उस हार के बाद से ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बदहवाश हो गए हैं और वे विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। इस क्रम में उन्हों मुफ्त सेवाएं देने की घोषणाओं की झड़ी लगा दी है। दिल्ली के लोगों को 20 हजार लीटर प्रति महीने पानी के उपभोग पर पहले से ही मुफ्त पानी मिल रहा था। 400 यूनिट बिजली प्रति महीने खपत पर 50 फीसदी की सब्सिडी भी पहले से ही मिल रही थी। अब उन्होंने 200 यूनिट प्रति महीने उपभोग करने वाले बिजली उपभोक्ताओं की बिजली मुफ्त कर दी है। यानी जो परिवार 200 यूनिट से कम बिजली की खपत प्रति महीने करता है, उसे बिजली का बिल भरना ही नहीं पड़ेगा। उसका बिजली बिल दिल्ली की सरकार भरेगी। यानी 20 हजार प्रति महीने पानी की खपत और 200 यूनिट प्रति महीने बिजली का उपभोग करने वाले परिवारों को न तो पानी का बिल देना होगा और न ही बिजली का बिल भरना होगा।

मुख्यमंत्री केजरीवाल को इससे भी संतोष नहीं हुआ, तो उन्होंने उन लोगों के पानी के बिल भी माफ कर दिए जो पिछले कुछ सालों से बिल नहीं दे पाए थे। उच्च श्रेणी के कुछ इलाकों को छोड़कर पूरी दिल्ली के लोगों के ऊपर बकाया पानी के बिल को एक झटके में माफ कर दिया। ये वे लोग थे, जो प्रति महीने 20 हजार लीटर से ज्यादा पानी का उपभोग कर रहे थे। उनके पास बिल जाते थे, लेकिन वे बिल भरते नहीं थे, क्योंकि वे देखते थे कि 20 हजार लीटर प्रति माह से कम खपत करने वाले उनके पड़ोसियों के पास बिल नहीं आ रहा था और उन्हें भुगतान नहीं करना पड़ता था। ऐसे उपभोक्ताओं की संख्या लाखों में थी, जिनके ऊपर जल बोर्ड का बकाया हो गया था। मुख्यमंत्री केजरीवाल ले एक झटके में उनके बकाये को माफ कर दिया।

पानी और बिजली में ही राहत नहीं, बल्कि दिल्ली में महिलाओं के डीटीसी सफर को भी मुफ्त करने का एलान कर दिया गया है। इसे अगले अक्टूबर से लागू किया जाएगा। केजरीवाल ने दिल्ली मेट्रो में भी महिलाओं की मुफ्त यात्रा कराने की घोषणा कर दी है। लेकिन इस घोषणा के अमल में परेशानी है, क्योंकि दिल्ली मेट्रो पूरी तरह दिल्ली सरकार की नहीं है। यह केन्द्र और दिल्ली सरकार की संयुक्त उपक्रम है और अंतिम फैसला इसमें केन्द्र का ही होता है। केन्द्र सरकार ने केजरीवाल की महिलाओं की दिल्ली मेट्रो में मुफ्त सफर कराने की योजना का विरोध किया है। इसलिए ज्यादा संभावना इसी बात की है कि केजरीवाल की यह घोषणा अमल में नहीं आ सके।

जाहिर है, अरविंद केजरीवाल वह सारी कोशिशें कर रहे हैं, जिनसे अगला चुनाव जीता जा सके। केजरीवाल सरकार का काम अन्य किसी भी राज्य की सरकार से बेहतर है। इसलिए कायदे से जीत तो इसी की होनी चाहिए। यहां भ्रष्टाचार कम हो गया है, खासकर उन महकमों में जो केजरीवाल सरकार के कार्यक्षेत्र में आते हैं। सरकारी स्वास्थ्य सेवा की स्थिति भी पहले से बेहतर है और सरकारी स्कूलों की स्थिति भी सुधर गई है। वहां पढ़ाई की गुणवत्ता बढ़ी है और परीक्षा के परिणाम बेहतर आ रहे हैं। इसलिए केजरीवाल सरकार को एक सफल सरकार कहा जा सकता है और ऐसी सरकार की वापसी की उम्मीद की जा सकती है।

लेकिन आम आदमी पार्टी की समस्या यह है कि इसका नेतृत्व अपने कार्यकत्र्ताओं को खुद से जोड़ने में विफल रहा है, जबकि भारतीय जनता पार्टी सांगठिन दृष्टिकोण से बहुत मजबूत है। यदि अरविंद केजरीवाल के पास अपनी सरकार की उपलब्धियां हैं, तो भारतीय जनता पार्टी के पास कश्मीर और पाकिस्तान जैसे भावनात्मक मुद्दे हैं। केजरीवाल को पता है कि जब भावना का गुबार जोर मारता है तो सरकार की सफलता या विफलता से लोगों का कोई वास्ता नहीं रह जाता। यही कारण है कि जब कश्मीर की विशेष प्रदेश की मान्यता को मोदी सरकार ने समाप्त किया, तो केजरीवाल ने उस कदम का समर्थन किया। संसद के दोनों सदनों में आम आदमी पार्टी के सांसदों ने सरकारी निर्णय के पक्ष में वोट डाला। इस तरह कश्मीर को दिल्ली चुनाव में मुद्दा बनाने की कोशिश को कुंद करने की कोशिश केजरीवाल ने शुरू में ही कर दी।

बेहतर प्रदर्शन और अनेक सेवाओं को मुफ्त करने के बाद क्या केजरीवाल चुनाव जीत लेंगे? इसका सही जवाब दे पाना मुश्किल है, क्योंकि आम आदमी पार्टी के पास अब पहले की तरह कार्यकत्र्ताओं की व फौज न रही, जो सरकार की बात लोगों तक पहुंचा सके और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकत्ताओं द्वारा पैदा की गई चुनौतियों का जवाब दे सके। अरविंद केजरीवाल अब वन मैन आर्मी बन गए हैं और उन्हें लगता है कि उनके नाम पर ही मतदाता पार्टी को वोट दे देंगे। लेकिन दिक्कत यह है कि खुद अरविंद केजरीवाल की छवि अब पहले वाली नहीं रह गई है। पार्टी के नेतृत्व में से अनेक लोग पार्टी से बाहर जा चुके हैं और इसका असर पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ेगा ही। (संवाद)