भोपाल के खटलापुरा घाट पर बड़ी मुर्तियों के विसर्जन पर रोक लगाई गई थी, फिर भी यहां बड़ी मूर्ति का विसर्जन होता रहा। यदि प्रशासन विसर्जन करने वालों पर सख्त होता, तो विवाद की स्थिति बनती, इसलिए प्रशासन व्यवस्था बनाने तक अपनी जिम्मेदारियों का पालन करता रहा। शाम के समय से देर रात तक प्रशासन की मुस्तैदी रही, लेकिन घाट पर भीड़ कम होने के बाद प्रशासन भी निश्चिंत हो गया और आपदा प्रबंधन टीम की सक्रियता कम हो गई। जब अल सुबह इस बड़ी मूर्ति के विसर्जन के लिए युवा घाट पर गए, तो दो नाविक दो नावों पर लोहे की शीट डालकर छोटे तालाब के बीच में मूर्ति विसर्जन के लिए राजी हो गए। मूर्ति को नाव से धक्का देने में आसानी हो, इसके लिए क्षमता से अधिक लोग नाव पर सवार हो गए। बिना किसी सुरक्षा उपाय के आस्था के अति उत्साह में नाव पर इतने लोग सवार होकर तालाब के बीच में चले गए और ज्यादा भार से नाव के संतुलन बिगड़ जाने के बाद यह घटना हो गई। अचानक घटी इस घटना के बाद जब तक आपदा प्रबंधन की टीम सक्रिय होती, तब तक 11 लोगों की जान चली गई।

मध्यप्रदेश के कुछ मंत्रियों सहित अधिकांश राजनेताओं ने इस हादसे के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि ऐसे मौके पर प्रशासन को पूरे समय सचेत रहना चाहिए था, लेकिन प्रशासन लापरवाह रहा। उनका कहना है कि उत्सव के पहले नियम तय किए जाते हैं, लेकिन प्रशासन उन पर अमल नहीं कराता। सवाल यह है कि कई उत्सव समितियों के साथ-साथ हर जिम्मेदारों के साथ पुलिस-प्रशासन लगातार सुरक्षा एवं शांति के लिए बैठकें आयोजित करता है और व्यवस्था बनाता है। लेकिन यदि इस पर सख्ती करे, तो पूजा आयोजक इनके खिलाफ हो जाएंगे। इसे आस्था में खलल डालने की हरकत करार दिया जा सकता है। ऐसे में पुलिस एवं प्रशासन द्वारा लोगों को समझाया ही जा सकता है, न कि सख्ती से रोका जा सकता है।

बहुत सारे विसर्जन जुलूस शुरू से लेकर अंत तक इस तरह से निकाले जाते हैं कि रास्ते के हर लोग उनसे दूरी बनाकर ही चलते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है? उन्हें प्रशासन द्वारा रोके जाने से ज्यादा, स्वयं जिम्मेदार बनने की बात क्यों नहीं की जाती? हादसे के बाद अक्सर मांग उठती है कि प्रशासन को नियमों के पालन करवाने के लिए सख्त होना चाहिए था, लेकिन क्या व्यावहारिक तौर पर मूर्ति विसर्जन के समय पुलिस-प्रशासन की सख्ती चल सकती है? एक पुलिसकर्मी के अनुसार धार्मिक आयोजनों में भीड़ को नियंत्रित करना आसान नहीं होता। ज्यादा सख्ती दिखाने पर लोगों को लगता है कि धार्मिक आयोजनों में पुलिस-प्रशासन दखल दे रहा है, जिससे टकराव होने की संभावना हो जाती है। ऐसे में आयोजन शांति से हो, इस पर सारा ध्यान रहता है। पुलिस एवं प्रशासन द्वारा लगातार चेतावनी एवं नियमों के बनाए जाने के बावजूद इन हादसों के पीछे आपसी प्रतिस्पर्धा एवं नियमों की अनदेखी की जिद बड़े कारण हैं।

मध्यप्रदेश में मूर्ति विसर्जन में डूब कर मरने का यह पहला मामला नहीं है। इस साल ही अभी तक मिली सूचना के अनुसार उमरिया जिले में उमरार नदी में गणपति विसर्जन में 3 लोग बह गए, जिसमें से एक व्यक्ति की मौत हो गई। भोपाल के मुंगालिया के पास भी गणपति विसर्जन के दरम्यान एक 26 वर्षीय युवक राजकुमार की मौत हो गई। वह गांव के ही एक बरसाती नदी में मूर्ति विसर्जन करने गया था, जिसमें वह डूब गया। उल्लेखनीय है कि इस साल मध्यप्रदेश में भारी बारिश हो रही है। प्रदेश के सभी नदी-नाले एवं तालाब उफान पर है। प्रशासन लगातार लोगों को चेता रहा है कि इन जगहों पर जाने में सावधानी रखें, लेकिन लोगों की लापरवाही उनकी जान को जोखिम में डाल रही है।

पिछले साल भी मध्यप्रदेश में गणपति विसर्जन में कई लोगों को डूबने से मौत हो गई थी। ग्वालियर के महाराजपुर गांव में मूर्ति विसर्जन के दरम्यान तालाब मे डूबने से एक-एक करके चार बच्चों की मौत हो गई थी। छिंदवाड़ा जिले के जुन्नारदेव के रिछेड़ा गांव में मूर्ति विसर्जन में पेंद नदी में दो किशोर डूब गए, जिसमें पंकज विश्वकर्मा की मौत हो गई। पालाचैरई गांव में एक कुएं में मूर्ति विसर्जित करते समय एक युवा की मौत हो गई। सिवनी जिले के बरघाट क्षेत्र में मूर्ति विसर्जन के दौरान तालाब में गोड़ेगांव का युवा डूब गया। छतरपुर जिले के नौगांव में गररोली गांव के धसान नदी में मूर्ति विसर्जित करने गए युवाओं में से एक छात्र डूब गया, जिसकी मौत हो गई।

बहुत सारे मामले में लोगों को बारिश में नदी-नाले की गहराई का अंदाजा नहीं होता और वे मूर्ति को बीच धार तक ले जाने की जिद में गहरे पानी में उतर जाते हैं या फिर बिना किसी सुरक्षा इंतजाम के छोटे नाव पर बड़ी संख्या में लोग आस्था के कारण बीच नदी या तालाब में चले जाते हैं, जिसकी वजह से भी ऐसे दुःखद हादसे होते हैं। हादसे के दोषियों पर उचित कार्रवाई हो और प्रदेश में ऐसे हादसे न हो, इसके लिए तय नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाना जरूरी है। भोपाल की घटना में पुलिस ने नाविकों की लापरवाही मानते हुए उन पर आपराधिक प्रकरण दर्ज कर लिया है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए हैं। इस जांच का निष्कर्ष जो भी निकले, लेकिन ऐसे हादसों को रोकने की जिम्मेदारी पूजा आयोजकों और विसर्जन में शामिल लोगों को लेनी पड़ेगी। उन्हें सोचना होगा कि धर्म एवं आस्था में जिद और प्रतिस्पर्धा के बजाए तय नियमों का पालन ज्यादा जरूरी है और यह किसी भी तरह से आयोजन में कोई बाधा नहीं, बल्कि उसे खुशनुमा बनाने के उपाय हैं। (संवाद)