शबरी और केवट की संतानों ने बता दिया कि उन्हें राम मंदिर से पहले रोटी, रोजगार और खेत के लिए पानी चाहिए। उन्होंने बता दिया कि उन्हें विभाजनकारी नागरिकता कानून और एनआरसी नहीं बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, सुकून और भाईचारा चाहिए। उन्होंने यह भी बता दिया कि गौरक्षा के नाम पर झारखंड को सांप्रदायिक गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं है। उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि उन्हें विकास के नाम पर राज्य के जल-जंगल-जमीन और अन्य प्राकृतिक संसाधनों को लूटने की कॉरपोरेट घरानों को खुली छूट देना स्वीकार नहीं किया जा सकता। नक्सली उन्मूलन के नाम पर बेगुनाह आदिवासियों को मारा जाना भी उन्होंने मंजूर नहीं किया। उन्होंने एक देश-एक विधान के नाम पर जम्मू-कश्मीर के दो टुकडे कर उसका विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने की कवायद को भी खारिज कर दिया। कुल मिलाकर जिन-जिन मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने भाजपा के लिए वोट मांगे थे, आदिवासी बहुत झारखंड की जनता ने उन सभी मुद्दों को सिरे से खारिज कर दिया।
पिछले एक साल में झारखंड ऐसा पांचवा राज्य है, जहां भाजपा को सत्ता से बेदखल होना पडा है। पिछले साल दिसंबर में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ में भाजपा को हार का मुंह देखना पडा था। फिर लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए जिसमें महाराष्ट्र भाजपा के हाथ से निकल गया और हरियाणा में वह अपनी हार के बावजूद चुनाव नतीजों के बाद गोवा की तर्ज पर खरीद-फरोख्त और जोडतोड के सहारे सरकार बनाने में कामयाब हो गई।
दरअसल झारखंड में भाजपा की पिछले पांच साल से चल रही राज्य सरकार के पास अपनी ऐसी कोई उपलब्धि नहीं थी, जिसके लिए वह जनता से वोट मांगती। पिछले पांच साल के दौरान इस आदिवासी बहुल राज्य में भाजपा की सरकार आदिवासियों के हितों के खिलाफ जितने काम कर सकती थी और गरीब आदिवासियों का जितना ज्यादा उत्पीडन कर सकती थी, उसने किया। इसी वजह से झारखंड के आदिवासियों में नाराजगी थी।
रघुबरदास सरकार ने आदिवासियों की हजारों एकड जमीन एक पूंजीपति घराने को बिजली घर लगाने के लिए दे दी थी और उनके विरोध को बेरहमी से कुचल दिया था। उन दस हजार से ज्यादा आदिवासियों पर देशद्रोह का मामला दर्ज कर दिया था, जिन्होंने अपने घर के बाहर पत्थरों पर यह लिख दिया था कि जो संविधान में आदिवासियों को अधिकार दिए हैं, हम उसकी बात करेंगे और उन अधिकारों के खिलाफ सरकार के किसी भी फैसले को मंजूर नहीं करेंगे। किसान विरोधी काश्तकारी कानून में बदलाव को भी सूबे के लोगों ने पसंद नहीं किया।
सूबे की सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों की बहाली का मुद्दा बार-बार उठता रहा। हाई स्कूल शिक्षकों की नियुक्ति में दूसरे राज्यों के उम्मीदवारों को अवसर दिए जाने का मामला भी खूब उछला। राज्य लोकसेवा आयोग की एक भी परीक्षा पिछले पांच सालों में नहीं हो पाई। अस्थायी शिक्षकों, आंगनबाडी सेविकाओं और सहायिकाओं पर लाठी चार्ज की घटनाओं से भी राज्य सरकार के प्रति नाराजगी थी।
पिछले पांच साल के दौरान नफरत से प्रेरित अपराधों और अपराधियों के लिए यह राज्य अभ्यारण्य बन गया था। पूरे पांच साल के दौरान मॉब लिंचिंग की 22 घटनाएं सूबे में हुई और इन घटनाओं को अंजाम देने वाले तत्वों को न सिर्फ राज्य सरकार की सरपरस्ती हासिल रही बल्कि केंद्र सरकार के मंत्री भी मॉब लिंचिंग के गुनहगारों का सार्वजनिक तौर फूलमाला पहनाकर अभिनंदन करते रहे।
ऐसा नहीं है कि भाजपा नेतृत्व को झारखंड की सियासी हवा का अंदाजा नहीं था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष तथा गृह मंत्री अमित शाह को अच्छी तरह मालूम था कि वहां इस बार का चुनावी मैदान भाजपा के लिए बहुत आसान नहीं है और कोई चमत्कार ही भाजपा की सत्ता में वापसी करा सकता है। खुफिया एजेंसियों के जरिए भी उन्हें लगातार जमीनी हकीकत की जानकारी मिल रही थी। इसीलिए झारखंड का चुनाव महाराष्ट्र और हरियाणा के साथ नहीं कराया गया, जबकि प्रधानमंत्री मोदी पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की बात अक्सर करते रहते हैं।
झारखंड का चुनाव अगर महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव के साथ कराया जाता तो मोदी और शाह चुनाव प्रचार के लिए झारखंड को पर्याप्त समय नहीं दे पाते। लिहाजा भाजपा के इन दोनों शीर्ष नेताओं की सुविधा का ध्यान रखते हुए चुनाव आयोग ने पूरी तरह से भाजपा के सहयोगी दल की भूमिका निभाई। महज 81 सीटों वाली विधानसभा का चुनाव उसने तीन सप्ताह में पांच चरणों में कराया, ताकि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को वहां चुनाव प्रचार के लिए ज्यादा से ज्यादा समय मिल सके। हालांकि चुनाव आयोग की यह हिकमत अमली भी भाजपा के किसी काम नहीं आ सकी। (संवाद)
झारखंड में अहंकार और नफरत का एजेंडा खंड-खंड
धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश काम नहीं आई
अनिल जैन - 2019-12-26 10:29
झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर तमाम एग्जिट पोल के अनुमान बता रहे थे विधानसभा त्रिशंकु रहेगी और भाजपा सबसे बडी पार्टी के रूप में उभरेगी। संभवतः यही अंदाजा भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भी था। इसी आधार पर उम्मीद जताई जा रही थी कि जिस तरह पिछले दिनों हरियाणा में और उससे पहले गोवा में भाजपा ने सरकार बनाई थी, उसी तरह झारखंड में भी उसकी सरकार बन जाएगी। इसीलिए पार्टी की ओर से ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) और झारखंड विकास मोर्चा के नेताओं से बातचीत शुरू हो गई थी। झारखंड के लिए भाजपा के केंद्रीय प्रभारी ओम माथुर और कुछ अन्य नेता भी मतगणना वाले दिन सुबह ही रांची पहुंच गए थे। मतगणना के दौरान शुरुआती दौर में टेलीविजन चैनलों पर भाजपा के तमाम प्रवक्ता कह भी रहे थे कि सबसे बडे दल के रूप में राज्यपाल की ओर से सबसे पहले सरकार बनाने का न्योता भाजपा को ही दिया जाएगा। लेकिन जब दोपहर बाद तस्वीर साफ हो गई और यह भी साफ हो गया कि झारखंड के मतदाताओं ने सूबे की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस कडाके की सर्दी में आधी रात तक जागने या तडके नींद से उठने की तकलीफ नहीं दी है। यानी झारखंड मुक्ति मोर्चा जेएमएम, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के महागठबंधन को स्पष्ट बहुमत से ज्यादा सीटें मिल गईं और विधानसभा में अकेले सबसे बडा दल भी जेएमएम ही रहा।