अरविंद केजरीवाल का यह आत्मविश्वास निराधार है। उन्होंने जनता से किए गए अपने अधिकांश वायदे पूरे कर दिए, जिनका लाभ दिल्ली के लोग उठा रहे हैं। जब 5 साल पहले उन्होंने सत्ता संभाली थी, तो दिल्ली के 58 फीसदी घरों में ही दिल्ली जल बोर्ड के पाइप से पानी पहुंचता था। अब 93 फीसदी घरों में जल बोर्ड के पाइप का पानी पहुंच रहा है। जहां पाइप का पानी नहीं पहुंचता, वहां दिल्ली जल बोर्ड का टैंकर पानी लेकर पहुंचता है। पहले दिल्ली जल बोर्ड का आधा से ज्यादा पानी वाटर माफिया के पास पहुंचता था और वे 100 गुनी कीमत तक उसी पानी को दिल्ली वासियों तक पहुंचा देते थे। जिनके घरों में जल बोर्ड का कनेक्शन लगा होता था, उनमें से अनेकों के घरों में पाइप से पानी नहीं पहुंचता था और वे वाटर माफिया से पानी खरीदने को मजबूर होते थे। कोढ़ में खाज की तरह जल बोर्ड बिना पानी सप्लाई किए हुए उन्हें बिल भी भेज दिया करता था।
केजरीवाल ने जल आपूर्ति में व्याप्त अराजकता को न केवल समाप्त कर दिया, बल्कि 20 हजार लीटर प्रति महीने तक पानी इस्तेमाल करने वाले घरों में पानी को मुफ्त कर दिया। वाटर माफिया का पूरी तरह उन्मूलन कर दिया और जहां जल बोर्ड की पहुंच नहीं थी, वहां तक जल बोर्ड को पहुंचा दिया। जल आपूर्ति में केजरीवाल की सफलता अकेले ही उनकी सरकार को दुबारा जीत दिलाने में समर्थ है, लेकिन इसके अलावे लगभग सभी क्षेत्रों में उन्होंने ऐसे काम किए, जिनका लाभ दिल्ली के लोगों को सीधे मिल रहा है। स्वास्थ्य सेवा बेहतर कर दी। सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज होने लगा। बिजली बिल को आधा कर दिया गया और पिछले कुछ महीनों से तो 200 यूनिट प्रति महीने बिजली सभी के लिए फ्री कर दिया गया। बिजली और जलापूर्ति विभाग के सारे भ्रष्टाचार समाप्त हो गए और उनकी आपूर्ति भी बेहतर कर दी गई।
दिल्ली सरकार के तहत आने वाले कार्यालयों को भ्रष्टाचार से लगभग मुक्ति भी मिल गई। दफ्तरों पर पहले दलालों का खुला कब्जा रहता था। दलाल तो अब भी कुछ रह गए हैं, लेकिन अब वे अपना काम चोरी छिपे ही करते हैं, खुलकर नहीं। भ्रष्टाचार कुछ अब भी हैं, लेकिन यह बहुत कम हो गया है और बिना रिश्वत दिए यदि कोई अपना सही काम कराना चाहता है, तो यह विकल्प अब उसके पास उपलब्ध है। इन सबके अलावा कुछ महीनों से महिलाओं की डीटीसी में यात्रा भी फ्री कर दी गई है। उन्हें अब टिकट के पैसे देने नहीं पड़ते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि दिल्ली वासियों के लिए इतनी फ्री सेवाओं का प्रबंध करने के बावजूद दिल्ली सरकार के खजाने में पैसा बच जाता है। केजरीवाल ने यह स्पष्ट कर दिया जाय कि यदि सरकारें खजाने को नहीं लूटें, तो जनता को अनेक फ्री सुविधाएं देने के बावजूद खजाने में रूपया बच सकता है।
यही कारण है कि भाजपा के लिए भी आम आदमी पार्टी को विधानसभा चुनाव में हराना मुश्किल दिख रहा था और उसकी केन्द्र सरकार ने अपनी हारी बाजी पलटने के लिए 1731 अनियमित कालोनियों को नियमित करने का पाशा फेंका, लेकिन लगता है कि अधिकारियों ने उसकी इस योजना को ही विफल कर दिया। मोदीजी ने घोषणा की दी कि उन्होंने अनियमित कालोनियों को नियमित कर दिया है और इसका लाभ 40 लाख लोगों को मिलेगा। इसके लिए उन्होंने एक धन्यवाद रैली भी आयोजित कर ली और कथित रूप से जनता का धन्यवाद भी हासिल कर लिया, लेकिन डीडीए ने अपने साईट पर यह स्पष्ट कर रखा था कि यह न तो अनियमित कालोनियां का नियमितकरण है और न ही उनके मकान नियमित किए जा रहे हैं, बल्कि निवासियों को सिर्फ उनके मकानों का मालिकाना हक दिया जा रहा है। उन कालोनियों के लोगों को यह जानकर झटका लगा कि प्रधानमंत्री घोषणा कुछ कर रहे हैं डीडीए कुछ और ही बता रहा है। उन्हें अपने मकानों के मालिकाना हक देने का उनके लिए कोई खास मतलब नहीं है, क्योंकि वे खुद अपने मकानों के मालिक हैं। उलटे उन्हें कथित मालिकाना हक के नाम पर डीडीए को मोटी रकम देने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है।
यही कारण है कि जिसे बीजेपी ने अपना ब्रह्मास्त्र समझा था, वह एक दागा हुए कारतूस साबित हुआ और चुनाव तिथियों की घोषणा के कुछ घंटे के बाद एक भाजपा समर्थक न्यूज चैनल ने जो चुनाव पूर्व ओपिनियन पोल के नतीजे जारी किए, उसमें केजरीवाल की पार्टी को 59, भाजपा को 8 और कांग्रेस को 3 सीटें मिलती दिखाई गईं। बताया गया कि आम आदमी पार्टी को करीब 54 फीसदी और भाजपा को करीब 26 फीसदी वोट मिल रहे हैं। भाजपा के लिए उससे भी बुरी खबर यह थी कि केजरीवाल को दिल्ली के 70 फीसदी मतदाता फिर से मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। अब यदि वास्तव में 70 फीसदी मतदाताओं की पसंद केजरीवाल हैं, तो फिर उनकी पार्टी को 59 से भी ज्यादा सीटें आनी चाहिए। पिछली बार 32 फीसदी वोट पाकर भाजपा तीन सीटों पर जीती थी, तो इस बार 26 फीसदी वोट पाकर वह 8 सीट पर कैसे जीत सकती है? जाहिर है, ओपिनियन पोल आयोजित करने वाली एजेंसी सीटों के मामले में भाजपा के ऊपर कुछ ज्यादा मेहरबान दिख रही है। यदि केजरीवाल 70 फीसदी लोगों की पसंद हैं, तो उनकी पार्टी को कम से कम 60 फीसदी मत आने चाहिए और यदि इतने मत आते हैं, तो लगभग सभी 70 सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार चुनाव जीत सकते हैं। (संवाद)
दिल्ली विधानसभा के आम चुनाव
क्या इस बार अपना ही रिकाॅर्ड तोड़ देगी ‘आप’?
उपेन्द्र प्रसाद - 2020-01-07 10:46
दिल्ली विधानसभा के आमचुनाव की घोषणा हो गई। इसके लिए मतदान 8 फरवरी को होगा और 11 फरवरी को नतीजे आ जाएंगे। वैसे नतीजों को लेकर कोई संशय यहां है नहीं। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की जीत तय मानी जा रही है। वैसे तो सभी पार्टियों के नेता अपनी जीत को मानकर ही चलते हैं और चुनाव में हारना उनके लिए कोई संभावना नहीं होती, लेकिन मुख्यमंत्री केजरीवाल अपनी जीत पर इतने आश्वस्त हैं कि उन्होंने मतदाताओं से कह डाला कि जिन्हें मेरा काम पसंद नहीं आया और जिन्हें लगता है कि मैंने काम नहीं किया, वे मुझे अपना वोट नहीं दें।