इससे चिकित्सा बिरादरी और नागरिक समाज में संबंधित व्यक्तियों के बीच असंतोष पैदा हो गया था, जिन्होंने उस आयोग के पुनर्गठन की मांग की थी। उन्होंने इस बिंदु पर सरकार को सुझाव भी प्रस्तुत किए थे। चिकित्सा परिषद में गलत कामों को ठीक करने के लिए प्रभावी उपाय करने की आवश्यकता थी। लेकिन संसद में पेश किया गया और मनमाने ढंग से पारित किया गया एनएमसी विधेयक आने वाले समय में कई नकारात्मक प्रभावों से भरा साबित होगा।

एमसीआई अनिवार्य रूप से एक लोकतांत्रिक निकाय था, जिसमें स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोग चुनाव के द्वारा अपने प्रतिनिधि भेजते थे। चुनने वाले लोग प्रत्येक राज्यों से हुआ करते थे। दूसरी ओर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग में 80 फीसदी नियुक्त सदस्य हैं जिनमें लोकतंत्र के लिए कोई स्थान नहीं है। वे भविष्य में सरकार की कठपुतली बन सकते हैं।

एनएमसी के किसी भी निर्णय को सरकार द्वारा विफल किया जा सकता है। यह ऐसे प्रतिष्ठित संवैधानिक संस्थान की स्वायत्तता को मार रहा है जैसा कि हाल के दिनों में कई अन्य संगठनों के साथ किया गया है। एनएमसी पूरी तरह से नौकरशाही और केंद्रीकृत निकाय है, जो राज्यों के हितों पर विचार किए बिना राज्यों में नियमों को लागू करने की शक्तियों से लवरेज है। यह देश के संघवाद की अवधारणा को मार देगा।

पूरी कवायद चिकित्सा शिक्षा में निजी क्षेत्र को खुला हाथ देना है क्योंकि सरकार के पास केवल 50 फीसदी सीटों के शुल्क निर्धारण का अधिकार होगा। बाकी को निजी चिकित्सा संस्थानों के प्रबंधन के हवाले छोड़ दिया जाएगा। केंद्र सरकार एनएमसी की राय पर विचार किए बिना न्यूनतम आवश्यकताओं के बिना मेडिकल कॉलेजों को अनुमति देने का अधिकार सुरक्षित रखेगी।

एक और पूरी तरह से अवांछित क्लॉज है भारत में एमबीबीएस स्नातकों के लिए मेडिकल प्रैक्टिस के लिए नेशनल एग्जिट टेस्ट की शुरुआत है। जिन लोगों ने एमबीबीएस कर लिया है, अब वे सीधे प्रैक्टिस नहीं कर पाएंगे। उसके पहले उन्हेे एक्जिट परीक्षा पास करना होगा। उसके बाद ही उन्हें प्रैक्टिस करने का अधिकार प्राप्त होगा। यह एक अनावश्यक बोझ है।

स्नातक जो पहले से ही परीक्षा दे चुके हैं, उन्हें पीजी सीट पाने के लिए दूसरे प्रयास में बैठने से मना कर दिया जाएगा। इसके अलावा उन लोगों के लिए बेहतर पीजी सीट पाने के लिए अंकों में सुधार का कोई दूसरा मौका नहीं है, जिन्हें अंतिम वर्ष की परीक्षा देनी है। एक समय के अंक पीजी प्रवेश में हमेशा के लिए मानदंड होंगे। चूंकि एक्जिट परीक्षा को फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन के साथ जोड़ा जाएगा, इसलिए इंडियन ग्रेजुएट्स को पीजी सीट मिलने की संभावना बहुत कम हो जाएगी।

सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के नए कैडर के माध्यम से आधुनिक चिकित्सा पद्धति का अभ्यास करने की समानांतर प्रविष्टि स्वास्थ्य सेवा के स्तर को नीचे लाएगी और अवांछनीय प्रथाओं को जन्म देगी। विदेशी नागरिकों को भारत में बिना किसी शर्त, नियम या लाइसेंस के अभ्यास करने की अनुमति होगी। यह लंबे समय में हमारी आबादी को विभिन्न बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों की भागीदारी के माध्यम से जोखिम में डाल देगा।

बहुत उम्मीदें थीं क्योंकि स्वास्थ्य मंत्री खुद एक डॉक्टर हैं। उनकी नाक के नीचे इस तरह के बिल का पारित होना उप पर उंगली उठाता है। (संवाद)