तो क्या राहुल गांधी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इसलिए इस्तीफा दिया था, ताकि अन्य सारे कांग्रेसी अपने अपने पदों से इस्तीफा दे डालें? यदि यह सही है, तो इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ नहीं हो सकता। इसका कारण यह है कि आप हार के लिए सभी कांग्रेसी नेताओं को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। जो पार्टी की निर्णय प्रक्रिया को निर्धारित कर रहे थे, वे पार्टी की हार के लिए जिम्मेदार हैं, न कि पार्टी का वह स्थानीय नेता तो अपने लिए एक अदना टिकट तक नहीं पा सका था।
सच तो यह है कि राहुल के इस्तीफे के बाद कुछ महत्वपूर्ण इस्तीफे हुए थे। कमलनाथ ने मध्यप्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। राजबब्बर ने उत्तर प्रदेश के पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। पजाब के कांग्रेस अध्यक्ष ने भी इस्तीफा दे दिया था। हां, न तो कमलनाथ ने और न ही अशोक गहलौत ने मुख्यमंत्री के पदों से इस्तीफा दिया था और न ही अमरेन्दर सिंह ने पंजाब का मुख्यमंत्री पद छोड़ा था।
चूंकि यह चुनाव लोकसभा के लिए हो रहा था और पार्टी का चेहरा राहुल गांधी ही थे। टिकट बांटने से लेकर गठबंधन बनाने या न बनाने, घोषणापत्र तैयार करने से चुनावी अभियान चलाने, सबमें राहुल की भूमिका प्रमुख थी। इसलिए खुद इस्तीफा देकर उन्होंने अच्छा किया, लेकिन अन्य सभी कांग्रेसी नेताओं से इस्तीफा की उम्मीद लोकतांत्रिक उम्मीद नहीं कही जा सकती। यह एक तानाशाही उम्मीद है। तानाशाह के पास तो इस्तीफा वापस लेने का विकल्प रहता है, लेकिन उसके अनुयाइयों के पास यह विकल्प मौजूद नहीं रहता। जाहिर है, उनकी पार्टी के कुछ चुनिंदा नेताओं ने ही अपने पदों से इस्तीफा दिया था।
और राहुल गांधी को किसी से इस्तीफा मांगने की क्या जरूरत? अधिकांश पदों पर तो उनके द्वारा नियुक्त लोग ही बैठे हुए हैं। वे चाहते तो सबका उनके पदों से बर्खास्त कर सकते थे। लेकिन उन्होंने वैसा करने की जरूरत ही नहीं समझी और खुद को शहीद और त्यागी दिखाना शुरू कर दिया। लेकिन उनका त्याग भी एक नाटक साबित हो रहा है। वे कुछ दिनों तक तो नेताओं ने नहीं मिल रहे थे और अध्यक्ष पद की अपनी जिम्मेदारियों का पालन नहीं कर रहे थे, लेकिन अब वे पार्टी के काम में दिलचस्पी लेने लगे हैं और नेताओं से मिलने भी लगे हैं।
दरअसल राहुल गांधी का इस्तीफा ही एक बहुत बड़ा मजाक है। यह इस्तीफा उन्होंने कांग्रेस की उस कार्यसमिति को सौंपा है, जो उनके द्वारा गठित की गई है और जिसमें उनके चुने हुए चापलूस और चमचे शामिल हैं। कायदे से कांग्रेस कार्यसमित का चुनाव होता है, लेकिन पिछले 50 साल में सिर्फ दो बार कांग्रेस कार्यसमिति का चुनाव हुआ है। पहली बार यह चुनाव 1992 में हुआ था, जब नरसिंहराव कांग्रेस के अध्यक्ष थे और दूसरी बार 1997 में हुआ था और उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष सीताराम केसरी थे। 1971 से 2019 तक कांग्रेस में सिर्फ नरसिंहराव और और सीताराम केसरी ही गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति अध्यक्ष रहे हैं और दोनों के काल में कांग्रेस कार्यसमिति का चुनाव हुआ था। लेकिन न तो इन्दिरा गांधी और न ही राजीव गांधी और न ही सोनिया गांधी और न ही राहुल गांधी के कार्यकाल में कांग्रेस कार्यसमिति के चुनाव हुए।
इसलिए यदि राहुल को इस्तीफा देना ही था, तो पहले उन्हें स्वयं द्वारा गठित कांग्रेस कार्यसमिति भंग करना चाहिए था। फिर उन्हें कार्यसमिति का चुनाव करना चाहिए था और चुनी हुई कार्यसमिति को इस्तीफा देना चाहिए था। लेकिन उन्होंने वैसा कुछ नहीं किया, बल्कि स्वयं द्वारा गठित कार्यसमिति को इस्तीफा दिया, जो उनके चापलूसों से भरे हुए हैं और चापलूसी में उनसे इस्तीफा वापस लेने की गुजारिश कर रहे हैं।
सवाल उठता है कि आखिर राहुल चाहते क्या हैं? अब तक के उनके तेवर से तो यही पता चलता है कि पार्टी की सारी ताकत वे अपने पास रखना चाहते हैं, लेकिन पार्टी की जिम्मेदारियों से अपने को मुक्त रखना चाहते हैं। इसलिए वे ऐसे व्यक्ति को कांग्रेस का अघ्यक्ष बना हुआ देखना चाहते हैं, जो उनकी कठपुतली हो। कठपुतली प्रधानमंत्री बनाने का हश्र कांग्रेस देख चुकी है और यदि अध्यक्ष भी कठपुतली रहा, तो फिर कांग्रेस का हश्र क्या होगा, यह पूरा जमाना देखेगा।
सबसे गजब की बात यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उनका कठपुतली उत्तराधिकारी कौन हो, इसके चयन का भार भी राहुल नहीं उठाना चाहते। जब पत्रकारों ने उनसे उनके कांगे्रस अध्यक्ष पद के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि अब वे कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं है। फिर उनसे पूछा कि कौन बन रहा है कांग्रेस का नया अध्यक्ष, तो उन्होंने कहा कि नये अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया में वे शामिल नहीं है। सवाल उठता है कि आप नये अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया में शामिल क्यों नहीं हैं? और यदि आप शामिल नहीं हैं, तो फिर आपने प्रियंका के कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर रोक क्यों लगा रखी है? गौरतलब हो कि राहुल गांधी ने इस्तीफा देते हुए कहा था कि वे खुद तो इस्तीफा दे रहे हैं, लेकिन यह भी नहीं चाहते कि उनके परिवार का कोई और व्यक्ति कांग्रेस अध्यक्ष बने।
जाहिर है, राहुल गांधी कांग्रेस पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं और वह बिना किसी पद पर बैठे रहकर। उन्हें डर है कि यदि उनकी बहन प्रियंका अध्यक्ष पद पर आ गईं, तो वह कहीं पार्टी पर कब्जा न कर लें और उन्हें धकिया कर बाहर न कर दें। बहरहाल, जो नाटक राहुल ने शुरू किया था, उस पर पर्दा अभी तक नहीं गिरा है और नाटक जारी है। (संवाद)
कांग्रेस में अब इस्तीफों का दौर
नाटक जारी है
उपेन्द्र प्रसाद - 2019-06-29 09:57
कांग्रेस में अब इस्तीफों का दौर शुरू हो गया है। यह नाटक का अगला अध्याय है। यह अध्याय राहुल गांधी की उस तलाड़ से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने कहा कि कांग्रेस की हार के बाद उन्होंने तो इस्तीफा दे दिया, लेकिन और लोग अपने अपने पदों पर जमे हुए हैं। यह उन्होंने उस समय कहा जब युवा कांग्रेस के कार्यकत्र्ता उनके घर पर प्रदर्शन करते हुए उनसे अपना इस्तीफा वापस लेने की मांग कर रहे थे।