जावड़ेकर न केवल केन्द्र के एक मंत्री हैं, बल्कि वे भारतीय जनता पार्टी के एक नेता भी हैं और भारतीय जनता पार्टी को अगला विधानसभा चुनाव जीतना है। पिछले लोकसभा चुनाव में उसने सातों सीटें जीत ली थीं और केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की करारी हार हुई थी। सच तो यह है कि 7 में से पांच सीटों पर उसके उम्मीदवार तो तीसरे नंबर पर चले गए थे और उनमें से अधिकांश की जमानत भी जब्त हो गई थी। मत प्रतिशत के मामले में आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बाद थी।

यदि लोकसभा चुनाव के नतीजे को देखें, तो भारतीय जनता पार्टी को चुनाव जीतने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए, लेकिन 2014 और 2015 के दिल्ली के चुनाव नतीजे भाजपा के लिए डरावने हैं। 2014 में भी भाजपा ने दिल्ली की सातों सीटें जीती थी, लेकिन 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में उसे मात्र तीन सीटें ही मिली थीं। 70 में 67 सीटें आम आदमी पार्टी को मिली थी। 2015 के चुनावी नतीजे को दुहराने का खतरा तो इस बार नहीं है, लेकिन केजरीवाल की पार्टी को हराना कोई बायें हाथ का खेल भी नहीं।

दिल्ली ने यह बार बार साबित किया है कि यहां के मतदाता लोकसभा और विधानसभा चुनावों मे अलग अलग सोच के आधार पर वोट डालते हैं। 1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यहां जीत मिली थी, लेकिन 1993 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सरकार बन गई। 1998 के लोकसभा चुनाव में यहां के लोगों ने भाजपा को पसंद किया था, लेकिन कुछ महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हो गई और शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बन गई। यही इतिहास 2014 और 2015 के चुनाव मंे दुहराया गया।

यही कारण है कि इस बार भाजपा कोई मौका नहीं खोना चाहती। केजरीवाल ने चुनाव जीतने की लगभग सारी तैयारी कर रखी है। 20 हजार लीटर प्रति महीने पानी वह प्रदेश की जनता को मुफ्त तो दे ही रहे थे अब प्रति महीने 200 यूनिट बिजली भी मुफ्त देने लगे हैं। महिलाओं को डीटीसी बसों में मु्फ्त सवारी का उपहार भी वे देने जा रहे हैं। प्रस्ताव तो उन्होंने मेट्रो में भी महिलाओं की मुफ्त सवारी कर डाला है, लेकिन केन्द्र सरकार वहां अड़ंगे डाल रही है। केजरीवाल प्रशासन भ्रष्टाचार से तो पूरी तरह मुक्त नहीं हुआ है, लेकिन यह बहुत हद तक कम हो गया है। जल माफिया का सफाया हो गया है और सरकारी दफ्तरों से दलालों का कब्जा समाप्त हो गया है। अब छिपे चोरी भ्रष्टाचार की कुछ वारदातें केजरीवाल सरकार के अधीन के दफ्तरों में हो जाता होगा, लेकिन जो नंगा नाच हो रहा था, वह समाप्त हो गया है।

शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी केजरीवाल सरकार ने बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। उसका मोहल्ला अस्पताल योजना सुपर हिट साबित हो गई है। दिल्ली सरकार की अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ गई हैं और उनकी सलाह पर निजी संस्थानों में होने वाली जांच के लिए भी भुगतान करने की जरूरत मरीजों को नहीं पड़ती। भुगतान सरकार की ओर से ही होता है। स्कूलांे के हालात भी बहुत बेहतर हुए हैं। अब वहां शिक्षा का स्तर सुधरा है और 10वीं व 12वीं बोर्ड परीक्षा के उनके छात्रों के नतीजे निजी स्कूलों के छात्रों के नतीजे से बेहतर हो रहे हैं।

जाहिर है, केजरीवाल की सरकार एक बेहतर सरकार के रूप में काम कर रही है और भारतीय जनता पार्टी को इसी बात की चिंता है। लोकसभा में लोगों ने मोदी को पसंद किया, इसका मतलब यह नहीं है कि विधानसभा के चुनाव में वे भी वे मोदी की पार्टी को ही पसंद करेंगे। पिछले चुनाव में कांग्रेस को आम आदमी पार्टी से ज्यादा वोट मिले थे। इसका कारण यह है कि लोगों को लग रहा था कि दिल्ली की केन्द्र सरकार का मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है, लेकिन इस बार मुकाबला तो भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच में ही होना है, इसलिए भाजपा के जो कट्टर विरोधी हैं, उनकी पसंद आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार ही होंगे। कांग्रेस की हालत वैसे भी बहुत खराब है। राहुल गांधी ने कांग्रेस के नेतृत्व से किनारा कर लिया है और उनके द्वारा प्रमोट किए गए नेताओं को दरकिनार किया जा रहा है। इसके कारण कांग्रेस को मिले वोटों का एक बड़ा हिस्सा इस बार आम आदमी पार्टी की ओर जाना तय है।

यही कारण है कि दिल्ली में प्रदूषण और पर्यावरण की राजनीति भारतीय जनता पार्टी कर रही है। और उसके लिए मोर्चा प्रकाश जावड़ेकर ने संभाला हो कभी भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हुए करते थे। लेकिन प्रेस कांफ्रेंस करने में मंत्रीजी ने थोड़ी जल्दबाजी कर दी है। इसका कारण है कि दिल्ली में भीषण प्रदूषण का समय अभी आया ही नहीं है। यह सही है कि पिछले साल के अक्टूबर महीने में इस साल के अक्टूबर महीने से ज्यादा ज्यादा प्रदूषण था। लेकिन असली प्रदूषण दिवाली के समय से शुरू होता है और उसमें अभी लगभग 15 दिन बाकी हैं। सबसे ज्यादा प्रदूषण तो हरियाणा और पंजाब में जलने वाली खूंटियों या परालियों से होता है। भाजपा को अभी उसका इंतजार करना चाहिए था। इसका कारण यह है कि यदि प्रदूषण का स्तर एक बार फिर परालियों और दिवाली के कारण दिल्ली में भयानक रूप प्राप्त करता है, तो फिर उस प्रदूषण की जिम्मेदारी भी भाजपा को ही लेनी पड़ेगी, क्योकि केन्द्र में उसकी सरकार है और परालियों को जलाने की जगह कोई वैकल्पिक रूप से ठिकाने लगाने की जिम्मेदारी उसकी है, केजरीवाल सरकार की नहीं। (संवाद)