इन पार्टियों ने लोगों से किए गए वादों से मुंह मोड़ लिया, खासकर मुसलमानों से किए गए वायदों से। ऐसा क्यों किया, यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि उन्होंने विश्वासघात किया है। यह वास्तव में समझ से बाहर है कि जिस सदन में विपक्ष का बहुमत है, वह विवादास्पद विधेयक किस तरह से पारित कर सकता है? कांग्रेस के पांच सांसदों को मिलाकर कम से कम 22 विपक्षी सदस्य मतदान के दौरान राज्यसभा में मौजूद नहीं थे। कांग्रेस और सपा, एनसीपी के वरिष्ठ नेता शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल और तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, आईयूएमएल, सीपीआई और केरल कांग्रेस के एक-एक सदस्य भी मतदान के दौरान गायब थे। यह निश्चित रूप से एक योजनाबद्ध डिजाइन की हिस्सा है।
गौरतलब है कि सदन के पटल पर विधेयक पेश करने से ठीक पहले भाजपा ने एक व्हिप जारी किया था और अपने सदस्यों को सदन में उपस्थित रहने का निर्देश दिया था। लेकिन कांग्रेस को छोड़कर विपक्षी दलों और उनके नेताओं ने अपने सदस्यों को कोई निर्देश जारी नहीं किया। जाहिर है कि इससे कई सवाल खड़े होते हैं। हालांकि कांग्रेस ने व्हिप जारी किया है लेकिन वे पांच कांग्रेसी सांसद जिन्होंने अनुपस्थ्ति रहकर मतदान में हिस्सा नहीं लिया क्या कहना चाहेंगे?
रणनैतिक रूप से सदन से बाहर रहने के बजाय, विपक्ष अपनी ताकत का इस्तेमाल कर सकता था, ताकि वह सदन की किसी प्रवर समिति को विधेयक भेजने के लिए मजबूर कर सके। इससे सदस्यों की प्रतिष्ठा और छवि को बचाया जा सकता था। चूंकि 22 सदस्य पहले से ही मोदी के लिए प्रतिबद्ध थे, इसलिए उन्होंने इस तंत्र का सहारा नहीं लिया। वास्तव में कांग्रेस के सांसद संजय सिेह का संसद से एक दिन पहले इस्तीफा देना उनकी मंशा को स्पष्ट करता है। जिन अन्य चार कांग्रेस सांसदों ने सदन में अपने को अनुपस्थित किया, उनमें विवेक तन्खा, प्रताप सिंह बाजवा, मुकुट मीठी और रंजीब बिस्वाल शामिल थे।
उनके धोखे ने मोदी को आधुनिक भारत के नायक के रूप में पेश किया है। इसने उन्हें एक ऐतिहासिक जीत प्रदान की जिससे सरकार को तत्काल मौखिक तलाक की प्रथा पर रोक लगाने के लिए राज्यसभा टेस्ट पास करने की सुविधा मिली। संयुक्त विपक्ष ने नरेंद्र मोदी के एजेंडे को अवरुद्ध करने के लिए चट्टान की तरह खड़े होने का दावा किया था, जो बुरी तरह से टूट गया।
जबकि सीपीआई की अनुपस्थिति ने यह संदेश दिया कि पार्टी में राजनीतिक ज्ञान का अभाव है। पार्टी की करनी और कथनी में बहुत अंतर है। इसके विधायी विंग पर पार्टी की कोई पकड़ नहीं है। पार्टी नेतृत्व ने सांसद को ठोस निर्देश जारी किया होगा। वोट से बचना पार्टी की छवि को बढ़ावा नहीं देता है। इस मुद्दे पर जद (यू) का रुख सबसे ज्यादा निराशाजनक रहा है। इसके सुप्रीमो नीतीश कुमार यह संदेश दे रहे थें कि वे विधेयक के विरोधी हैं और उन्होंने अपने सांसदों को पूरी ताकत से इसका विरोध करने को कहा है।
वोटिंग के समय चार दलों एआईएडीएमके (13), जनता दल-यूनाइटेड (6), बीजेडी (7) और बीएसपी (4) के निर्णय से सरकार के पक्ष में संतुलन बिगड़ गया। विपक्ष को एक और बड़ा झटका राकांपा सुप्रीमो शरद पवार और उनकी पार्टी के सहयोगी और पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल के साथ मतदान के दौरान अनुपस्थिति से लगा। अब तथ्य यह है कि वास्तव में इन दलों ने विधेयक का समर्थन किया है। वे इस तथ्य से अवगत थे कि सदन से उनकी अनुपस्थिति सरकार को अपने मिशन को प्राप्त करने में मदद करेगी।
यह सच है कि बहस के दौरान इसके सदस्यों ने बिल के खिलाफ बात की लेकिन बाद में मतदान के समय बाहर चले गए। निस्संदेह नीतीश ने मुसलमानों को बेवकूफ बनाया। दरअसल वह वास्तव में भाजपा की धुन पर नाच रहे थे। यह एक तथ्य है कि जद (यू) के उच्च सदन से बाहर जाने के फैसले ने सरकार के पक्ष में और विपक्ष की एकता के खिलाफ नाजुक संतुलन को झुका दिया।
इन दलों के नेताओं के व्यवहार ने मुसलमानों को वैकल्पिक तंत्र की बात करने के लिए मजबूर किया है। यह रेखांकित करता है कि उन्हें पूरी तरह से हाशिए पर कर दिया गया है? लालू प्रसाद के राजद से जुड़ी एक आश्चर्य बात सामने आई। उनका एम-वाई समीकरण देश भर में प्रसिद्ध है। लेकिन राजद के सदस्य भी मतदान के दौरान सदन से बाहर चले गए। क्या मुसलमानों को विश्वास में लेने के बाद उन्होंने इसका सहारा लिया? ये धर्मनिरपेक्ष दल मुसलमानों को यह कहकर डराते हैं कि अगर मुसलमान उन्हें वोट नहीं देंगें, तो भाजपा सत्ता में आएगी और हिंदू राष्ट्र की स्थापना करेगी।
यह खतरनाक स्थिति है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि मुसलमान चुनावी प्रणाली के प्रति उदासीन हो सकते हैं। यह देश और उसकी राजनीति के लिए सबसे गंभीर स्थिति होगी। वास्तव में मुस्लिम समाज में चर्चा चल रही है कि उन्हें केवल कांग्रेस पार्टी में ही रहना चाहिए, लेकिन मुसलमानों का एक छोटा हिस्सा है जो कहता हैं कि इसका कांग्रेस के साथ रहने का कोई मतलब नहीं है, इसके बजाय शिक्षा और आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करें।
यह पहली बार नहीं है जब विपक्षी नेताओं ने मोदी और उनकी सरकार की मदद की है। उन्होंने सूचना का अधिकार विधेयक के मुद्दे पर उनका पक्ष लिया। विपक्ष आरटीआई विधेयक पर बुरी तरह विभाजित था। स्थिति इतनी खराब थी कि विपक्ष इस मुद्दे पर विभाजन को मजबूर नहीं कर सकता था। राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा ने कहा कि सरकार बिना किसी जांच के जल्दबाजी में विधेयक पारित कर रही है। संवेदनशील बिल जो समाज पर बड़े पैमाने पर प्रभाव डालते हैं, पर पूरी तरह से बहस होनी चाहिए। (संवाद)
विभाजित विपक्ष ने भाजपा को अजेय बनाया
विपक्ष के विश्वसनीय नेता के रूप में कांग्रेस विफल
अरुण श्रीवास्तव - 2019-08-02 10:27
एक बार फिर वही पुरानी कहानी राज्यसभा के पटल पर दोबारा देखी गई। ट्रिपल तलाक विधेयक को पराजित करने की अपनी प्रतिज्ञा के बावजूद वाम और धर्मनिरपेक्ष दलों ने भाजपा सरकार को मतदान अनुपस्थित रह कानून बनाने में मदद की। अगर इन ताकतों ने वोटिंग से परहेज नहीं किया होता तो बिल जरूर हार जाता।