लेकिन बीजेपी और उसके एनडीए सहयोगियों को 23 मई, 2019 को घोषित परिणाम में भारी बहुमत मिले। पंडित इस अप्रत्याशित परिणाम को समझने की कोशिश कर रहे हैं। जो भी हो, तथ्य यही है कि अब एक ऐसी सरकार है जिसे हम नहीं चाहते थे। यह सरकार मजदूर विरोधी थी और वह आने वाले समय में भी मजदूर विरोधी ही रहेगी। यह प्रो-कॉर्पोरेट थी और इसकी उस दिशा को बदलने की संभावना नहीं है।

आमतौर पर यह माना जाता है कि पुलवामा आतंकवादी हमला और भारत द्वारा बालाकोट हवाई हमले ने भाजपा और उनके सहयोगियों की शिथिलता को दूर कर दिया। सभी समाचार-पत्रों के फ्रंट पेजों ने मोदी की वक्तृत्व-कला की प्रशंसा की, जिससे वह राष्ट्रीय सुरक्षा को मुख्य खतरा बता सकते थे। 2014 में किए गए वादों का जिक्र भी पूरी तरह से ब्लैकआउट कर दिया गयाा और उन वादों को पूरा करने में मोदी सरकार की विफलता का भी कहीं जिक्र नहीं किया गया।

नरेंद्र मोदी कहते हैं कि वे भारत में केवल दो जातियों को पहचानते हैं - एक गरीब हैं और दूसरी वे हैं जो गरीबी से लड़ना चाहते हैं। प्रो-कॉर्पोरेट होने का एक बहुत चालाक छलावरण है! ऐसा नहीं है कि उन्हें किसी छलावे की जरूरत है - उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल में इतने सारे शब्दों का जाल बिछाया कि सभी उस जाल में फंसते चले गए।

भाजपा की नारा निर्माण फैक्ट्री एक नया नारा लेकर आयी हैः सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास। भाजपा कार्यालय में विभिन्न तस्वीरों में मोदी की माता और आडवाणी के पैर छूते हुए कई तस्वीरें हैं। जब यह सभी मीठी बातें और फोटो ऑप्संस खत्म हो जाएंगी, तो क्या रह जाएगा? रह जाएंगे वे सभी मुद्देे जो 5 मार्च, 2019 कन्वेंशन रिजॉल्यूशन में सूचीबद्ध किए गए थे।

क्या हम उस संकल्प को उस कागज की कीमत के बराबर भी नहीं कह सकते, जिस पर वह छपा है? क्या यह हमारे वास्तविक जीवन के मुद्दों के बारे में बात नहीं करता है? क्या हम राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर अपनी पेंशन की मांग को छोड़ सकते हैं? क्या राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर किसानों को उनकी उपज की कीमत के बारे में परेशान नहीं किया जा सकता है? समान वेतन, सरकारी कर्मचारियों की स्थिति, शिक्षा, स्वास्थ्य ... आदि की मांगें हैं।

हमें अपने सदस्यों को इन सभी मुद्दों के साथ नई मोदी सरकार का शांतिपूर्वक सामना करने के लिए फिर से संगठित करना होगा। हम उन्हें बहाने के पीछे छिपने की अनुमति नहीं दे सकते हैं। ‘हमें और समय दें, कांग्रेस ने पिछले 70 वर्षों से कुछ नहीं किया’। सवाल यह नहीं है कि कितने समय के लिए अनुमति दी जानी है, लेकिन सवाल यह है कि सरकार की नीति किस दिशा में जा रही है।

जब अप्रत्याशित परिणाम जनता के मानस पर छा गए, तो चुनाव आयुक्त के पक्षपातपूर्ण आचरण और ईवीएम के बारे में संदेह पैदा होना शुरू हो गया, भाजपा के गुंडों के बारे में खबर आने लगी कि वे लोगों को उनकी उंगलियों पर जबरन स्याही के निशान लगा रहे थे, ताकि वे अपना वोट नहीं कर सकें।

हम जो भी कहें, आज सरकार भाजपा की है और भाजपा की नीतियां किसी से छिपी नहीं हैं। उसकी नीतियां मजदूर विरोधी रही हैं और वे इन नीतियों पर चलने की कोशिश करेगी। वैसी स्थिति में यह निश्चित है कि मजदूर संगठनों से उसके टकराव होंगे। (संवाद)