दूसरा टर्म प्रारंभ होते ही भाजपा ने इन तीनों लक्ष्यों पर काम प्रारंभ कर दिया। आडवाणी कहा करते थे जिस दिन हम 370 हटाएंगे उस दिन हम लोकसभा में 370 सीटों पर कब्जा कर लेंगे। किसी ने यह नहीं सोचा था कि न्यायपालिका के सहयोग से राम मंदिर निर्माण का रास्ता खुल जाएगा। एक समय था जब विश्व हिन्दू परिषद के सर्वमान्य नेता अशोक सिंघल कहते थे कि न्यायालय का निर्णय कुछ भी हो हम मंदिर वहीं बनाएंगे। परंतु परिस्थितियों में ऐसा परिवर्तन हुआ कि सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा निर्णय दिया जिसे मंदिर समर्थकों ने सहर्ष स्वीकार किया। अब सिर्फ समान नागरिक संहिता लागू करना शेष है। परंतु उसके पूर्व ही कुछ ऐसे निर्णय लिए गए हैं जिनसे हिन्दू राष्ट्र की मंजिल और नजदीक आ गई है।
हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना को संघ के द्वितीय सर संघ चालक गुरू एम. एस. गोलवलकर ने स्पष्ट किया है। उन्होंने साफ कहा था कि हिन्दू राष्ट्र में सिर्फ हिन्दू ही रह सकते हैं। गैर-हिन्दू भी रह तो सकते हैं परंतु उन्हें दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में रहना होगा। जिसका अर्थ है कि हिन्दू राष्ट्र में रहते हुए उन्हें कोई अधिकार नहीं होंगे। संघ को प्रारंभ से ही बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के रूप में विभाजन स्वीकार नहीं था। अतः हिन्दू राष्ट्र मेें अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी नहीं रहेगी। कौन बहुसंख्यक और कौन अल्पसंख्यक है इसका फैसला एनआरसी करेगा। एनआरसी के माध्यम से तैयार की जाने वाली सूची में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का विभाजन रहेगा। स्पष्ट है कि अल्पसंख्यकांे को भारत में रहने का अधिकार नहीं रहेगा। एक बार यह तय होने पर कि कोई व्यक्ति अल्पसंख्यक है उसे या तो भारत छोड़कर जाना पड़ेगा या विशेष रूप से निर्मित शिविरों में रहना पड़ेगा।
यह विभाजन लगभग वैसा ही होगा जैसा जर्मनी में हिटलर ने किया था। हिटलर ने पहचान-पहचानकर यहूदियों को या तो देश से बाहर जाने के लिए मजबूर किया या उन्हें देश के भीतर उन्हीं से अपनी कब्रें बनवाकर मार डाला था। जिन यहूदियों को जर्मनी छोड़ना पड़ा था उनमें महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आईंस्टाइन भी शामिल थे।
संघ के दूसरे सरसंघ चालक माधव सदाषिव गोलवलकर के विचारों का संकलन ‘बंच आॅफ थाट्स‘ के नाम से प्रकाशित है। इस ग्रंथ में गुरूजी ने एकात्मक राष्ट्र की जोरदार वकालत की है। वे देश के संघात्मक ढ़ांचे के विरोधी हैं। उनका कहना है कि ‘‘संघीय ढांचे के कारण देश में पृथकता की भावना पैदा होती है। संघीय ढांचे के कारण ‘देश एक है‘ की भावना कमजोर होती है। यदि देश एक है की भावना को मजबूत करना है तो उसके लिए वर्तमान संघीय ढांचे को कब्र में गाड़ देना चाहिए। अर्थात, उन सभी राज्यों को समाप्त कर देना चाहिए जिन्हें तथाकथित स्वायत्ता प्रदान की गई है। इस तरह के राज्यों को समाप्त करके एक ही राज्य में उनका विलय कर देना चाहिए।‘‘
सबसे पहले गोलवलकर संविधान की प्रासंगिकता पर ही प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। आरएसएस भारत के संघीय ढांचे के विरूद्ध क्यों है इसका अंदाज गोलवलकर की इसी पुस्तक के एक अध्याय जिसका शीर्षक ‘‘एकात्मक शासन की अनिवार्यता‘‘ है, को पढ़ने से लग जाएगा। इस अध्याय में एकात्मक शासन तुरंत लागू करने के उपाय सुझाते हुए गोलवलकर लिखते हैं- ‘‘इस लक्ष्य की दिशा मंें सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी कदम यह होगा कि हम अपने देश के विधान से संघीय ढांचे की संपूर्ण चर्चा को सदैव के लिए समाप्त कर दें, भारत के अंतर्गत अनेक स्वायत्त अथवा अर्ध-स्वायत्त राज्यों के अस्तित्व को मिटा दें तथा एक देश, एक राज्य, एक विधानमंडल, एक कार्यपालिका घोषित करें। उसमें खंडात्मक, क्षेत्रीय, साम्प्रदायिक, भाषाई अथवा अन्य प्रकार के गर्व के चिन्ह भी नहीं होने चाहिए एवं इन भावनाओं को हमारे एकत्व के सामंजस्य को ध्वस्त करने का मौका नहीं मिलना चाहिए। संविधान का पुनःपरीक्षण एवं पुनर्लेखन हो, जिससे कि अंग्रेजों द्वारा किया गया एवं वर्तमान नेताओं द्वारा मूढ़तावश ग्रहण किया हुआ कुटिल प्रचार कि हम लोग अनेक अलग-अलग मानववंशों अथवा राष्ट्रीयताओं के गुट हैं, जो संयोगवश भौगोलिक एकता एवं एकसमान सर्वप्रधाान विदेशी शासन के कारण साथ-साथ रह रहे हैं, इस एकात्मक शासन की स्थापना द्वारा प्रभावी ढंग से अप्रमाणित हो जाए।‘‘
गोलवलकर, जिन्हें सत्तासीन भाजापाई नेता अपना गांधी मानते हैं, ने सन् 1961 में राष्ट्रीय एकता परिषद की प्रथम बैठक को भेजे अपने संदेश में भारत में राज्यों को समाप्त करने का आव्हान करते हुए कहा था ‘‘आज की संघात्मक (फेडरल) राज्य पद्धति, पृथकता की भावनाओं का निर्माण तथा पोषण करने वाली, एक राष्ट्र भाव के सत्य को एक प्रकार से अमान्य करने वाली एवं विच्छेद करने वाली है। इसको जड़ से ही हटाकर तदानुसार संविधान शुद्ध कर एकात्मक शासन प्रस्थापित हो।‘‘ आरएसएस, संघीय व्यवस्था से कितनी नफरत करता है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गोलवलकर महाराष्ट्र राज्य के निर्माण के न केवल घोर विरोधी थे बल्कि एक राजनीतिज्ञ की तरह वे नए राज्य के निर्माण के खिलाफ आयोजित सम्मेलनांे में धुंआधार भाषण देते थे। बंबई में प्रांतीयता विरोधी सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए गोलवलकर ने कहा था, ‘‘मैं एक देश, एक राज्य का समर्थन करता हूं। भारत में केन्द्रीय शासन होना चाहिए और शासन व्यवस्था की दृष्टि से राज्य समूह नहीं तो क्षेत्र रहने चाहिए।‘‘
आरएसएस के संघीय राज्य के विरूद्ध इन उग्र विचारों को जानने के बाद यह अच्छी तरह से समझा जा सकता है कि केन्द्र सरकार में शामिल स्वयंसेवक भारत के संघीय ढांचे को बर्बाद करने में कितनी तन्मयता से जुटे होंगे।
गोलवलकर कहते हैं कि हमारे नेताओं को साहस दिखाना चाहिए और वर्तमान संघीय ढांचे के खतरे को समझकर उसे समाप्त करने की योजना बनानी चाहिए।
गोलवलकर आगे लिखते हैं, ‘‘हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि वे हमारे देश के नेताओं को इतनी शक्ति दें कि हिन्दू राष्ट्र के निर्माण की दिशा में वे सही कदम उठाएं। ऐसा धर्म के रास्ते से ही हो सकता है। यदि हमारा नेतृत्व ऐसा कर पाता है तो वह इतिहास में अपना स्थान बना लेगा। फिर भारत के लोग उन्हें वैसे ही पूजेंगे जैसे शंकराचार्य को पूजा जाता है।‘‘
स्पष्ट है कि देश के संघीय ढांचे को यकायक समाप्त नहीं किया जा सकता। इसलिए अत्यंत धूर्तता से संघीय ढांचे को कमजोर किया जाएगा। इस उद्धेश्य की पूर्ति के लिए ऐसी परिस्थितियों का निर्माण जरूरी है जिनमें केन्द्र और राज्यों के बीच टकराव हो। सीएए और एनआरसी इसी काम मंे मदद करेंगे।
जैसा कि स्पष्ट दिखाई दे रहा है अनेक गैर-भाजपा शासित राज्य इन दोनांे कानूनों को लागू नहीं करेंगें। केरल और पंजाब विधानसभाओं ने प्रस्ताव पारित कर अपनी मंशा जाहिर कर दी है। निकट भविष्य में अनेक अन्य राज्य भी ऐसा ही रवैया अपनाएंगे। यदि राज्य अपने रवैये में परिवर्तन नहीं करते हैं तो पहले तो केन्द्र उन्हें दी जाने वाली सहायता कम या बंद कर देगा। यदि इसके बाद भी राज्य अपना रवैया नहीं बदलेंगे तो केन्द्र इन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है। राष्ट्रपति शासन से केन्द्र मजबूत होगा और राज्य कमजोर। वैसे भी केन्द्र राज्यों की अपेक्षा अधिक ताकतवर है। (संवाद)
हिन्दू राष्ट्र की ओर बढ़ रहे हैं मोदी सरकार के कदम
संघ का उद्देश्य संघीय व्यवस्था को समाप्त करना भी है
एल एस हरदेनिया - 2020-02-05 12:01
जब से भारतीय जनता पार्टी ने केन्द्र मेें बहुमत हासिल किया है तब से अत्यधिक धीमी गति से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेेंडे पर काम करना प्रारंभ कर दिया है। वैसे तो संघ का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एजेंडा भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है। परंतु यह काम एक झटके में नहीं किया जा सकता। अतः उसे अत्यधिक चतुराई से किया जा रहा है। सन् 2014 के आमचुनाव में भी भाजपा ने लोकसभा में बहुमत हासिल किया था परंतु 2014 से 2019 तक भाजपा ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे ऐसा लगा हो कि उसके कदम हिन्दू राष्ट्र की तरफ बढ़ रहे हैं। इसका मुख्य कारण यह था कि भाजपा नहीं चाहती थी वह कोई ऐसा काम करे जिससे उसे 2019 में बहुमत से हाथ धोना पड़े। जब भाजपा का नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी के हाथ में था तब वे कहा करते थे कि इस समय हमारे तीन प्रमुख लक्ष्य हैंः 1. अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण; 2. समान नागरिक संहिता बनाना और 3. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना।