नीतीश के जले पर नमक छिड़कने वाली बात यह थी कि खुद बिहार से ही भाजपा के पांच मंत्री बनाए जा रहे थे और नीतीश के दल को एक मंत्री का पद दिया जा रहा था, जबकि भाजपा के वहां से 17 लोकसभा सांसद हैं और नीतीश के दल से 16। 17 सांसदों में से 5 को और 16 में से एक को मत्री बनाया जाना नीतीश कुमार जैसे स्वाभिमानी व्यक्ति को भला मंजूर कैसे होता? जाहिर है, उन्होंने अपने दल को मोदी मंत्रिमंडल से बाहर रखना ही उचित समझा।
लेकिन नीतीश कुमार शांत नहीं रह सकते थे। अपने स्तर से वे जो कर सकते थे, उन्होने वह किया। बिहार के मुख्यमंत्री की हैसियत से उन्होंने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया। अपने दल से 8 मंत्री बनाए और भाजपा को एक मंत्री का पद आॅफर किया। यह भाजपा के लिए जैसे को तैसा जैसा कदम साबित हुआ और भाजपा ने भविष्य मे अपने कोटे के एक मंत्री का नाम बताने का वादा करके मामले पर चुप ही रहना बेहतर समझा।
दरअसल नरेन्द मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने नीतीश कुमार की ताकत को नजरअंदाज किया। उन्हें यह पता होना चाहिए था कि नीतीश के पास अभी भी भाजपा का साथ छोड़ने का विकल्प मौजूद है, पर भारतीय जनता पार्टी के पास नीतीश का कोई विकल्प नहीं है। लोकसभा चुनाव में भारी दुर्गति को प्राप्त लालू का परिवार सत्ता में वापसी के लिए एक बार फिर नीतीश की ओर देख रहा है। इस परिवार की राजनीति तो 2014 में ही समाप्त हो गई थी। उस साल हुए लोकसभा चुनाव में राबड़ी देवी और मीसा- दोनों मां-बेटी चुनाव हार गई थीं।
फिर लालू ने नीतीश के साथ मिलकर अपनी राजनीति को एक बार फिर जिंदा किया। यह सच है कि तब नीतीश को भी लालू की जरूरत थी, लेकिन नीतीश के लिए सत्ता में फिर आना उतना जरूरी नहीं था, जितना लालू परिवार को। नीतीश लगभग 10 साल तक मुख्यमंत्री रह चुके थे। दुबारा जीतकर फिर मुख्यमंत्री ही बने, लेकिन लालू यादव ने अपने अयोग्य और नौसिखिया बेटे को उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री बनवा डाला। लोकसभा चुनाव में हारी बेटी मीसा भारती को राज्य सभा के रास्ते संसद में भेज दिया। वह सब नीतीश के कारण ही संभव हो पाया, जिनकी सहायता से उनके राजद के 80 विधायक विधानसभा में जीत कर आए थे, जबकि 2010 के चुनाव में उनके मात्र 22 विधायक जीते थे और खुद राबड़ी देवी दोनों चुनाव क्षेत्रों से चुनाव हार गई थीं।
इसलिए भाजपा से नीतीश के तनाव बढते ही राजद की ओर से आॅफर आने लगे। रघुवंश प्रसाद सिंह, जो राजद में नीतीश कुमार के सबसे कट्टर आलोचक हैं दोनों दलों के एक होने की कामना करने लगे। अपना घर नीतीश के लिए बंद करने की बात करने की बात करने वाली राबड़ी देवी भी नीतीश का स्वागत करती हुई दिखाई पड़ रही है। अब यह नीतीश पर निर्भर करता है कि वह भाजपा से साथ बने रहें या राष्ट्रीय जनता दल को एक बार फिर अपने पाले में लाकर भाजपा के विरूद्ध खड़े हो जाएं और विपक्षी राजनीति का नेतृत्व करें।
नीतीश को भड़काने के साथ साथ अपने मंत्रिमंडल के गठन में भी नरेन्द्र मोदी ने गलती कर दी है। उन्होंने भाजपा से उन पांच लोगों को बिहार से अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया है, जो पहले से ही सत्ता संपन्न जातियों से आते हैं। चार मंत्री तो सवर्ण हैं और पांचवां यादव। बिहार की शेष जातियां इन पांचो जातियों से अब ईष्या और डाह का भाव पालती है। नीतीश कुमार की अपनी राजनीति ही गैर यादव ओबीसी की जातियांे पर निर्भर है। मोदी मंत्रिमंडल के गठन के बाद नीतीश कुमार ने मास्टर स्ट्रोल खेलते हुए उन जातियों से 5 लोगों को मंत्री बना डाला, जिन्हें बिहार में वंचित जातियां कहा जाता है। उनमें से दो तो महादलित जातियां हैं। गौरतलब हो कि मोदी मंत्रिमंडल में रामविलास पासवान भी मंत्री हैं, जो बिहार की एक सशक्त दलित जाति से आते हैं और उसे ही अलग थलग करने के लिए नीतीश कुमार ने महादलित की अवधारणा तैयार की। इस तरह नीतीश ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वे ही वंचित और दलित जातियों का ख्याल रख सकते हैं, खुद को अति पिछड़ी जाति का बताने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नहीं।
सवाल उठता है कि नीतीश की अगली रणनीति अब क्या होगी? क्या वे भाजपा को छोड़ेंगे और एक बार फिर राजद से हाथ मिलाएंगे? तो इसकी संभावना फिलहाल कम ही है। वे अभी यथास्थिति बनाए रखना चाहेंगे, क्योंकि यथास्थिति में उनका कोई नुकसान नहीं। इस बीच राष्ट्रीय विवादास्पद मुद्दों पर अपना वे स्वतंत्र राय जाहिर करते रहेंगे और उनकी राय पर आधारित उनके राज्यसभा और लोकसभा सांसद संसद में मतदान करते रहेंगे। चूंकि केन्द्र सरकार में उनका दल शामिल नहीं है, इसलिए सरकार द्वारा लाए गए कानूनों के पक्ष में वोट देने के लिए वे नैतिक रूप से बाध्य नहीं हैं। वैसे चाहें, तो नीतीश राज्यसभा और लोकसभा में अपने लिए विपक्षी बेंच मांग सकते हैं, लेकिन वे इस हद तक नहीं जाएंगे, पर वोटिंग में अपना स्वतंत्र रूप दिखाते रहेंगे। फिर विधानसभा चुनाव के समय स्थिति देखकर अपना राजनैतिक रुख तय करेंगे। उनके पास भाजपा, राजद और अकेले जाने के तीनों विकल्प हैं। वे इनमें से किसी को भी अपना सकते हैं। (संवाद)
नीतीश को नाराज कर मोदी ने गलती की
अब क्या करेंगे बिहार के मुख्यमंत्री?
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-06-06 09:42
मोदी सरकार के गठन के साथ ही भारतीय जनता पार्टी की ओर से एक भूल हो गई है और वह भूल है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नाराज करने की। नीतीश कुमार के जनता दल(यू) को मोदी मंत्रिमंडल में सिर्फ एक सीट ऑफर की गई। कायदे से उसे कम से कम तीन या ज्यादा से ज्यादा चार सीटें मिलनी चाहिए थी, क्योकि उनकी पार्टी को बिहार में 16 सीटें मिली थीं। लेकिन उसे केवल एक सीट ऑफर की गई। बिहार से ही रामविलास पासवान की पार्टी को 6 सीट मिली थी और रामविलास पासवान की पार्टी को भी एक ही सीट कैबिनेट में दी गई। पंजाब में तो शिरोमणि अकाली दल को मात्र दो ही सीटंें मिली थीं। लेकिन उसे भी कैबिनेट में एक जगह दे दी गई।