नकारात्मक विकास दर उस सेक्टर में दिखाई पड़ रही है, जिसे बेसिक सेक्टर कहते हैं और जिसमें कोयला, लोहा, गैस और सीमेंट जैसे उद्योग शामिल हैं। यह सब उत्पादन में इनपुट के रूप में इस्तेमाल होते हैं। इनकी खपत में कमी का मतलब है जिन उद्योगों में उत्पादन के इनपुट के रूप में इनका इस्तेमाल होता है, उनके विकास की दर भी या तो शून्य के नीचे जा रही होगी या बहुत जल्द उसके विकास की यह तस्वीर सामने आने लगेगी।
वैसा ही एक उद्योग गृह निर्माण उद्योग है, जिसकी तबाही की खबरें बहुत दिनों से मीडिया की सुर्खियां बनी हुई हैं। पिछले कई साल से यह उद्योग संकटग्रस्त है। लाखों फ्लैट देश भर में ऐसे हैं, जो खरीददार का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन उन्हें खरीददार मिल नहीं रहे। यह उद्योग अराजकता का शिकार पिछले कई दशकों से रहा है। यह उद्योग काले धन से सबसे ज्यादा प्रभावित रहा है और काले धन पर जैसे जैसे लगाम लग रहा है, इसकी तबाही बढ़ती ही जा रही है। काले धन के प्रसार के कारण इस उद्योग के उद्यमियों ने अतने महंगे महंगे फ्लैट बना लिए, जिनके खरीददार भारत में बहुत कम हैं। वैसे अनबिके फ्लैट्स लाखों की संख्या में हैं और लाखांे करोड़ रुपये की पूंजी उनमें फंसी हुई है। अनुमान लगाया जा सकता है कि वह अर्थव्यवस्क्था का कितना बड़ा नुकसान है।
रियल इस्टेट संकट में है। यह तो हमें पहले ही पता था। लेकिन मकान बिक्री के ताजा आंकड़ों ने तो एक ऐसी तस्वीर पेश की है, वह बहुत ही भयावह है। यह आंकड़ा चालू वित्तवर्ष की तीसरी तिमाही का है। यानी यह अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर महीने का है। इस तिमाही की एक खास विशेषता भारत में यह होती है कि इसमें अनेक पर्व और त्यौहार होते हैं, जिसमें बाजार में ज्यादा ग्राहक आ जाते हैं। बाजार के लिए यह तिमाही साल भर की सबसे बेहतर तिमाही होती है। बाजार के लिए यह बिजी सीजन माना जाता है, लेकिन इस बिजी सीजन के जो आंकड़े आ रहे हैं, वे गृह निर्माण उद्योग के लिए चिंताजनक हैं ही, देश की अर्थव्यवस्था के खराब भविष्य की ओर भी इशारा करते हैं।
आंकड़ों के अनुसार देश के सबसे धनी दस शहरों में मकानों की बिक्री 30 फीसदी गिर गई है। अगर अलग अलग शहरों को देखें, तो दक्षिण भारत में यह गिरावट ज्यादा हुई है। बंगलोर में तो मकान की बिक्री 50 फीसदी कम हो गई है और हैदराबाद में यह गिरावट 44 फीसदी है। ये दोनों महानगर डिजिटल उद्योग के लिए मुख्य रूप से जाने जाते हैं। आईटी हब के रूप में विख्यात ये दोनों शहर देश के अन्य हिस्सों के लोगों के लिए आकर्षण के केन्द्र बने और अधिक आय पर लोगों को रोजगार भी वहां मिल रहे हैं। अब इन दोनों राज्यों में मकानों की मांग का इतना कमजोर होने का मतलब यही है कि आईटी प्रोफेसनल अब बहुत ही कम तनख्वाह पर वहां काम पा रहे हैं, जिसके कारण उनकी क्रयशक्ति कम हो रही है और अपना मकान खरीदने की उनकी क्षमता घटती जा रही है। एक कारण यह भी हो सकता है कि अब नये लोगो को वहां रोजगार मिलना कम हो गया है। कारण चाहे जो भी हो, बंगलोर और हैदराबाद में मकानों की बिक्री में कमी डिजिटल उद्योग की तबाही का भी एक संकेत है।
बंगलोर और हैदराबाद के बाद पुणे मे मकान बिक्री में सबसे ज्यादा कमी आई है। यह कमी 39 फीसदी है। उसके बाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नोएडा का नंबर है। वहां मकान 38 फीसदी कम बिके। चेन्नई और कोलकाता में यह गिरावट 33 फीसदी है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में बिक्री 18 फीसदी गिरी तो गुजरात के अहमदाबाद में यह गिरावट 14 फीसदी दर्ज की गई।
गुड़गांव के बाजार पर इस गिरावट का सबसे कम असर पड़ा है। वहां मकानों की बिक्री में गिरावट 6 फीसदी थी। वहां बिक्री की गिरावट में आई कमी का कम होना इसलिए संभव हो पाया है कि हरियाणा सरकार ने अफोर्डेबल हाउसिंग का अभियान चला रखा है और किफायती कीमतों पर वहां मकान उपलब्ध हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत वहां आसानी से ऋण भी उपलब्ध हैं और ब्याज पर सब्सिडी भी। इसके बावजूद 6 फीसदी की गिरावट का होना चिंताजनक ही है, क्योंकि प्रधानमंत्री आवास योजना के बावजूद मकानों की बिक्री में वहां उल्लेखनीय बिक्री नहीं हो पा रही है। यदि हम उस योजना के तहत बिके मकानों को हटाकर गुड़गांव के मकानों की बिक्री का आंकड़ा प्राप्त करें, तो यह संभव है कि वहां मकानों की बिक्री में आई गिरावट बंगलोर की 50 फीसदी गिरावट से भी ज्यादा दिखाई पड़े।
अब जब मकानों की बिक्री ही सुस्त है, तो गृह निर्माण की स्थिति क्या होगी? सितंबर 2019 के आंकड़े बताते हैं कि उस समय उन 9 बड़े शहरों में 7 लाख 97 हजार 7 सौ 23 मकान अनबिके थे। उसके बाद के तीन महीनों में वह अनबिका स्टाॅक मात्र तीन फीसदी घटा। यदि इसी दर से बिक्री हुई, तो उन अनबिके मकानों के पूरा बिकने में 29 महीने लग जाएंगे। जब पहले से ही इतने मकान बिकने के लिए ग्राहक का इंतजार कर रहे हैं, तो फिर नये मकान कौन और किसके लिए बनाएगा। लिहाजा गृह निर्माण उद्योग का भविष्य अंधकारमय है और उसके साथ ही उन उद्योगों का भविष्य भी खराब है, जो गृह निर्माण को इनपुट उपलब्ध कराते हैं।
देश के सामने अभूतपूर्व आर्थिक संकट खड़ा है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हमारे नीति निर्माता इस समस्या को गंभीरता से नहीं ले रहे। यदि वे अभी भी नहीं चेते, तो स्थिति बद से बदतर होती चली जाएगी। (संवाद)
गृह निर्माण उद्योग पर संकट का साया
बद से बदतर हो रही है अर्थव्यवस्था
उपेन्द्र प्रसाद - 2020-01-15 15:56
देश की अर्थव्यवस्था को लेकर चारों तरफ से निराशाजनक खबरें आ रही हैं। आर्थिक विकास दर लगातार घटती जा रही है। अर्थव्यवस्था के कुछ मोर्चों पर तो विकास दर शून्य से भी नीचे जा रही है। इसका मतलब है कि जितना उत्पादन पिछले साल हुआ था, उससे भी कम उत्पादन उन क्षेत्रों में हुआ है। नकारात्मक विकास का मतलब स्पष्ट है कि इसके कारण लोगों की आय कम हो रही है और काम धंधे में लगे लोग भी लगातार बेरोजगार होते जा रहे हैं।