इस विधेयक के खिलाफ मात्र 84 मत ही पड़े और विधेयक विरोधी अन्य पार्टियों के शेष सांसदों ने मतदान में हिस्सा ही नहीं लिया। सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि अनेक विधेयक विरोधी पार्टियों ने खुद ही मतदान के बहिष्कार का फैसला कर लिया। ऐस मौके पर पार्टियां आमतौर पर अपने सांसदों की उपस्थिति सुनिश्चित कराने और पार्टी के मत के अनुसार मतदान कराने के लिए व्हिप जारी करते हैं, लेकिन यहां तो खुद पार्टियां ही विधेयक का विरोध कर मतदान का बहिष्कार कर रही थीं। पार्टियां विरोध के बावजूद मतदान का बहिष्कार उसी हालत में करती हैं, जब उन्हें यह पता होता है कि उनके मतदान करने से भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि वे अल्पमत में हैं। लेकिन यहां तो विरोध और बहिष्कार करने वाली पार्टियोें को पता था कि वे बहुमत में हैं और मिलजुलकर यदि मतदान में हिस्सा लिया, तो विधेयक को पराजित कर देंगे। इसलिए यह एक गुत्थी है कि विरोध करने के बावजूद उन्होंने इस पारित होने क्यों दिया।

एक तर्क यह है कि जांच एजेंसियों का इस्तेमाल कर मोदी सरकार नेेेेेेे विपक्षी पार्टियों को बाध्य कर दिया कि वे बहस में चाहे जो भी कहें, लेकिन इस विधेयक के पारित होने मे बाधा न बनें। लेकिन यह तर्क गलत है, क्योंकि राम जेठमलानी जैसे सांसदों को सरकार इस तरह से ब्लैकमेल नहीं कर सकतीं। महबूबा मुफ्ती की पीडीपी को भी सरकार इस तरह से ब्लैकमेल नहीं कर सकती। नीतीश कुमार के दल के 6 सांसदों ने भी मतदान में हिस्सा नहीं लिया। वे भी केन्द्र सरकार द्वारा किसी प्रकार के ब्लैकमेल किए जाने के रेंज से बाहर हैं। यदि भाजपा उनकी सरकार से बाहर होकर उनकी सरकार को अल्पमत बना देती है, तो लालू यादव की पार्टी उनको समर्थन देने के लिए बैठी हुई है। जाहिर है, ब्लैकमेल वाला तर्क गलत है और सच्चाई कुछ और ही है।

दरअसल सच्चाई यह है कि वे पार्टियां खुद चाहती थीं कि विधेयक पारित हो जाए, क्योंकि बाहर से चाहे वे उस विधेयक का विरोध कर रही हों, पर अंदर ही अंदर उन्हें लग रहा था कि यह कानून बनना चाहिए। उन्होंने इस विधेयक के पक्ष में जो कुछ कहा वह व्यर्थ की बकवास से ज्यादा कुछ भी नहीं था। एक से बढ़कर एक कुतर्क दिए। किसी ने कहा कि शादी सिविल मामला है, तो फिर इस पर क्रिमिनल कानून क्यों बन रहा है। क्या उन्हें नहीं पता कि हिन्दू मैरिज एक्ट, जो विवाह के सिविल मामले से जुड़ा कानून है, यह प्रावधान करता है कि दूसरी शादी करने पर हिन्दू पुरुष को 7 साल की जेल होगी? दहेज का संबंध भी शादी से ही है। शादी की प्रक्रिया का एक हिस्सा तिलक भी है, जिसे ही दहेज कहा जाता है। क्या उन्हें यह पता नहीं है कि दहेज या तिलक अपराध घोषित हो चुका है और इस न केवल लेने वाले, बल्कि देने वाले को भी सजा का प्रावधान है।

एक और कुतर्क दिया गया कि जब सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि तीन तलाक अवैध है, तो कानून वह तलाक रही ही नहीं, तो फिर उसके कारण किसी को सजा क्यों मिले? भाई लोग गजब का तर्क चुनते हैं। यह सच है कि तीन तलाक एक बार कह देने मात्र से कानून की नजर में तलाक हुई ही नहीं, लेकिन ऐसा करने वाले पुरुष, उसके परिवार और रिश्तेदार यदि उसे तलाक मानकर ही उस महिला को घर से बेदखल करते हों, उसके बाद यह कानून अपना काम करेगा। यदि किसी ने पुरुष ने तीन तलाक बोल दिया और लेकिन इसे तलाक नहीं माना, बल्कि मजाक माना और अपनी पत्नी को बेघर करने के लिए बाघ्य नहीं किया, तो फिर वह महिला या उसके मां-बाप पुलिस के पास क्यों जाएंगे?

एक और कुतर्क है कि यदि पति जेल चला गया, तो उसकी पत्नी और बच्चे का क्या होगा। इस कुतर्क में पहला झोल तो यही है कि इस तरह से तलाक देकर जो पुरुष अपनी पत्नी और बच्चों को अपने घर से और जिंदगी से बाहर कर देते हैं, उनका क्या होता है? क्या तलाक देकर वे अपनी तलाकशुदा पत्नी को मासिक भुगतान करते हैं? शाहबानो को जब मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश जब कोर्ट ने दिया था, तो उन्होंने हंगामा खड़ा कर दिया था और इसे गैरइस्लामिक तक करार दिया था। इसलिए यह कहना बेकार है कि जेल में रहने वाले व्यक्ति की पत्नी और बच्चों का क्या होगा।

हालांकि कानून में उनके गुजारे की चिंता भी की गई है। पति की संपत्ति पर से उसका अधिकार तो समाप्त नहीं ही होगा, क्योंकि पति के जेल में रहने के बावजूद वह पत्नी बनी रहेगी। मुकदमे के दौरान पति और पत्नी के बीच समझौता होने की संभावना भी खुली रहेगी और समझौते की स्थिति में पति को जेल जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। वैसे आदमी के किसी भी अपराध में जेल जाने के बाद यह मानवीय सवाल तो खड़ा हो ही जाता है कि उसकी अनुपस्थिति में उसकी पत्नी और बच्चे का क्या होगा। लेकिन यह सवाल सिर्फ इसी कानून के लिए क्यों अन्य अपराधों वाले कानून के लिए क्यों नहीं।

जाहिर है, कानून के विरोध की कोई वजह नहीं होनी चाहिए, लेकिन मुस्लिम समुदाय पर कट्टरपंथी धार्मिक नेताओं की पकड़ मजबूत है और उनके डर से ही अनेक पार्टियों के नेता इस कानून का दिखावे के लिए विरोध करते रहे, लेकिन उन्होने इस बनने दिया, क्योंकि उन्हें भी लगता है कि इस कानून में कुछ भी बुरा नहीं है। (संवाद)