तेलंगाना में उनकी पार्टी के 12 विधायक पार्टी छोड़कर सत्तारूढ़ टीआरएस में शामिल हो गए। लेकिन उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है, क्योंकि कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व है ही नहीं। पंजाब में कांग्रेस की सरकार है और वहां मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्दर सिंह और मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू में ठनी हुई है। दोनों एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं और मुख्यमंत्री ने तो सिद्धू के मंत्रालय ही बदल डाले। उधर सिद्धू हैं कि अपने नये मंत्रालय का कार्यभार संभाल ही नहीं रहे है। उनके झगड़े को केन्द्रीय नेतृत्व ही सलटा सकता है, लेकिन केन्द्रीय नेतृत्व जब है ही नहीं, तो फिर वह झगड़ा सुलझाएगा कौन? कांग्रेस के नेताओं से मिलने से परहेज करने वाले राहुल गांधी ने सिद्धू से मुलाकात तो कर ली और उनकी शिकायत भी सुन ली, लेकिन कुछ किया नहीं। यानी अध्यक्ष के रूप में वे कांग्रेस के किसी पचड़े में पड़ने से फिलहाल परहेज कर रहे हैं। सिद्धू की शिकायतों को लेकर उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्दर सिंह से फोन पर शायद बात तक नहीं की है।
पंजाब वाला हाल राजस्थान में भी है। वहां मुख्यमंत्री अशोक गहलौत को हटाने का अभियान सचिन पायलट के समर्थक चला रहे हैं और उधर मुख्यमंत्री अपने बेटे की हार के लिए सचिन पायलट को जिम्मेदार बता रहे हैं। गहलौत सरकार के एक मंत्री ने तो मंत्रालय जाना ही बंद कर दिया था। राहुल गांधी ने कांग्रेस की दुर्गति के लिए अशोक गहलौत, कमलनाथ और चिदंबरम जैसे नेताओं के पुत्रमोह को भी जिम्मेदार बताया था, जिन्होंने दबाव बनाकर अपने बेटे के लिए कांग्रेस का टिकट ले लिया और पार्टी के अन्य उम्मीदवारों पर ध्यान न देकर चुनाव अभियान के दौरान अपने बेटों की जीत दिलाने मे ही व्यस्त रहे।
दिलचस्प बात यह है कि चिदंबरम और कमलनाथ के बेटे तो जीतकर लोकसभा में आ गए, पर अशोक गहलौत के बेटे बुरी तरह पराजित हो गए। राहुल की उस टिप्पणी के बाद कमलनाथ की स्थिति भी कमजोर हो गई है, लेकिन अशोक गहलौत की तो बहुत ही ज्यादा कमजोर हो गई है, क्योंकि सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा का त्याग नहीं किया है और उन्हें लगता है कि अशोक गहलौत से राहुल की नाराजगी उनके मुख्यमंत्री बनने का रास्ता प्रशस्त कर देगी।
लेकिन इधर राहुल ने कुछ इस तरह से कर्म सन्यास ले लिया है कि वे अध्यक्ष के रूप में अपने अधिकार का इस्तेमाल करना ही नहीं चाहते। वे कांग्रेस के आलाकमान की भूमिका से अवकाश ले चुके हैं। पर तथ्य यह भी है कि कांग्रेस के अध्यक्ष अभी भी वे ही हैं। कहने को तो कहा जा रहा है कि उन्होंने पार्टी का एक महीने का समय नया अध्यक्ष नियुक्त करने के लिए दिया है। पर सवाल उठता है कि उन्होंने तत्काल प्रभाव से अध्यक्ष पद से इस्तीफा क्यों नहीं दिया? और यदि इस्तीफा नहीं दिया, तो फिर एक महीने की अवधि के लिए वे कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में काम क्यों नहीं कर रहे हैं?
राजनीति में सत्ता लालुपता हद से ज्यादा बढ़ गई है और कोई अपने पद से खुद इस्तीफा नहीं देता। यदि कोई ताकतवर व्यक्ति इस्तीफा दे भी देता है, तो फिर कथित दबाव में वह इस्तीफा वापस भी ले लेता है। यही कारण है कि अनेक बार लोग इस तरह के इस्तीफे को नौटंकी भी कहते हैं। राहुल गांधी के इस्तीफे की इस पेशकश को भी कुछ लोग नौटंकी कह रहे हैं, हालांकि यह खबर भी कांग्रेस की ओर से संवाद माध्यमों में प्लांट कर दी जाती है कि राहुल अपने फैसले पर अडिग हैं और वापस अध्यक्ष पद पर नहीं बैठेंगे।
सवाल उठता है कि यदि राहुल अध्यक्ष पद से हटने के अपने मंशे से पीछे नहीं हटते हैं, तो फिर उनकी जगह दूसरे व्यक्ति को कांग्रेस का अध्यक्ष पद सौंपा क्यो नहीं जा रहा है? उनकी जगह प्रियंका गांधी भी कांग्रेस की अध्यक्ष बन सकती हैं, लेकिन राहुल ने खुद कहा कि वे चाहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उनका स्थान सोनिया परिवार का कोई अन्य व्यक्ति नहीं ले। सोनिया परिवार में तो इस समय खुद सोनिया के अलाव प्रियंका और ज्यादा से ज्यादा राबर्ट वाड्रा हैं। सोनिया अस्वस्थ रहने के कारण राजनीति में अब अपनी सक्रियता घटा चुकी हैं और अध्यक्ष दुबारा नहीं बनना चाहेंगी। राबर्ट वाड्रा राजनीति में अभी पूरी तरह सक्रिय ही नहीं हुए हैं और अनेक प्रकार के मुकदमे में फंसे हुए हैं।
यानी यदि परिवार यदि कोई व्यक्ति कांग्रेस का अध्यक्ष बन सकता है, तो वह प्रियंका ही हो सकती हैं और राहुल गांधी का इशारा साफ है कि वह नहीं चाहते कि उनके अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद प्रियंका कांग्रेस की अध्यक्ष बनें। वे सोनिया परिवार से बाहर के व्यक्ति को कथित तौर पर इस पद पर देखना चाहते हैं। और यदि वे ऐसा चाहते हैं, तो खुद किसी का नाम इसके लिए आगे क्यों नहीं करते। राजनीति में उनके पास अब अच्छा अनुभव है। वे कांग्रेस के तमाम नेताओं को अच्छी तरह समझ गए हैं। उनको सबसे बेहतर तरीके से पता होगा कि किस व्यक्ति के अध्यक्ष बनने पर पार्टी बेहतर तरीके से काम करेगी।
तो फिर नया अध्यक्ष चुनने के लिए वे खुद क्यो नहीं सक्रिय हो रहे हैं? वे किनके ऊपर यह भार छोड़ना चाह रहे है? सवाल बहुत सारे हैं और कांग्रेस का संकट भी गहरा रहा है। लेकिन इन सवालो का जवाब किसी के पास नहीं। किसी को पता नहीं कि आखिर राहुल गांधी चाहते क्या हैं।(संवाद)
कांग्रेस का नेतृत्व संकट
आखिर राहुल गांधी चाहते क्या हैं?
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-06-11 12:08
राहुल गांधी द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की मंशा जाहिर करने के दो सप्ताह होने को हैं, लेकिन अभी तक उन्होंने न तो अपना इस्तीफा औपचारिक रूप से दिया है और न ही वे अध्यक्ष पद के अपने दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं। इस बीच कांग्रेस में जहां तहां आपसी विवाद बढ़ रहे हैं और उन विवादों को शांत करने वाला कोई नहीं है। राहुल गांधी ने कांग्रेस के नेताओं से मिलना भी लगभग बंद ही कर दिया है। यानी कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अपनी भूमिका का पूरी तरह से त्याग कर रखा है।