांकि विधानसभा के होने वाले चुनावें मे उसे उठाने में मोदी जी को कोई परहेज नहीं था।

लालू यादव को सजा दिलाने में भी मोदी सरकार की कोई भूमिका नहीं थी। वह पुराना केस था और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तेजी से ट्रायल हुआ और लालू यादव को सजा होती गई। हालांकि यह भी सच है कि लालू को मुकदमे में सबसे पहले सजा यूपीए के शासन के दौरान ही हुई थी। अन्य किसी मामले में कोई बड़ा राजनेता जेल नहीं गया। यूपीए के कार्यकाल मे जो 2 जी का मुकदमा चल रहा था, उसमें भी ए राजा और कनिमोरी को कुछ नहीं हुआ। उस मुकदमे में अनिल अंबानी भी एक अभियुक्त थे। उनको भी कुछ नहीं हुआ। उन लोगों को अभियोग मुक्त करने वाली अदालत ने नरेन्द्र मोदी सरकार का हिस्सा सीबीआई की लापरवाही को अभियोग मुक्ति का जिम्मेदार ठहराया और कहा कि दस्तावेज कुछ कहते थे और सीबीआई के गवाह कुछ और ही कहानी बताने लगते थे।

जो भी हो, नरेन्द्र मोदी का कार्यकाल भ्रष्टाचार को लेकर गंभीर कभी नहीं दिखाई पड़ा। और इसी बीच राफेल का मुद्दा सामने आया, जिसमे एक औसत विवेक वाले व्यक्ति को यही लगेगा कि इसमें भ्रष्टाचा हुआ और न केवल देश के खजाने को नुकसान पहुंचा, बल्कि रक्षा टेक्नालाॅजी पाने में भी भारत विफल रहा। इसके साथ साथ भारत की हथियार बनाने वाली सरकारी कंपनी हिन्दुस्तान एरोनाॅटिक्स लिमिटेड को भी खासा नुकसान हुआ। बस क्या था, राहुल गांधी ने राफेल को अपना सबसे बड़ा राजनैतिक हथियार बना लिया और ‘चैकीदार चोर है’ नारे को देश के गांवों और शहरों की गली गली तक पहुंचा डाला। भारतीय जनता पार्टी अपने तरीके से राहुल के इस अभियान को कमजोर करने की कोशिश करती रही औ उसे उस समय एक बड़ा मौका मिला, जब सुप्रीम कोर्ट ने राफेल सौदे की जांच करने से इनकार कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को भारतीय जनता पार्टी और केन्द्र सरकार ने इस बात का प्रमाण करार दिया कि सौदे में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ। भाजपा नेता कहने लगे कि सुप्रीम कोर्ट ने राफेल मामले मे सरकार को क्लीन चिट दे दी है और राहुल गांधी का झूठ सामने आ गया है। उसके बाद के घटनाक्रम ने यह साबित किया कि सुप्रीम कोर्ट के सामने सरकार ने सही तथ्य रखे ही नहीं थे और गलत तथ्यों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट अपने उस निर्णय पर पहुंचा था। कांग्रेस इस बात को लोगों तक पहुंचाने लगी, लेकिन ज्यादातर लोग अदालती बारिकियों को नहीं समझते, इसलिए भाजपा का अभियान राहुल के अभियान पर भारी पड़ने लगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा राफेल सौदे की जांच कराने से इनकार करने को वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा बेगुनाही के सर्टिफिकेट के तौर पर प्रचारित किया जाने लगे।
लेकिन कुछ दिनों के बाद हिन्दू नामक एक अंग्रेजी अखबार ने सरकारी दस्तावेजों के हवाले से खबरें छापीं, जिससे सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दी गई जानकारी झूठी साबित हो रही थी। मामला फिर एक बार सुप्रीम कोर्ट में गया और मांग हुई कि कोर्ट अपने निर्णय पर फिर से विचार करे। सरकार ने भी हिन्दू में छपी खबरों को गलत नहीं बताया, सिर्फ इतना ही कहा कि जिन दस्तावेजों को आधार बनाकर वे खबरें लिखी गई थीं, वे दस्तावेज गैरकानूनी तरीके से लीक किए गए थे, इसलिए उन दस्तावेजों को आधार बनाकर मामले की दुबारा सुनवाई नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि चूंकि वे दस्तावेज असली हैं, भले ही वे गलत तरीके से हिन्दू अखबार के पास पहुंचे हों, इसलिए उसे अदालत सबूत मानती है और आगे उसके आधार पर अदालत में सुनवाई होगी।

अदालत के इसी निर्णय को आधार मानकर राहुल गांधी ने कह दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी अब कह डाला है कि चैकीदार चोर है। जिस तरह भाजपा यह प्रचार कर रही थी कि सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया है कि राफेल में भ्रष्टाचार हुआ ही नहीं, उसी तर्ज पर राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय का इस्तेमाल किया। हालांकि दोनों गलत हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जांच कराने का आदेश देने से मना किया था और यह नहीं कहा था कि उसमें घोटाला हुआ ही नहीं। उसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने यह भी नहीं कहा है कि उसमें घोटाला हुआ है। जाहिर है, दोनों पक्ष सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों को अपनी अपनी राजनीति चमकाने में इस्तेमाल कर रहे हैं। (संवाद)