बात कांग्रेसनीत गठबंधन यूपीए की हो या तीसरे मोर्चे के नाम एकजुट होने वाली पार्टियों की, इनमें शामिल होकर इन्हें मजबूती प्रदान करने के नाम पर सभी अपनी-अपनी ढ़पली, अपना-अपना राग बजाते नजर आए। ममता बनर्जी हों या अखिलेश यादव अथवा मायावती, चुनाव से पहले तक भले ही ये सभी क्षेत्रीय दिग्गज विपक्षी एकता के नाम कितना ही बड़ा तमाशा करते रहे हों किन्तु चुनाव सामने आते ही अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाओं के चलते इन सभी के तेवर बदल गए, जिसका परिणाम यही रहा कि यूपीए या तीसरे मोर्चे के मुकाबले भाजपानीत गठबंधन एनडीए मजबूत बना रहा।

संभवतः इस लेख के प्रकाशन तक चुनावी तस्वीर पूरी तरह साफ हो चुकी होगी और नई सरकार के गठन के प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी होगी लेकिन मौजूदा राजनीतिक परिवेश में यह जान लेना बेहद जरूरी है कि राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय राजनीति का फिलहाल क्या चेहरा है। राष्ट्रीय स्तर पर बने राजनीतिक माहौल में फिलहाल चार खेमे हैं, जिनमें भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए सर्वाधिक मजबूत स्थिति में है जबकि दूसरा खेमा है कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूपीए। तीसरा खेमा वह है, जो फिलहाल किसी के भी साथ नहीं है किन्तु जरूरत पड़ने पर कांग्रेस के साथ जा सकता है जबकि चैथा खेमे में कुछेक ऐसे राजनीतिक दल हैं, जो न एनडीए और न ही यूपीए अर्थात् किसी के भी साथ नहीं है।

जहां तक भारत की राजनीति में गठबंधन के दौर की शुरूआत की बात है तो देश की आजादी के बाद एक लंबे अरसे तक कांग्रेस पार्टी ने ही देश पर एकछत्र राज किया लेकिन धीरे-धीरे देश की जड़ों तक फैलते भ्रष्टाचार तथा कांग्रेस की नीतियों से आमजन का मोहभंग होने लगा तो चुनावों में सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर आने वाली कांग्रेस भी बहुमत का आंकड़ा जुटाने में असफल रहने लगी। ऐसे में उसे सरकार बनाने के लिए सहयोगी दलों की जरूरत महसूस होने लगी और तभी से देश में गठबंधन सरकारों के एक नए दौर की शुरूआत हुई। हालांकि गठबंधन की राजनीति की शुरूआत से यह भी देखा जाता रहा है कि गठबंधनों में शामिल अधिकांश दलों की मूल प्रवृत्ति अपने गठबंधन की सरकार को स्थायित्व प्रदान करने के प्रयासों से कहीं अधिक गठबंधन सरकार के बहाने अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति करना ही रही है। यही वजह है कि देश में स्थायी सरकार के लिए सदैव यही माना जाता रहा है कि बहुमत किसी भी एक राष्ट्रीय दल को ही प्राप्त हो ताकि सरकार चलाते वक्त सरकार में शामिल छोटे-छोटे दलों की महत्वाकांक्षा राष्ट्रहित में महत्वपूर्ण फैसले लेते समय आड़े न आने पाए लेकिन यह देश का दुर्भाग्य ही है, कोई भी राजनीतिक दल आज इस स्थिति में नहीं है कि वह अपने ही बूते पर बहुमत का ऐसा जादुई आंकड़ा जुटा सके कि उसे निर्बाध रूप से सरकार चलाने और देशहित से जुड़े फैसले लेने में कोई दिक्कत न आए। इसी गठबंधन की राजनीति के चलते कालांतर में भाजपा गठबंधन ‘एनडीए’ और कांग्रेस गठबंधन ‘यूपीए’ का जन्म हुआ।

अब यह भी जान लेते हैं कि कौनसा राजनीतिक दल किस खेमे में शामिल है? सबसे पहले चलते हैं एनडीए की ओर। एनडीए अर्थात् ‘राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन’, जिसे ‘राजग’ नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसा राजनीतिक गठबंधन है, जिसका नेतृत्व भाजपा करती है। देश में गैर कांग्रेसी सरकार के गठन की दिशा में मई 1998 में पहली बार बड़ी पहल हुई थी, जब भाजपानीत गठबंधन ‘एनडीए’ की घोषणा हुई थी। उस समय एनडीए के कुल 13 सदस्य थे लेकिन एआईएडीएमके द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद तब एक साल के भीतर ही एनडीए ढ़ह गया था। उसके चंद माह बाद कुछ और नए दलों को साथ जोड़कर एनडीए द्वारा वर्ष 1999 का लोकसभा चुनाव जीतने का प्रयास किया गया और एनडीए के लिए इसके आशातीत परिणाम भी सामने आए। एनडीए के नेतृत्व में अटल बिहारी वाजपेयी पांच साल तक सरकार चलाने में सफल रहे। जीत की उम्मीद के साथ 2004 के लोकसभा चुनाव में भी एनडीए पूरी मजबूती के साथ मैदान में उतरा किन्तु पहली बार अस्तित्व में आए कांग्रेस गठबंधन का पलड़ा भारी रहा।

मौजूदा समय में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन में तीन दर्जन से भी अधिक छोटी-बड़ी पार्टियां शामिल हैं, जिनमें नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू, एआईएडीएमके, पीएमके, डीएमडी इत्यादि कुछ ऐसी पार्टियां भी शामिल हैं, जो पिछले चुनाव में एनडीए का हिस्सा नहीं थी लेकिन इस बार इन सभी दलों ने एनडीए का हिस्सा बनकर ही चुनाव लड़ा। एनडीए का हिस्सा बनकर लोकसभा चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों में शिवसेना, अकाली दल, जेडीयू, लोक जनशक्ति पार्टी, आरपीआई, एआईएडीएमके, पीएमके, डीएमडीके, एन आर कांग्रेस, पुथिया तमलगम, पुथिया नीधि काच्छी, राष्ट्रीय समाज पक्ष, शिव संग्राम पार्टी, गोवा फारवर्ड पार्टी, महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी, नेशनल पीपुल्स पार्टी, बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट, नागा पीपुल्स फ्रंट, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, मिजो नेशनल फ्रंट, इंडीजीनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा, मणिपुर डेमोक्रेटिक पीपुल्स फ्रंट, गणशक्ति पार्टी, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, भारत धर्म जन सेना, केरल कांग्रेस (थॉमस) इत्यादि शामिल हैं।

जहां तक कांग्रेस के गठबंधन ‘संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन’ अर्थात् यूपीए की बात है तो इसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। इस गठबंधन का गठन वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले हुआ था और पहली बार अस्तित्व में आए इस गठबंधन ने चुनावी बाजी जीतने में सफलता भी हासिल की थी। कांग्रेस के नेतृत्व वाले इस गठबंधन में लालू प्रसाद यादव की आरजेडी, शरद पवार की एनसीपी, एच डी देवगौड़ा की जेडीएस, उपेन्द्र कुशवाहा की आरएलएसपी, एम के स्टालिन की डीएमके, बदरूद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ और शिबू सोरेन की जेएमएम प्रमुख है। इसके अलावा सपा, बसपा, टीएमसी, आप, टीडीपी जैसे कुछ ऐसे अवसरवादी दल भी हैं, जो जरूरत पड़ने पर कांग्रेस के साथ जाने में संकोच नहीं करेंगे। इनके अलावा कुछ ऐसे प्रमुख क्षेत्रीय दलों के नेता भी हैं, जो भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस को भी निशाने पर लेते रहे हैं। इनमें उड़ीसा के मुख्यमंत्री तथा बीजेडी प्रमुख नवीन पटनायक, तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव, वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख जगनमोहन रेड्डी इत्यादि शामिल हैं, जो सदैव गैर बीजेपी-गैर कांग्रेस (थर्ड फ्रंट) की सरकार की वकालत करते रहे हैं। (संवाद)