सदन में विपक्ष का नेता बनने के लिए कुल सांसदो का का 10 फीसदी सदस्य होना जरूरी होता है। यह संख्या हमारे लोकसभा में 55 है, लेकिन कांग्रेस इस मैजिक फीगर तक भी नहीं पहुंच पाई। 2015 के लोकसभा चुनाव में उसे 44 सीटें मिली थीं और इस बार यह संख्या थोड़ा सुधर कर 52 तक पहुंच गई और एक बार फिर कांग्रेस के नेता को सदन में मुख्य विपक्षी नेता का रुतबा नहीं मिल पाएगा।
सच कहा जाय, तो कांग्रेस की यह हार पिछली हार से भी बुरी है। पिछली बार कांग्रेस सत्तारूढ़ दल के रूप में चुनाव का सामना कर रही थी, लेकिन इस बार तो वह विपक्षी पार्टी के रूप में चुनाव मे थी। इसलिए सत्ता के प्रति विरोध का जो भाव होता है, उसका लाभ उसे मिलना चाहिए था, परंतु यह लाभ उसे नहीं मिल पाया। देश के आधा से ज्यादा प्रदेशों में तो उसका खाता तक नहीं खुला। देश की राजधानी दिल्ली में भी वह शून्य पर आउट हुई। हरियाणा में भी उसे कोई सीट नहीं मिली। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भी वह खाली हाथ रही। जम्मू कश्मीर में भी उसकी उपलब्धि जीरो रही। पंजाब में उसका प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा। उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में एक एक सीट उसे हाथ लगी। आंध्र प्रदेश में भी उसे कुछ हाथ नहीं लगा।
कांग्रेस ने एक से एक बड़े चुनावी वायदे भी किए थे। लेकिन उन वायदों पर किसी ने भरोसा नहीं किया। कुछ महीने पहले ही मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ़ में सत्ता उसके हाथ में आई थी। उसने कथित रूप से किसानों के कर्ज भी माफ कर दिए थे, लेकिन इन तीनों राज्यों मे भी कांग्रेस की दुर्गति हो गई। राजस्थान की सभी सीटें वह हार गई। मध्यप्रदेश मे मात्र एक सीट से उसे संतोष करना पड़ा। जिस छतीसगढ़ मे उसने विधानसभा की 80 फीसदी से भी ज्यादा सीटें जीती थीं, वहां उसे मात्र दो सीटों पर जीत मिली। असम में भी उसकी दुर्गति हुई।
एक तरह से देखा जाय, तो कांग्रेस लगभग मर चुकी है। जो कुछ भी उसे मिल रहा है, उसे एक जिंदा पार्टी की उपलब्धि नहीं मानी जा सकती। सवाल उठता है कि कांग्रेस क्या अब भी एक संभावना है या इसके फिर से जिंदा होने की संभावना समाप्त हो चुकी है? राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की बात कर रहे हैं। लेकिन इसमें उनकी ईमानदारी कम और नाटकबाजी ज्यादा दिखाई पड़ती है। उनकी मां और बहन उन्हें मना कर रहे हैं और खुद राहुल हार की जिम्मेदारी अपने सिर पर लेने के बावजूद दूसरे नेताओं को दोषी ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस के अन्य नेताओ ने उनकी ‘चैकीदार चोर है’ वाले नारे को चुनाव अभियान का मुख्य नारा नहीं बनाया।
कांग्रेस के लिए अब सोनिया परिवार अभिशाप बन गया है। कांग्रेसी मानते हैं कि सोनिया परिवार ही कांग्रेस को एक रख सकती है, अन्यथा यह बिखरने लगेगी। सवाल उठता है कि यदि पार्टी लगातार हारती जाए, तो फिर यह रहकर क्या करेगी? कोई भी पार्टी सिर्फ अपने अस्तित्व के लिए जिंदा नहीं रहती, बल्कि उसे चुनावी सफलता भी चाहिए। हमेशा चुनावी सफलता मिले यह जरूरी नहीं, लेकिन लगातार हार भी ठीक नहीं है।
सच तो यह है कि अब सोनिया परिवार की साया से कांग्रेस को मुक्त होना ही पड़ेगा। उस परिवार के नेतृत्व में उसका कोई भविष्य नहीं है। राहुल गांधी पार्टी का सफल नेतृत्व नहीं कर पा रहे थे। और जब प्रियंका गांधी सक्रिय हुई, तो उन्होंने ऐसे ऐसे बयान दे डाले, जो पार्टी को हराने के लिए काफी थे। एक बार तो उन्होंने कांग्रेस को वोटकटवा पार्टी तक कह डाला। उनपर आरोप लग रहे थे कि उनकी पार्टी समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवारों का वोट काटकर भाजपा की जीत आसान कर रही है, तो उन्होने जवाब दे दिया कि उनकी पार्टी भाजपा का वोट काटने का काम कर रही है, ताकि विपक्ष के अन्य उम्मीदवार जीत जाए। मायावती ने जब कांग्रेस को अपने गठबंधन में नहीं लिया था, तो उसका यह आकलन था कि कांग्रेस सवर्ण वोट काटकर भाजपा को नुकसान पहुंचाएगी। लेकिन प्रियंका के उस बयान ने भाजपा को लाभ पहुंचाया और सवर्ण जो कांग्रेस का साथ दे सकते थे, उसे छोड़कर भाजपा की ओर खिसक गए।
प्रियंका ने पहले मोदी के खिलाफ बनारस से लड़ने की इच्छा जाहिर की और फैसला राहुल पर छोड़ दिया। पर अंत में मैदान छोड़कर भाग खड़ी हुई। यहां भी प्रियंका ने राजनैतिक अपरिपक्वता दिखाई और इससे कांग्रेस को देश भर में नुकसान हुआ। जाहिर है, प्रियंका गांधी राहुल से भी बदतर साबित हो रही है।
इसलिए सिर्फ राहुल ही नहीं, बल्कि प्रियंका और सोनिया को भी अब कांग्रेस के नेतृत्व से अपने को हटा लेना चाहिए, तभी पार्टी जिंदा रह सकती है। नेहरू परिवार को कांग्रेस का यूएसपी माना जाता था, लेकिन पिछले पांच साल में नेहरू की छवि को बुरी तरह से खराब करने की कोशिश हुई है और अब नेहरू के नाम पर कांग्रेस के लिए वोट हासिल भी नहीं किया जा सकता। इसलिए बेहतर यही रहेगा कि सोनिया परिवार न केवल कांग्रेस के नेतृत्व से अपने को हटा ले, बल्कि अपने साए से पूरी कांग्रेस को मुक्त कर दे। यह परिवार अब कांग्रेस पर बोझ बन चुका है।(संवाद)
सोनिया परिवार का साया कांग्रेस से हटे
राहुल या प्रियंका नहीं दे सकते कांगेस को नया जीवन
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-05-28 08:45
कांग्रेस की एक बार फिर चुनावी दुर्गति हुई है। इस बार इसने अपनी सारी ताकत लगा थी। जिस प्रियंका गांधी को कांग्रेस के तुरुप का पत्ता कहा जाता था, वह भी इस बार खुल कर मैदान में उतरी और बड़े बड़े रोडशो किए। उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाकों का जिम्मा उन्हें दिया गया, लेकिन उनको आबंटित क्षेत्र में भी पार्टी बुरी तरह हारी। खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गए और हार की मार्जिन भी 55 हजार से अधिक रही।