राज्य सूचना आयोग के एक अहम फैसले के बाद राज्य सरकार ने पिछले महीने इस बात का निर्णय लिया। मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग ने फैसले में यह कहा, ’’शासन एवं सभी संबंधित लोक प्राधिकारियों से यह अपेक्षित है कि वे यह सुनिश्चित करें कि सभी लोक सेवक अनिवार्य और आवश्यक रूप से प्रतिवर्ष अपनी संपत्ति का विवरण दें और किसी नागरिक के आवेदन के बिना भी ऐसी जानकारी सार्वजनिक की जावे और वेबसाइट पर डाली जाए ताकि नागरिकों की अपने लोक सेवकों पर सतत् निगरानी रह सके।‘‘

विधानसभा में विपक्ष के उप नेता चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी ने पिछले साल फरवरी में सामान्य प्रशासन विभाग और पुलिस मुख्यालय में सूचना के अधिकार के तहत आवेदन लगाया था। चौधरी राकेश सिंह ने बताया, ’’मैंने दोनों विभागों के लोक सूचना अधिकारियों से आइ.ए.एस. एवं आइ.पी.एस. अधिकारियों द्वारा दाखिल तीन साल की संपत्ति के विवरण की कॉपी की मांग की थी, पर उन्होंने आवेदन खारिज कर दिए। दोनों विभाग के अपीलीय अधिकारियों ने भी मेरे विरूद्ध फैसला सुनाया। फिर मुझे राज्य सूचना आयोग जाना पड़ा। आखिरकार राज्य सूचना आयोग ने जनहित में फैसला सुनाया।‘‘ मुख्य सूचना आयुक्त पी.पी. तिवारी का कहना है, ’’सूचना का अधिकार कानून पारदर्शी एवं भ्रष्टाचार मुक्त शासन के लिए महत्वपूर्ण कानून है। लोक सेवकों की संपत्ति के खुलासे से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। इसलिए हमने विभिन्न नियमों एवं कानूनों के अध्ययन के बाद यह माना कि लोक सेवकों की संपत्ति को वेबसाइट पर डाल देना चाहिए और यह जनहित में है। इस दायरे में नेता एवं सभी विभागों के अधिकारी-कर्मचारी आते हैं। इसके अलावा भी जो लोकहित के मामले होते हैं, उन पर लोकहित की दृष्टि से विचार कर फैसला दिया जा रहा है।‘‘

आर.टी.आई. कार्यकर्ता अजय दुबे का कहना है, ’’प्रदेश में सूचना के अधिकार के तहत आयोग के कई अहम फैसले आए हैं, जिनकी बदलौत पारदर्शी शासन व्यवस्था की अपेक्षा हम भविष्य में कर सकते हैं.‘‘ अजय दुबे ने भी लोकसभा चुनाव से पहले सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मांगी थी कि चुनाव के पूर्व प्रदेश में कितने पुलिस अधिकारियों के तबादले के लिए पैरवी की गई। इस सूचना पर भी हड़कंप मच गया था। (संवाद)