अलग अलग चैनलों और एजेंसियों द्वारा जारी किए गए नतीजे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को 245 से 350 तक सीटें दे रहे हैं। अधिकांश बहुमत के आंकड़े से ऊपर ही बता रहे हैं और यदि उन सबका औसत निकाला जाय, तो वह 300 से ऊपर ही रहता है। इन नतीतों को विपक्षाी दलों के नेताओ को बेचैन कर दिया है। उनमें से चन्द्रबाबू नायडू तो चाहते थे कि 23 मई के पहले ही विपक्षी दलों के नेताओं की एक बैठक हो जाए। लेकिन प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पाल रही ममता बनर्जी और मायावती ने इनकार कर दिया। मायावती को प्रधानमंत्री बनाने को आतुर अखिलेश यादव ने तो यहां तक कह दिया कि मेज पर बैठने के पहले यह तो लोगों को पता चले कि कौन कितना लेकर आया है।
दरअसल अखिलेश यादव को लग रहा था कि उनका मोर्चा उत्तर प्रदेश की 80 में से 70 या 75 सीटों पर चुनाव जीत रहा है और प्रधानमंत्री उनके मोर्चे का ही किसी को बनना चाहिए। वह चाहते हैं कि मायावती प्रधानमंत्री बन जाएं, ताकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में उन्हें माया की ओर से किसी प्रकार के प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़े। लेकिन एक्जिट पोल ने उनका और उनकी नेता मायावती का मूड खराब कर दिया है। हो सकता है नतीजे के बाद सारे एक्जिट पोल के नतीजे गलत हो जाएं, लेकिन तबतक जो मूड खराब हुआ है, वह तो खराब ही बना रहेगा।
ममता बनर्जी का भी मूड खराब हुआ है। पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को करीब 40 सीटें मिली थीं। कांग्रेस को मिली सीटों से थोड़ी ही कम थीं। इस बार भी उन्हें लग रहा है कि उन्हें 40 के आसपास सीटें मिलेंगी और सीटो की संख्या के लिहाज से उनकी पार्टी भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी। वे चूंकि राजनीति मे राहुल गांधी से सीनियर हैं इसलिए वह राहुल को नेता मानने से इनकार कर देगी व अन्य गैर कांग्रेसी पार्टियों की सहायता और कांग्रेस के सपोर्ट से देश की प्रधानमंत्री बन जाएंगी।
पिछले दिनों कोलकाता में अमित शाह के रोड शो प्रकरण के बाद वह भारतीय जनता पार्टी की सबसे मुखर आलोचक के रूप में उभरी हैं। आलोचना तो राहुल गांधी भी करते हैं, लेकिन जितना तीखापन ममता बनर्जी के विरोध में दिखाई देता है, उतना राहुल गांधी या किसी अन्य नेता में नहीं। ममता बनर्जी एक मात्र ऐसी नेता हैं, जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जेल भेजने की धमकी दे डाली है। अमित शाह के लिए तो उन्होंने ऐसे ऐसे कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया है, जिसे लिखना भी उचित नहीं होगा। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की मूर्ति टूटने के मामले में तो उन्होंने एसआइटी का भी गठन कर दिया है। इस तरह उन्होंने अपने आपको नरेन्द्र मोदी के सबसे प्रमुख विकल्प के रूप में पेश कर दिया है।
पर एक्जिट पोल ने निश्चय ही ममता बनर्जी का मूड भी खराब कर दिया है। अब यदि एनडीए को बहुमत आ रहा हो, तो फिर उनकी जगह गैर एनडीए फोल्ड से किसी को नेता चुनने की जरूरत ही क्यों पड़ेगी? उसके बाद तो विपक्षी एकता अपनी विपक्षी भूमिका की ही तलाश में बनेगी न कि सत्ता की तलाश में।
चन्द्र बाबू नायडू विपक्ष की ओर से सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। वे तो 23 मई के पहले ही एक विपक्षी बैठक बुलाए जाने के पक्ष में थे। उनकी नजर भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। वे लंबे समय तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। अभी भी वे उसी पद पर हैं। संयुक्त मोर्चा के संयोजक के रूप में वे राष्ट्रीय राजनीति में 20-22 साल पहले भी मतत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। वे चाहते तो देवेगौड़ा सरकार के पतन के बाद खुद भी प्रधानमंत्री बन सकते थे, लेकिन अपनी कम उम्र का तकाजा देखते हुए उन्होंने अपने लिए किंग नहीं बल्कि किंग मेकर की भूमिका ही उचित समझी।
अब चन्द्रबाबू नायडू 65 पार कर चुके हैं और अपने बेटे को अपनी राजनैतिक विरासत थमाना चाहते हैं, लेकिन इसके पहले वे प्रधानमंत्री का पद भी हासिल करना चाहते हैं। पिछले चुनाव में वे मोदी के मोर्चे में थे, लेकिन उन्होंने अपने राज्य के स्पेशल स्टैटस का मुद्दा उठाते हुए एनडीए छोड़ दिया और मोदी विरोधी मोर्चा के केन्द्र में आ गए।
एक्जिट पोल ने नायडू के मूड को भी खराब कर दिया है। उनके आंध्र प्रदेश में लोकसभा के साथ साथ विधानसभा के चुनाव भी हो रहे हैं और एक्जिट पोल मे सत्ता उनके हाथ से निकलती दिख रही है। वाइएसआर कांग्रेस के जगनमोहन रेड्डी उनको पछाड़ रहे हैं। कहां तो वह अपने बेटे को वहां का मुख्यमंत्री बनाने की सोच रहे थे, लेकिन एक्जिट पोल के बाद प्रधानमंत्री बनना तो दूर मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लाले पड़ते दिखाई पड़ रहे हैं।
एक्जिट पोल के नतीजों के बीच विपक्षी दल इस बात से राहत की सांस ले सकते हैं कि अधिकांश एक्जिट पोल गलत ही साबित होते रहे हैं। 2004 मे सारे एक्जिट पोल अटल की सरकार दुबारा बनवा रहे थे, लेकिन हुआ इसका उल्टा। 2014 मंे भी एक को छोड़कर अन्य किसी ने भी भाजपा की उतनी बड़ी जीत की भविष्यवाणी नहीं की थी। 2009 में भी किसी एक्जिट पोल ने यूपीए को 225 से ज्यादा सीटें नहीं दी थीं, जबकि वास्तव में उसे 261 सीटें मिली थीं। यानी एक्जिट पोल के बाद भी उम्मीद की किरणें तो टिमटिमा ही रही हैं, लेकिन इससे बेचैनी समाप्त नहीं होती। (संवाद)
एक्जिट पोल और उसके बाद
अब क्या करेंगे विपक्षी दलों के नेता
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-05-20 12:35
एक्जिट पोल एक बार फिर नरेन्द्र मोदी की सरकार बनवा रहा हैं। हालांकि एक्जिट पोल बहुत विश्वसनीय नहीं रह गए हैं। आमतौर पर वे गलत ही साबित होते हैं, लेकिन जब सारे के सारे एक्जिट पोल एक ही दिशा में इशारा करे, तो उन्हें नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। जाहिर है, 23 मई को चुनावी नतीजा निकलने के पहले तक विपक्षी नेताओं की राजनैतिक गतिविधियां एक्जिट पोल के इन नतीजों से प्रभावित होती रहेंगी। ये नेता कहने को तो एक्जिट पोल को गलत मान रहे हैं, लेकिन इनके सच होने का डर भी तो उन्हें सता ही रहा है।