वे कौन-से कारण हैं और वे कौन-सी परिस्थितियां हैं जिनके चलते आजादी के 70 साल के बाद भी हमारे देश में लोकतंत्र कायम है? इस महत्वपूर्ण विषय पर एक लंबी चर्चा संपन्न हुई। सभी वक्ताओं की यह राय थी कि इसका श्रेय जवाहरलाल नेहरू को जाता है। नेहरू ने प्रधानमंत्री के रूप में संविधान तो बनाया ही, उसके साथ-साथ ऐसे संस्थानों की नींव भी डाली जिन्होंने लोकतंत्र के चतुर्दिक विकास में सहायता की। इन संस्थाओं मंे सर्वोच्च न्यायालय, शिक्षा आयोग, परमाणु ऊर्जा आयोग, योजना आयोग आदि संस्थाएं शामिल हैं। हमने अपनी न्यायपालिका को इतना शक्तिशाली बनाया है कि उसने एक प्रधानमंत्री तक का गद्दी से उतार दिया।
यह एक संयोग था कि भारत के साथ दुनिया के, विशेषकर एशिया और अफ्रीका के अनेक देश आजाद हुए। इन सभी देशों में लंबे समय तक आजादी के आंदोलन चले। इन आंदोलनों का नेतृत्व करने वाले नेताओं ने अपने-अपने देश मेें अपार लोकप्रियता हासिल की। परंतु इन नेताओें की मृत्यु के बाद और कुछ मामलोें में तो उनके जीवनकाल में ही वहां लोकतंत्र कमजोर हो गया।
परंतु भारत में ऐसा नहीं हुआ। अनेक अन्य कारणों के अलावा भारत में लोकतंत्र मजबूत बने रहने का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी था कि देश का नेतृत्व जवाहरलाल नेहरू के हाथ मेें था जो स्वभाव और प्रशिक्षण से महान डेमोक्रेट थे। उन्होंने वर्षों पहले देशवासियों को यह आश्वासन दिया था कि वे किसी भी हालत मेें कभी तानाशाह नहीं बनेंगे।
वर्ष 1938 मेें उन्होंने अंग्रेजी पत्रिका ‘मार्डन रिव्यू‘ में एक लेख लिखा था। वे प्रायः छद्म नाम से लेख लिखा करते थे। यह लेख उन्होंने चाणक्य के नाम से लिखा था। वे लिखते हैंः ‘‘कभी-कभी ऐसा लगता है कि परिस्थितियांे में परिवर्तन होते-होते वह अपना डेमोक्रेट मुखौटा फेंककर तानाशाह बन सकता है। यह भ्ंाी संभव है कि वह तानाशाह बनकर भी प्रजातंत्र के नारे लगाता रहे। हमने देखा है कि इन्हीं नारों के सहारे फासिज्म उत्पन्न हुआ है। परंतु ऐसा नहीं होगा क्योंकि जवाहरलाल नेहरू फास्सिट नहीं है- न विचारों से और न स्वभाव से। उसका चेहरा और उसकी आवाज बताती है कि वह फास्सिट हो ही नहीं सकता। वह फिर से कहना चाहता है कि वह किसी भी हालत में फासिस्ट नहीं बनेगा।‘‘ नेहरूजी ने जीवन भर अपना यह वादा निभाया। वे इतने लोकप्रिय थे कि वे एक क्षण में तानाशाह बन सकते थे।
उनके इन गुणों को पहचान कर ही गांधीजी ने देशवासियों को आश्वासन दिया था कि नेहरू के हाथांे में भारत सुरक्षित रहेगा। 3 अक्टूबर 1929 के ‘‘यंग इडिया‘‘ में गांधीजी ने नेहरू के बारे मंे लिखा थाः यदि उसमें एक योद्धा जैसा साहस और अतिउत्साह है तो एक गंभीर राजनीतिज्ञ का विवेक भी है। वह निश्चित ही समय से बहुत आगे सोचने वाला एक अतिवादी भी है। इसके साथ ही वह इतना नम्र और व्यवहारिक भी है कि किसी मुद्दे पर टूटने की स्थिति आने पर वह समझौता करने में संकोच नहीं करता। वह स्फटिक की तरह शुद्ध है। उसकी सत्यवादिता संदेह से परे हैं। वह ऐसा निडर बादशाह है जिसे गलत कार्य करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। राष्ट्र उसके हाथों में सुरक्षित है)।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भारत सहित दुनिया के अनेक देशों ने, विशेषकर एशिया-अफ्रीका के देशों ने आजादी हासिल की थी। इन देशों ने एक लंबे संघर्ष के बाद आजादी हासिल की थी। इन सभी देशों में आजादी की लड़ाई का नेतृत्व जिन प्रमुख नेताओं ने किया था उन्होंने आजादी के बाद अपने-अपने देशों का शाासन संभाला। ऐसे महान नेताओं में शामिल थे मिस्र के नासिर, इंडानेशिया के सुकर्णों, बर्मा के आंग सेन, श्रीलंका के भंडारनायके, घाना के एन्क्रूमा आदि।
इन सभी ने (आंग सेन को छोड़कर) अपने जीवनकाल में ही अपने शासन में तानाशाही प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित किया था। इन सबके शासनकाल भी लंबे थे। जैसे नासिर सन् 1956 से 1970 तक मिस्र के राष्ट्रपति रहे। एनक्रमा का कार्यकाल सन् 1951 से 1966 तक रहा। इन्होंने स्वयं को सत्ता में बनाए रखने के लिए एक सेनाध्यक्ष के रूप में शासन किया। इंडोनेशिया में बड़ी संख्या में कम्युनिस्टों का कत्लेआम किया गया। श्रीलंका में शासन का संचालन कुछ इस ढं़ग से किया गया कि वहां के अल्पसंख्यकों (तमिल भाषा भाषी) को पूरी तरह से दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर रखा गया और उनपर तरह-तरह की ज्यादतियां की गईं। बर्मा ने आंग सान के नेतृत्व में सन् 1948 में आजादी हासिल की। परंतु आंग सेन की हत्या कर दी गई और उसके बाद बर्मा में सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। बर्मा में आज भी पूरी तरह से लोकतंत्र नहीं है। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने आश्वस्त किया था कि उनका देश सेक्युलर लोकतंत्र रहेगा परंतु उनका यह वायदा ज्यादा दिन नहीं चला और वहां लोकतंत्र कायम नहीं रहा।
परंतु भारत का अनुभव भिन्न रहा। नेहरूजी ने सन् 1938 में ही आश्वासन दिया था कि वे किसी भी हालत में तानाशाह नहीं बनेंगे। उन्होंने अपना यह वायदा जीवनपर्यन्त निभाया। उन्होंने 17 वर्ष तक राज किया। इन 17 वर्षों में उनकी लोकप्रियता में रंच मात्र भी अंतर नहीें आया। इसका मुख्य कारण यह था कि इस दरम्यान उन्होंने राजनीतिक रूप से देश को मजबूत रखा। परंतु इसके साथ ही उन्होंने देश की आर्थिक और सामाजिक नींव भी मजबूत की। उन्होंने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया। भारी-भरकम बड़े उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित किए गए। खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए बड़े-बड़े बांध बनवाए। अकेले भाखड़ा नंगल बांध ने गेंहू के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाया।
राजनैतिक क्षेत्र में एक अत्यधिक संवेदनशील संविधान बनाया गया। देश के प्रत्येक वयस्क नागरिक को मताधिकार दिया। इनमें महिलाओं को भी बराबर का अधिकार दिया। नेहरू के नेतृत्व में कांग्र्रेस ने तीन चुनाव लड़े और जीत हासिल की। सन् 1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद भी समय पर चुनाव होते रहे।
नेहरूजी ने 17 वर्षों में देशवासियों के मनोमस्तिष्क में लोकतंत्र का बीज अंकुरित कर दिया। एक समय उन्होंने कहा था कि वास्तव में लोकतंत्र उच्चतम मानवीय मूल्यों का प्रतीक है।
सामाजिक क्षेत्र में उन्होंने हिन्दू कोड बिल पारित कर अविश्वसनीय करिश्मा किया था। हिन्दू कोड बिल के माध्यम से महिलाओं को पुरूषों के बराबर अधिकार दिया गया। भारी-भरकम और कभी-कभी हिंसक विरोध के बाद भी उन्होंने हिन्दू कोड बिल को कानून का रूप दिया। उन्होंने जीवन भर अंधविश्वास, साम्प्रदायिकता, दकियानूसी रवैयांे के विरूद्ध प्रचार किया। उनके अनुसार लोकतंत्र समाज में जाति और धर्म आधारित संगठनों का कोई स्थान नहीं है। वे अपने भाषणों में हिन्दू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मुस्लिम लीग पर लगातार हमला करते थे।
उनकी राय थी कि लोकतंत्र में मजबूत प्रतिपक्ष आवश्यक है। वे बार-बार मतदाताओं से अपील करते थे कि वे प्रतिपक्ष के सशक्त नेताओं को चुनकर संसद में भेजें। वैचारिक मतभेदों के बावजूद उन्होंने आरएसएस, हिन्दू महासभा, साम्प्रदायिक मुस्लिम संगठनों और कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रतिबंध नहीं लगाया। उन्होंने बार-बार अल्पसंख्यकों को आश्वासन दिया कि वे अपने आपको पूरी तरह सुरक्षित समझें।
विदेश नीति के क्षेत्र में उन्होंने गुटनिरपेक्ष समूह की नींव डाली जो विष्वषांति का मजबूत गढ़ बन गया। गुटनिरपेक्ष नीति के कारण नव-आजाद देशों को पश्चिमी पूंजीवादी देशों और समाजवादी देशों के दबाव से मुक्ति मिली। समाजवादी देषों, विशेषकर सोवियत संघ ने इन देशों को बिना शर्त हर संभव सहायता दी। नेहरू ने जीवन भर वैज्ञानिक सोच पर जोर दिया। यही वे कारण हैं जिनसे आजादी के 70 साल के बाद भी हमारे देश में मजबूत लोकतंत्र कायम है। (संवाद)
नेहरू के कारण आज देश में लोकतंत्र कायम है
उन्होंने देश को एक अनूठा संविधान दिया
एल एस हरदेनिया - 2019-11-25 11:19
दिनांक 25 नवंबर 1949 को संविधान को अंतिम रूप से पारित किया गया था। इसी संविधान से देश का प्रशासन संचालित हो रहा है। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसी संविधान के सहारे देश में लोकतंत्र की ऐसी नींव डाली जो आजतक पूरी तरह से पुख्ता है।