नई दिल्ली में दिल की बीमारियों से संबंधित एक सेमिनार को संबोधित करते देश के प्रमुख हृदय रोग विशेषज्ञ और सीबिया नर्सिंग होम के डायरेक्टर डॉ एसएस सीबिया ने कहा कि हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के मुताबिक दिल की बीमारी का जो खतरा 50 साल से अधिक की उम्र वाले व्यक्तियों को रहता था उससे भी ज्यादा खतरा अब 20 साल के नौजवान भी पर मंडरा रहा है। इसकी वजह सिर्फ हमारा खान-पान और जीवनशैली है और इससे हम और हमारी पीढ़ी सिर्फ अपनी आदतों और खानपान में बदलाव के कारण ही बच सकते हैं वरना आने वाले दिनों में दिल की बीमारियों का आंकड़ा और भी भयावह होने वाला है।

डॉ० सीबिया ने कहा कि देश में दिल के मरीजों की तादाद इतनी तेजी से बढ़ने का कारण खानपान और रहन सहन में बदलाव, खाने में जंक फूड, फास्ट फूड, खाने की अधिकता, भरपूर नींद न लेना और शारिरिक व्यायाम न करना भी प्रमुख कारणों में से एक है।
सीबिया मेडिकल सेंटर लुद्याना के निदेशक डॉ० सीबिया ने कहा कि अधिक कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन के कारण भी मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसके अलावा अधिक ऊर्जा वाला आहार जिसमें उच्च कार्बोहाइड्रेट्स और अधिक वसा वाले भोजन भी लोगों को दिल की बीमारी की तरफ धकेल रहे हैं। उन्होंने कहा कि हाल ही में एक अध्ययन में पाया गया है कि कार्बोहाइड्रेट्स और रिफाइंड शुगर या चीनी भी दिल के लोगों के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है यही कारण है कि भारत में उच्च मृत्यु दर के जोखिम बढ़ रहे हैं।

डॉ० सीबिया ने कहा कि अब दिल के रोगियों को घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि मेडिकल साइंस ने दिल की जानलेवा बीमारी से निजात पाने के लिए अब देश में एक नई तकनीकी आ गयी है जिसे ईसीपी का नाम दिया गया है। इस तकनीक से इलाज कराने में जिसमें मरीज की जान जाने का खतरा ना के बराबर होता है क्योकि मरीज के शरीर में कोई चीरफाड़ भी नहीं की जाती है।

ईसीपी तकनीक से दिल के मरीजों के इलाज में इंजेक्शन के माध्यम से शरीर में कुछ दवाइयां डाली जाती हैं और मात्र 1 घंटे का उपचार सत्र शल्य शल्य चिकित्सा के बिना होता है। साथ ही सप्ताह में 3 से 7 सिटिगस में किये गये उपचार के बाद मरीज़ बिलकुल ठीक हो जाता है।

ईसीपी तकनीक के पूरी तरह दर्द रहित और चीरफाड़ रहित होने के कारण मरीज को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता भी नहीं होती और वह अपने रोज़ के काम काज को पूरी तरह कर सकता है। अब तक इस तकनीक से लाखों दिल के मरीज़ों का इलाज सफलता पूर्वक किया जा चुका है और यह तकनीक अब पूरी तरह मेडिकल साइंस से अनुमोदित भी है।