उन्होंने आगे कहा, ‘‘एक धारणा यह है कि यह माना जाता है कि यह मुस्लिम समुदाय पर है कि वे अपने व्यक्तिगत कानून के सुधारों के मामले में अपना नेतृत्व खुद करें। पर इस तरह के मुद्दे पर कोई समुदाय खुद आगे नहीं बढ़ता। यह राज्य का कर्तवय है कि देश के नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता तैयार करे। उसके पास वैसा करने की विधायी क्षमता है। गोवा के मामले का हवाला देते हुए अदालत ने पूछा कि केंद्र वैसा क्यों नहीं कर सकता?
सर्वोच्च न्यायालय की इस टिप्पणी ने समान नागरिक संहिता को लाने के मोदी सरकार के संकल्प को मजबूत किया है। यह संघ परिवार के मुख्य एजेंडे का हिस्सा है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड के तहत, देश में विवाह, तलाक, संपत्ति के अधिकार, विरासत और रखरखाव सहित सभी व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों को एक धर्मनिरपेक्ष छतरी के तहत एकीकृत तरीके से लाया जाएगा। अभी अगल अलग धार्मिक समुदाय अपने निजी कानूनों का पालन करते हैं।
भाजपा का तर्क है कि यद्यपि 1956 में हिंदू कानूनों को संहिताबद्ध किया गया था, लेकिन देश के सभी नागरिकों के लिए कोई समान कानून लागू नहीं है।
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल लाल नेहरू ने 1954 में संसद में हिंदू कोड बिल का बचाव करते हुए कहा था, ‘‘मुझे नहीं लगता कि वर्तमान समय में भारत में इसे आगे बढ़ाने की कोशिश करने का समय परिपक्व है।’’ आज मोदी के पास यूसीसी ( यूनिफाॅर्म सिविल कोड) लाने के लिए जनादेश और क्षमता के साथ-साथ इच्छाशक्ति भी है।
कमजोर और विभाजित विपक्ष का लाभ उठाते हुए, प्रधान मंत्री ने पहले ही संसद में दो विवादास्पद विधेयकों - ट्रिपल तालक और राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के बावजूद अपने दूसरे कार्यकाल में धारा 370 को निरस्त कर दिया। राम मंदिर का मुद्दा कोर्ट में है। हालांकि विधि आयोग ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यूसीसी न तो आवश्यक है और न ही इस स्तर पर वांछनीय है’, जब सर्वसम्मति का अभाव है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के घोषणापत्र में इसे लाने का वादा किया है। हालांकि, सरकार की तत्काल प्राथमिकता आर्थिक स्थिति और कश्मीर से निपटना है। एनआरसी पर पूर्वोत्तर में परेशानी है। फिर तीन राज्य विधानसभाओं - महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में जल्द ही चुनाव होने हैं। इसलिए यूसीसी पर काम उसके बाद किया जा सकता है।
यूसीसी के समर्थकों का तर्क है कि यह लंबे समय से लंबित है। इस मुद्दे पर संविधान सभा की बहस के दौरान चर्चा की गई जहां बी.आर. अंबेडकर इसके पक्ष में थे, लेकिन संविधान सभा के कई सदस्यों ने इसका विरोध किया। इस प्रकार यह राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में से एक के रूप में संविधान में जोड़ा गया था।
दूसरे, मोदी की न्यू इंडिया की परिकल्पना 25 वर्ष से कम की आबादी वाले युवा भारत की है। ये युवा वैश्विक विचारों से प्रभावित हैं और यूसीसी की सराहना करेंगे। तीसरा यह राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देगा। चैथा यह लैंगिक न्याय प्रदान करेगा। पांचवां, यूसीसी सभी नागरिकों के लिए एक कानून प्रदान करेगा।
विरोधी बताते हैं कि मुस्लिम यूसीसी को अपनी धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अतिक्रमण मानते हैं, हालांकि कुछ इस्लामिक देशों ने सभी के लिए एक समान कानून अपनाया है।
लेकिन आज, यह मुद्दा कानूनी से ज्यादा राजनीतिक है और हर बार जब यह विषय आता है, तो इसके समर्थकों और विरोधियों दोनों में गरमागरम बहस होती है। राजनीतिक दलों के लिए, कोई आम सहमति नहीं है और उनमें से ज्यादातर वोट बैंक की राजनीति के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। कांग्रेस राजनीतिक सहमति चाहती है। समाजवादी पार्टी ने भाजपा पर मुस्लिम वोटों के लिए ऐसा करने का आरोप लगाया है। भाजपा की सहयोगी पार्टी जेडी (यू) ने कूटनीतिक रूप से सभी हितधारकों के साथ परामर्श के लिए कहा है। राकांपा व्यापक स्पेक्ट्रम पर चर्चा चाहती है। एआईएमआईएम इसका विरोध कर रही है। शिवसेना इसका समर्थन करती है। तो सर्वसम्मति कहाँ है?
हालाँकि, सभी के लिए एक कानून होने में ही भला है। मुसलमानों के रुख को समझ सकते हैं लेकिन कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों को कानून में एकरूपता लाने के मामले में राजनीति नहीं करनी चाहिए। अस्सी के दशक में भी राजीव गांधी ने एक स्वैच्छिक नागरिक संहिता शुरू करने की संभावना का पता लगाया था। एक राष्ट्र, एक कानून समय की आवश्यकता है और जितनी जल्दी आता है, उतना ही बेहतर है कि यह एक संवेदनशील मुद्दा है और आम सहमति बनाने के लिए अधिक सार्वजनिक बहस और विचार-विमर्श करके इसपर आगे बढ़ना चाहिए। (संवाद)
सुप्रीम कोर्ट ने काॅमन सिविल कोड की हिमायत की
मोदी को इसे संभव बनाने का जनादेश प्राप्त है
कल्याणी शंकर - 2019-09-18 10:09
क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले सप्ताह सर्वोच्च न्यायालय के आग्रह के बाद एक समान नागरिक संहिता के लिए आगे बढ़ेंगे? सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह एक बार फिर से इस तरह के एक कोड के पक्ष में अपनी राय दी है, जो यह बताता है कि संविधान के निर्माताओं को उम्मीद थी कि राज्य इस तरह के कोड में लाएगा। न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने शुक्रवार को कहा, ‘‘हालांकि हिंदू कानूनों को वर्ष 1956 में संहिताबद्ध कर दिया गया था, लेकिन देश के सभी नागरिकों पर एक समान नागरिक संहिता लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है।’’