वर्तमान रूप में महिला आरक्षण का विरोध करे नेता इसमें संशोधनों के मामले में दो खेमे में बंटे हुउ हैं। एक बड़ा खेमा महिलाओं के आरक्षण के अंदर पिछड़े वर्गों, दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों के लिए अलग अलग कोटे की मांग कर रहा है, जबकि मुलायत सिंह यादव चुनावी क्षेत्रों को महिलाओं के कलए आरक्षित किए जाने के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि महिलाओं के लिए आरक्षण टिकटों में किया जाय। कानून बनाकर पार्टियों के लिए 20 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने के लिए बाध्यकारी बना दिया जाए। यदि कोई पार्टी इस प्रावधान कर उल्लंघन करे तो उसकी मान्यता रद्द कर दी जाय।

दूसरी तरफ जनता दल (यू), राष्ट्रीय जनता दल और बहुजन समाज पार्टी आरक्षण के अंदर आरक्षण की मांग कर रहे हैं। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी उसी मांग की ओर बढ़ रही है।

विधेयक के मौजूदा स्वरूप में दलितों और आदिवासी महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान है। जो सीटें दलितों और आदिवासियों के लिए पहले से आरक्षित हैं, उनका एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित किया जा रहा है। लेकिन बसपा अध्यक्ष मायावती और जनता दल (यू) के अध्यक्ष शरद यादव को यह व्यवस्था मंजूर नहीं वे चाहते हैं कि दलितों और आदिवासियों के लिए पहले से आरक्षित सीटों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाय। महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों का चुनाव अनारक्षित सीटों से किया जाय और उनमें से दलित महिलाओं को आरक्षण दिया जाय।

यदि ऐसा किया जाता है तो दलित- आदिवासी साढ़े 22 फीसदी और एक तिहाई महिलओं के लिए आरक्षित सीटों के साथ कुल आरक्षित सीट करीब 56 फीसदी हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार 50 फीसदी से ज्यादा सीटों को आरक्षित नहीं किया जा सकता। जाहिर है दलित और आदिवासी महिलाओं को दलित कोटे के अंदर से ही आरक्षण दिया जा सकता है, ताकि कुल आरक्षित सीटें 50 फीसदी के अंदर ही रहे।

अल्पसंख्यक महिलाओं को आरक्षण देने में भी सांवैधानिक बाधा है। धार्मिक आधार पर आरक्षण् नहीं दिया जा सकता। धार्मिक आधार पर प्थक मतदाता वर्ग के कारण देश का विभान हो गया था। उसके कारण हमारे संविधान निर्माताओं ने धार्मिक आधार पर आरक्षण को असंभव बना रखा है। इसलिए धार्मिक आधार पर महिलाओं के लिए भी अलग से आरक्षण कर पाना संभव नहीं दिख रहा है।

पिछड़े वर्गों की महिलाओं को आरक्षण देने में समस्या यह है कि दलितों और आदिवासियों की तरह उन्हें पहले से लोकसभा और विधानसभाओं में आरक्षण नहीं मिल रहा। दलितांे और आदिवासी महिलाओं के लिए तो दलितों और आदिवासियों के कोटे से एक तिहाई अलग कर कोटे का प्रावधान किया गया है, लेकिन पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए तो सामान्य सीटों से ही कोटा देना पड़ेगा। अन्यथा एक विकल्प यह हो सकता है कि पहले पिछड़े वर्गों के लिए 27 फीसदी आरक्षण कर दिया जाय और उनके एक तिहाई को पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया जाय। लेकिन ऐसा करने से भी कुल आरक्षित सीटें 50 फीसदी की लक्ष्मण रेखा से ज्यादा हो जाती हैं।

जाहिर है सीटों के आरक्षण के मामले में सरकार विरोधियों के प्रस्तावों को स्वीकार करने की हालत में नहीं है। वह चाहकर भी वैसा नहीं कर सकती, क्योंकि संविधान उसे इसकी इजाजत नहीं देता। वह गर चाहे तो मुलायम सिंह यादव के प्रस्ताव को मानकर गतिरोध समाप्त कर सकती है।

पार्टियों को टिकटों में आरक्षण करने के लिए बाध्य करने पर कोटा के अंदर कोटा का मामला ही समाप्त हो जाएगा। तब सभी पार्टियां अपने राजनैतिक आधार और दर्शन के अनुसार महिलाओं के वर्गों का निर्धारण कर सकते हैं। पर सवाल यह उठता है कि क्या केन्द्र सरकार पार्टी टिकटों में महिलाओं के आरक्षण के फार्मूले पर तैयार हो पाएगी?

इसकी संभावना बहुत ही कम है। महिला आरक्षण के धुर समर्थक भी इस प्रस्ताव को मानने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं, क्योंकि इससें पार्टी टिकटों पर चुनाव लड़ रही महिलाओं की संख्या तो बढ़ेगी, लेकिन जिस अनुपात में वे चुनाव लड़ेंगी, उसी अनुपात में वे शायद जीतकर नहीं आएं। डर है कि पार्टियां महिलाओं को उन सीटों से टिकट दें, जहां से पार्टी अपने को कमजोर महसूस करती हैं।

लेकिन यह डर पूरी तरह सही नहीं हैं। जो पार्टियां सत्ता की प्रबल दावेदारी के साथ चुनाव लड़ती हैं, वे सभी सीटों में अपने सशक्त उम्मीदवारों को ही खड़़़ा करती हैं। वे कोई सीट गंवाने के लिए नहीं लड़ती। सच तो यह है कि पार्टी अपनी मजबूत सीट पर भले ही कमजोर उम्मीदवार खड़ा कर दे, लेकिन कमजोर सीट पर हमेशा मजबूत उम्मीदवार ही उतारना चाहती है।

मुलायम के फार्मूले के तहत भले ही जीतने वाली महिलाओं की संख्या सीटें आरक्षित करने वाले फार्मूले से कुछ कम हो, लेकिन वे फिर भी वर्तमान स्तर से बहुत ऊपर होंगी। लेकिन उस फार्मूले पर गंभीरता से विचार किया ही नहीं गया है।

सर्वदलीय बैठक में सब अपनी अपनी बातें करते हैं और चले जाते हैं। बंद दिमाग से की गई बैठकों से कोई नतीजा नहीं निकलता। फिर भी बैठकें होती है। पर उन बैटकों का मतलब क्या है? (संवाद)