उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लगाए गए आरोपों का मजाक उड़ाया कि यह गीत ‘नफरत फैलाने वाला’ था। कविता के शुरुआती शब्द ‘‘वो दिन के जिसका वादा है, जो लौह-ए-अजल में लिखा है, हम दीखेंगे। जब जुल्म-ओ-सीतम के कोह-ए-गरां, रूई की तरह उड़ जाएंगे, हम देखेंगे। सलीमा ने समाचार एजेंसी से बात करते हुए इसका पाठ किया।
फैज की मृत्यु के दो साल बाद 1986 में प्रसिद्ध गायिका इकबाल बानो द्वारा लाहौर में एक सार्वजनिक गायन के बाद कविता प्रतिरोध का प्रतीक बन गई। उनके पिता ने क्या कहा होता या आज जीवित होने पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करते? उनकी बेटी ने कहा कि वे सिर्फ सिगरेट जलाते और विवाद को एक मुस्कुराहट के साथ धकेल देते। हम कल्पना कर सकते हैं कि वह बिल्कुल परेशान नहीं होते। वह अपने शांत स्वभाव और हर तरह के उकसावे के कारण मुस्कुराने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध थे।
1911 में उत्तरी पंजाब के एक शहर सियालकोट में जन्मे फैज ने ब्रिटिश भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दी थीं और उसके बाद विभाजन के पूर्व वर्षों में भारत की अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। वह अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ, सीपीआई के साहित्यिक मोर्चे के संस्थापकों में से थे। पाकिस्तान की स्वतंत्रता के बाद, वह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ पाकिस्तान के शीर्ष नेताओं में से एक बन गए। 1951 में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को उखाड़ फेंकने के लिए कुख्यात रावलपिंडी षडयंत्र मामले में कथित भागीदारी के लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया था और मौत की सजा सुनाई गई थी। जनरल अकबर खान को इसमें कथित संलिप्तता के लिए अदालत में रखा गया था। जुल्फिकार अली भुट्टो के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभालने के बाद इस्लामाबाद ने रावलपिंडी षड़यंत्र केस को आधिकारिक तौर पर दफन कर दिया, जो सैन्य नौकरशाही सत्ता के अंदर झगड़े का एक प्रतिबिंब था।
पाकिस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी के एक शीर्ष नेता फैज ने 1979 में प्रतिष्ठित कविता लिखकर जनरल जिया-उल हक की बेहद प्रति-क्रांतिकारी तानाशाही के दौरान उत्पीड़न और क्रूरता के पहाड़ों को रूई की तरह उड़ाने बात कही थी। लेकिन यह कविता अब विगत एक महीने से भारत में विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के खिलाफ रैली में इस्तेमाल हो रही है, जिसे व्यापक रूप से अल्पसंख्यकों और मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण माना जाता है।
हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी द्वारा नाम लिए बिना सांप्रदायिक घृणा की प्रवृत्ति का पता लगाने के लिए, कवि की बेटी ने कहा, “अगर वे जनता के लिए खतरा हैं तो उनकी सामग्री की जांच करना ऊर्जा और समय की बर्बादी है। हालांकि, फैज के शब्दों को लेकर भारत में हाल ही में हुई बहस ने उनका बहुत अच्छा मनोरंजन किया है।’’
भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे महान उर्दू कवियों में से एक, फैज के भारत में अनगिनत प्रशंसक हैं और उनके छंदों का भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद किया गया है। उनके प्रशंसकों में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी, सत्तारूढ़ भाजपा के संस्थापक-अध्यक्ष थे। 1981 में दिल्ली में कवि के सम्मान में एक स्वागत समारोह में, उन्होंने इस शायर को नमस्कार करने के लिए प्रोटोकॉल तोड़ा। उर्दू और हिंदी में एक कवि, फैज वाजपेयी के आइडल्स में से एक थे। लेकिन मई 2018 में, कवि की छोटी बेटी, मोनेजा हाशमी, जो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध मीडिया हस्ती हैं, को नरेंद्र मोदी सरकार ने पाकिस्तान लौटने के लिए मजबूर किया और इस तरह उन्हें दिल्ली में एक मीडिया शिखर सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण भाषण देने से रोक दिया। वह कार्यक्रम कुआलालंपुर स्थित एशिया-पैसिफिक इंस्टीट्यूट फॉर ब्रॉडकास्टिंग डेवलपमेंट द्वारा आयोजित था।
उन्हें आधिकारिक तौर पर वहां आमंत्रित किया गया था और उनके पास भारत में एक बहु प्रविष्टि वीजा था, जिसका उपयोग वह अक्सर दोस्तों को देखने और कलाकारों और लेखकों को फैज फाउंडेशन की गतिविधियों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करने के लिए करती थीं। लेकिन शाम को आयोजकों ने उनके होटल में उन्हें बताया गया कि उनका पंजीकरण रद्द कर दिया गया है। उन्होंने इनायत से ट्वीट किया, “हम, फैज फैमिली और फैज फाउंडेशन हमारे दोनों देशों के बीच शांति के लिए काम करना जारी रखेंगे।’’
सलीमा ने अपने अब्बा को एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति और भारत के साथ मित्रता और सौहार्दपूर्ण संबंधों में गहरा विश्वास रखने वाले एक अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति के रूप में वर्णित किया। उन्होंने याद किया कि कवि ने 1948 में भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए दिल्ली से उड़ान भरी थी। अंग्रेजी भाषा के अखबार द पाकिस्तान टाइम्स के वे उस समय संपादक थे। उन्होंने गांधी पर दो संपादकीय लिखे।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और भारत के बीच साम्यवादी कवि के प्रति दीवानगी की वजह से उन्होंने दो दक्षिण एशियाई देशों के बीच अपने आपको हमेशा एक सेतु माना। (संवाद)
फैज भारत और पाकिस्तान के बीच एक पुल थे
शायर की बेटी ने विवादित नज्म पर पैदा भ्रम को दूर किया
शंकर रे - 2020-02-03 11:06
प्रसिद्ध उर्दू कवि फैज अहमद फैज कभी भी भारत और पाकिस्तान के बीच एक पुल के रूप में कार्य करने का मार्ग प्रशस्त करना नहीं छोड़ा। अपनी मृत्यु के कई दशक के बाद भी वे अपना यह काम बतौर कर रहे हैं। हाल की घटनाओं ने केवल यह एक बार फिर साबित किया है। अनादोलु एजेंसी के साथ एक विशेष साक्षात्कार में लाहौर स्थित बड़ी बेटी सलीमा हाशमी ने कहा कि उनके शब्द दिन लगातार दिन बीतने के साथ अधिक से अधिक सार्थक होते जा रहे हैं। वे खुद एक प्रसिद्ध कलाकार, चित्रकार और शिक्षक के रूप में ख्यात हैं। वह ‘हम देखेंगे’ कविता के बारे में विवाद का जिक्र कर रही थीं, जो पिछले महीने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के कानपुर परिसर में गाया गया था।