अरुण जेटली के स्वास्थ्य के बारे में लोगों को पहले से ही पता है। उनके दोनों गुर्दे खराब हो चुके हैं और उन्होंने किसी और के गुर्दे का प्रत्यारोपण कर रखा है। खराब स्वास्थ्य के कारण वे कुछ महीनों तक बिना विभाग के मंत्री थे और उनकी जगह पर पीयूष गोयल उनके मंत्रालय का भार संभाल रहे थे। गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद एक और बीमारी से उनको ग्रस्त बताया गया। बताया गया कि उनको कैंसर भी है। इसी का इलाज करवाने के लिए वे अमेरिका उस समय गए थे, जब मोदी सरकार को वर्तमान वित्तीय वर्ष का अंतरिम बजट पेश करना था। उनकी अनुपस्थिति में पीयूष गोयल ने ही इस साल का अंतरिम बजट पेश किया था।
खराब स्वास्थ्य के बावजूद अरुण जेटली अपने ब्लाॅग के द्वारा चुनाव अभियान में शामिल थे। वे नरेन्द्र मोदी का बचाव कर रहे थे और विरोधियो की खबर ले रहे थे। इसलिए यह अनुमान लगाया जा रहा था कि वे इतने ज्यादा बीमार भी नहीं हैं कि सरकार की जिम्मेदारियांे को निभा न सकें। लेकिन उन्होंने खुद सरकार में शामिल होने में अपनी असमर्थता व्यक्त कर दी और इस तरह मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के एक महत्वपूर्ण मंत्री से दूसरा कार्यकाल वंचित हो गया है।
आज सबसे ज्यादा चुनौती वित्त मंत्रालय के सामने ही है। पूरी वित्तीय व्यवस्था पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अनेक बैंक रुग्न हो चुके हैं और उन पर भारतीय रिजर्व बैंक ने तरह तरह की पाबंदियां लगा रखी हैं। कुछ बैंकों को आपस में मिला भी दिया गया है और कुछ अन्य बैंकों को आपस में मिलाने की प्रक्रिया जारी है। बैंकों का नन परफाॅर्मिंग एसेट बढता जा रहा है। बैंकों के खराब स्वास्थ्य का देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ना लाजिमी है।
बैंकों से ज्यादा बदहाल तो नन बैंकिंग वित्तीय संस्थान हैं। उनमें भी लाखों करोड़ रुपये देश के लोगों ने निवेश कर रखे हैं। उनके निवेश पर खतरे मंडरा रहे हैं। यदि इन संस्थानों को पटरी पर नहीं लाया गया, तो चैतरफा तबाही होगी। इसके कारण न केवल व्यवस्था में लोगों का विश्वास घटेगा, बल्कि बाजार में मांग मे भारी कमी आएगी। कमजोर मांग देश को आर्थिक मंदी की ओर भी धकेल सकता है। वैसे भी सरकार द्वारा विकास के जारी किए जा रहे आंकड़ों की विश्वसनीयता पर कुछ लोग सवाल खड़ा कर रहे हैं और कह रहे हैं कि आंकड़ों की बाजीगिरी की जा रही है और अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के बारे मे लोगों को गलत जानकारी दी जा रही है।
अर्थव्यवस्था के बारे मे दी जा रही जानकारी सही है या गलत, यह एक अलग सवाल है, लेकिन इस पर कोई दो मत नहीं कि देश की वित्तीय व्यवस्था वास्तव मे बहुत ही नाजुक है। सरकार और वित्तीय संस्थानों के अपने आंकड़े इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। सच यह भी है कि यदि वित्तीय व्यवस्था खराब रही, तो देश की अर्थव्यवस्था भी बहुत अच्छी नहीं रह सकती। उसके शिकार होना ही पड़ेगा, क्योंकि उद्योगो का वित्त पोषण वित्तीय व्यवस्था से ही होता है।
पांच साल से अरुण जेटली वित्त मंत्री थे। कहा जाता है कि बैंकों और न बैंकिंग वित्तीय संस्थानो की तबाही के लिए मुख्य रूप से वे ही जिम्मेदार हैं। मोदी सरकार ने वित्त व्यवस्था और अर्थव्यवस्था के मोर्च पर अनेक बदलाव किए। उन बदलावों को सही दिशा देने का काम मुख्य रूप से वित्त मंत्रालय का ही था, लेकिन उन कामों को सही तरीके से अंजाम नहीं दिया जा सका और इसके लिए वित्त मंत्रालय जिम्मेदार है। वित्त मंत्री के रूप मे इसे अरुण जेटली की विफलता कहा जा सकता है।
मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल में सबसे बड़ा फैसला नोटबंदी का किया था, लेकिन वह अपने एक भी उद्देश्य को हासिल नहीं कर सका। उसकी विफलता के लिए बैंक जिम्मेदार हैं, जहां के भ्रष्टाचार ने नोटबंदी के उद्देश्यो को ही पराजित कर दिया। नोटबंदी से पैदा हुई चुनौतियों का सामना वित्त मंत्रालय कर रहा था, लेकिन उसके प्रमुख के रूप में अरुण जेटली गायब थे। दारोमदार मंत्रालय के सचिवों पर था।
यही नहीं विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चैकसी को भारत से बाहर भगाने के लिए भी अनेक लोग अरुण जेटली को दोष देते पाए गए। विजय माल्या तो भागने के पहले उनसे मिले भी थे। उनके भागने का रास्ता भी कहते हैं सरकार की ओर से तैयार किया गया था। यूपीए सरकार ने उनके बाहर जाने पर रोक लगा रखी थी, लेकिन मोदी सरकार ने वह रोक हटवा दी। हटवाने वाला व्यक्ति कौन था, इसका कयास लगाने वालों की अंगुलियां अरुण जेटली की ओर थी।
विजय माल्या के भारत से भागने के बाद तो बैंकिंग संकट शुरू हुआ, उसकी जिम्मेदारी से जेटली बच नहीं सकते। उसी तरह नीरव और चैकसी के भागने में भी उनकी ओर से बरती गई निष्क्रियता को ही जिम्मेदार माना गया। नीरव और चैकसी के बारे में अरुण जेटली के मंत्रालय को किसी ने लिख कर शिकायत की थी और उनके भागने का भय भी व्यक्त किया गया था, लेकिन उस शिकायत की जेटली ने उपेक्षा कर दी।
अब जेटली सरकार मे नहीं हैं। तो क्या यह उम्मीद की जाय कि मोदी सरकार देश को वित्तीय व्यवस्था की बदहाली से दूर कर देगी? (संवाद)
मोदी सरकार से अरुण जेटली की बिदाई
क्या वित्तीय बदहाली से निकल पाएगा देश?
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-05-31 09:59
नरेन्द्र मोदी की सरकार ने अपना दूसरा कार्यकाल शुरू कर दिया है। पहले कार्यकाल की सरकार से यह अनेक मामलों में भिन्न है। इस भिन्नता तो यह है कि इस सरकार में अरुण जेटली नहीं होंगे। भारतीय जनता पार्टी को 23 मई को बहुमत मिलते ही इस बात की चर्चा शुरू हो गई थी कि इस बार जेटली को वित्त मंत्रालय नहीं दिया जाएगा। उन्हें किसी अन्य मंत्रालय से संतुष्ट होना होगा। उसके बाद अरुण जेटली की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखा एक पत्र जारी हुआ, जिसमें उन्होंने सरकार में फिर से शामिल होने में असमर्थता जताई थी। असमर्थता की वजह यह बताई गई कि उनका स्वास्थ्य खराब रहता है और इसके कारण वे मंत्री की जिम्मेदारी निभाने में समर्थ नहीं हैं।