स्थापना दिवस की बात करें, तो उस दिन लालू यादव के घोषित राजनैतिक वारिस तेजस्वी उस समारोह में आए ही नहीं। उनकी बेटी मीसा भारती भी मुख्य समारोह में नहीं आईं और कहा गया कि वह दिल्ली में अलग से समारोह आयोजित कर रही थीं। लेकिन तेजस्वी पटना में रहते हुए भी वहां क्यों नहीं आए, इसके बारे में किसी तरह की सफाई न तो किसी ने दी है और न ही देने की कोशिश की है। उस रोज राबड़ी देवी और उनके बड़े बेटे तेज प्रताप उस समारोह के मुख्य आकर्षण थे। उससे संदेश यह गया कि राबड़ी का वरदहस्त अपने बड़े बेटे के सिर पर है, जिसने लोकसभा चुनाव में पार्टी के विरोध में वह काम किया, जिसके करने पर कोई भी पार्टी अपने वैसे सदस्य को निकाल बाहर कर देती है।

कहा जा रहा है कि तेजस्वी यह चाह रहे थे कि तेज प्रताप को पार्टी से बाहर कर दिया जाय, क्यांेकि लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने घोर अनुशासनहीनता का काम किया था। आज यदि राष्ट्रीय जनता दल का एक भी सांसद लोकसभा में नहीं है, तो उसका कारण तेज प्रताप ही हैं। उनके द्वारा जहानाबाद में उम्मीदवार खड़ा कर देने से वहां का राजद उम्मीदवार करीब 100 वोटों से चुनाव हार गया और तेज प्रताप के उम्मीदवार को 8 हजार मत प्राप्त हुए। सबसे बड़ी बात यह है कि विद्रोही उम्मीदवार खड़ा होने से आधिकारिक उम्मीदवार की ताकत घट जाती है, क्योंकि कार्यकत्र्ता बंट जाते हैं और वे अपने मुख्य विरोधी को हराने के बदले एक दूसरे से उलझे रहते हैं।

यही कारण है कि मीसा भारती भी पाटलीपुत्र से चुनाव हार गईं। वे कुछ हजार वोटों से हारी हैं। हालांकि उन्हें दोनों भाइयों का समर्थन हासिल था, लेकिन उनके दोनों भाइयों के समर्थक मीसा को जिताने से ज्यादा दिलचस्पी आपस में उलझकर एक दूसरे को औकात दिखाने में लगे हुए थे। यदि तेज प्रताप और तेजस्वी के समर्थक पाटलीपुत्र लोकसभा क्षेत्र में एक दूसरे से नहीं उलझते, तो हार क अंतर को पाटना मीसा के लिए मुश्किल नहीं होता। लेकिन वह भी चुनाव हार र्गइं। वैसे वे पहले से ही राज्यसभा की सांसद हैं और उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने की जरूरत भी नहीं थी। कहा जा रहा है कि तेजस्वी उनके लोकसभा चुनाव लड़ने के पक्ष मंे नहीं थे, लेकिन जिद करके मीसा चुनाव लड़ीं और हार गईं।

अब राजद लालू परिवार के गृहयुद्ध का अखाड़ा बन गया है। यह युद्ध दो भाइयों और एक बहन के बीच में हो रहा है। लालू राबड़ी की 6 अन्य बेटियां भी हैं, लेकिन वे राजनीति में नहीं हैं, अन्यथा यह बहुकोणीय युद्घ होता। वंशवाद की राजनीति में जब एक ही परिवार के एक से ज्यादा सदस्यों को आगे बढ़ाया जाता है, तो इस तरह का युद्ध अवश्यंभावी हो जाता है। यही कारण है कि जब संजय गांधी राजनीति में थे, तो इन्दिरा गांधी ने यह सुनिश्चित किया था कि राजीव राजनीति के आसपास भी नहीं दिखाई दें। संजय की मौत के बाद ही राजीव राजनीति में आए। सोनिया गांधी ने भी प्रियंका को राजनीति में तबतक सक्रिय नहीं होने दिया, जबतक राहुल गांधी कांग्रेस के एकछत्र और सर्वमान्य नेता नहीं हो गए। तमिलनाडु में करुणानिधि ने अपने दो बेटों और एक बेटी को राजनीति में प्रवेश करा दिया। वहां खूनी भिड़ंत हुई और दोनों बेटों के कुछ समर्थक मारे भी गए। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के परिवार का कलह हम देख चुके हैं। उसके कारण समाजवादी विनाश के कगार पर है और खुद मुलायम की ऐसी तैसी हो चुकी है। चैटाला परिवार में भी गृहयुद्ध चल रहा है, जबकि ओमप्रकाश चैटाला जेल में रहने के बावजूद राजनैतिक रूप से बहुत सक्रिय हैं। लेकिन उनका दल भी समाप्ति की ओर बढ़ रहा है।

और यही बिहार के राष्ट्रीय जनता दल में हो रहा है। सामंती मूल्यों के कारण भारत की राजनीति में वंशवाद है। इसलिए हम लालू यादव को ज्यादा दोष नहीं दे सकते, क्योंकि वे भी सामंती मूल्यो के गुलाम हैं। लेकिन सामंती मूल्यों के अनुसार पिता का उत्तराधिकारी बड़ा बेटा होता है। यहीं लालू ने गलती कर दी। उनका बड़ा बेटा तेज प्रताप है। लिहाजा विरासत का अधिकारी वह है, पर लालू ने अपने छोटे बेटे को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। यह बड़े बेटे को नागवार गुजर रहा है, हालांकि सार्वजनिक रूप से बार बार अपने छोटे भाई की तरफदारी कर रहा है। लालू की नौ संतानों में तेजस्वी आठवें नम्बर की संतान हैं। सबसे बड़ी संतान मीसा भारती हैं। आधुनिक मूल्य व्यवस्था के तहत बेटे और बेटी में कोई अंतर नहीं माना जाता। दोनों के समान अधिकार अपनी पैतृक संपत्ति पर कानूनी रूप से सुनिश्चित की गई है।

सामंती और आधुनिक मूल्य व्यवस्था के इस काॅकटेल युग में मीसा भारती को लगता है कि सबसे बड़ी संतान होने के नाते अपने पिता की सही वारिस वही हो सकती हैं। इसलिए उन्हें तेजस्वी का पार्टी पर एकाधिकार मंजूर नहीं। पर मां और पिता को नाराज करना वह नहीं चाहती और अपना खुला दावा पेश नहीं कर रही हैं, लेकिन कहीं न कहीं वह भी इस गृहयुद्घ में शामिल हैं। महिला होने के कारण पुरुषों के वर्चस्व वाले राजद में उनको ज्यादा समर्थन नहीं मिल रहा है, लेकिन वह भी अपने तरीके से विरासत की लड़ाई में शामिल हैं।

गृहयुद्ध ऐसे समय में हो रहा है, जब राजद का जनाधार एक जाति तक सिमट कर रह गया है और उसके विस्तार की अभी कोई संभावना भी दिखाई नहीं दे रही है। इस गृहयुद्ध से उसके अपने जाति जनाधार के छिन्न भिन्न होने की भी संभावना है। और एक बार जब वह बिखरना शुरू हो गया, तो फिर उसे मरने से कौन बचा पाएगा? (संवाद)