जाहिर है, विदेश व्यापार के मोर्चे पर मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत एक बड़ी चुनौती के साथ शुरू हुई है। पहले कार्यकाल के अंतिम दिनों में उसके सामने अमेरिका की ओर से ही एक और बड़ी चुनौती सामने आ गई थी। वह चुनौती ईरान के खिलाफ अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से संबंधित है। भारत तेल का एक बड़ा आयातक देश है और ईरान से यह काफी मात्रा में तेल का आयात करता है। लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों की शर्तों के तहत अब यह ईरान से तेल नहीं आयात कर सकता। भारत ने कोशिश की थी कि अमेरिका उसे अपने प्रतिबंधों के दायरे में नहीं लाए, लेकिन ट्रंप प्रशासन इसके लिए तैयार नहीं हुआ।
अब नई सरकार और इसके नये वाणिज्य मंत्री को भारत के विदेश व्यापार से जुड़ी इन दोनों विशेष चुनौतियों का सामना करना है। वैसे चुनौतियां और भी हैं, क्योंकि तमाम कोशिशों के बावजूद भारत का विदेश व्यापार बढ़ नहीं पा रहा है। हमारा निर्यात सेक्टर बहुत कमजोर है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमारी उपस्थिति बेहद कमजोर है। अब चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी हो गया है, लेकिन इसका साथ हमारा व्यापार संतुलन गड़बड़ाया हुआ है। हम वहां से आयात बहुत ज्यादा करते हैं और निर्यात बहुत कम। दूसरी ओर हमारा अमेरिका में निर्यात ज्यादा होता है और वहां से हम निर्यात कम करते हैं। और अमेरिका भारत से अपना व्यापार संतुलन ठीक करने के लिए भारत के साथ कड़ाई से पेश आ रहा है।
ईरान पर प्रतिबंध और अमेरिका की जीएसपी के दायरे से भारत का बाहर होना- ये दो ऐसी समस्याएं हैं जिनका निदान भारत को जल्द ढूंढ़ना होगा। ईरान से आयातित तेल का विकल्प ढूंढ़ना होगा, क्योंकि अमेरिका इस मसले पर भारत को शायद ही कोई छूट देगा। पहले भी बहुत लंबे समय तक अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगाए थे। तब भारत ने बार्टर ट्रेड को आधार बनाकर ईरान के तेल की खरीद की थी और भारतीय रुपये को भी करेंसी आॅफ एक्सचेंज के रूप में इस्तेमाल किया था। अब देखना पड़ेगा कि इस गुत्थी को नये वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल कैसे सुलझाते हैं।
जीएसपी को लेकर अमेरिका की भारत से शिकायत है कि वह अमेरिकी निर्यात को अपने बाजार में अवरूद्ध कर रहा है। भारत ने आईटी प्रोडक्ट्स पर सीमा शुल्क बढ़ा रखे हैं। यह अमेरिका को मंजूर नहीं। मोदी सरकार ने अनेक मेडिकल डिवाइस की अधिकतम कीमत को तय कर दिया है और उससे ज्यादा कीमत पर भारत में उन मेडिकल उपकरणों को बेचा नहीं जा सकता। यह भी अमेरिका को मंजूर नहीं, क्योंकि उसके उपकरण कीमती हैं और कीमत पर नियंत्रण के कारण वे भारत के बाजार के लिए मिसफिट हो गए हैं। अमेरिका चाहेगा कि भारत अपनी इन नीतियों में बदलाव करे, लेकिन अपने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत अपने लोगों के स्वास्थ्य के साथ खेलवाड़ नहीं कर सकता। कीमतों को बढ़ाकर कतिपय स्वास्थ्य सेवाओं को आम भारतीयों की पहुंच से दूर करने की वह नहीं सोच सकता।
अमेरिका के साथ व्यापार से भी बड़ी चुनौती भारत के लिए चीन के साथ उचित व्यापार संबंध बनाने की है। चीन हमारा पड़ोसी देश है और वह एक बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन गया है। भारत का सबसे बड़ा व्यापार सहभागी भी वह है, लेकिन वहां से हम जितना आयात करते हैं, उससे बहुत कम निर्यात करते हैं। चीन अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध में रत है और उसके उत्पादों पर अमेरिका तरह तरह की बंदिशें लगा रहा है। जाहिर है एक वैकल्पिक बाजार के रूप में भारत की ओर चीन की नजर है, लेकिन एक तरफा व्यापार लंबे समय तक चल नहीं सकता। भारत को भी कुछ ऐसे उद्योगों में महारत हासिल करनी होगी, जिनके उत्पाद वह चीनी बाजार में खपा सके।
चीन और अमेरिका में चल रहे व्यापार युद्ध के कारण पूरा अंतरराष्ट्रीय बाजार प्रभावित हो रहा है। अमेरिका न केवल चीन बल्कि अन्य देशों के बाजारों के प्रति भी अहिष्णु होता जा रहा है। खुलेपन का सबसे बड़ा पैरोकार अमेरिका खुद व्यापारिक प्रतिबंध लगाने पर जुट गया है, इसके कारण अन्य देशों में भी प्रतिबंध लगाने की प्रवृति पैदा हो रही है। जाहिर है अंतरराष्ट्रीय बाजार की चुनौतियां लगातार जटिल होती जा रही हैं।
ऐसे माहौल में यह जरूरी है कि भारत की सरकार विदेश व्यापार से जुड़ी नीतियों पर फिर से विचार करे। अनेक चुनौतियां तो हाल ही में पैदा हुई हैं और यह अच्छी बात है कि मोदी सरकार इन चुनौतियों से अवगत हैं और उनका सामना करने के लिए नीतिगत बदलाव करने मंे ज्यादा परेशानी नहीं होनी चाहिए। पर विदेश बाजार में टिकने की सबसे बड़ी गारंटी उत्पादों की उच्च गुणवत्ता और उत्पाद लागत का कम होना है। श्रम सस्ता होने के बावजूद भारत उच्च लागत की अर्थव्यवस्था है और इसके कारण यह अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाता है। बांग्लादेश जैसे देश ने भी बने बनाए कपड़ों के निर्यात में इसे पछाड़ डाला है। इसलिए विदेशी बाजार में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए पहले भारत को एक निम्न या कम से कम प्रतिस्पर्धी लागत वाली अर्थव्यवस्था बनना पड़ेगा। (संवाद)
अनिश्चित हो रहा है अंतरराष्ट्रीय माहौल
विदेश व्यापार की जटिल चुनौतियां
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-06-07 10:29
पिछले 23 मई को दो उल्लेखनीय घटनाएं घटी। उस दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक और कार्यकाल के लिए जनादेश मिला और उसी दिन अमेरिका ने भारत को दिया जा रहा जीएसपी (जेनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रीफेरेंस) समाप्त कर दिया। यह अमेरिका में भारत के होने वाले निर्यात के लिए एक बड़ा झटका था। जीएसपी की तहत अमेरिका व कुछ अन्य विकसित देश भारत जैसे विकासशील देशों को निर्यात संबंधी कुछ रियायतें देते हैं, ताकि वे अमीर देशों के बाजार में अपने उत्पाद बेच सकें। भारत इसका लाभार्थी रहा है, लेकिन मोदी सरकार के दूसरी बार शपथग्रहण करने के पहले ही अमेरिका ने भारतीय निर्यात को दी जा रही वह सुविधा समाप्त कर दी।