नरेन्द्र मोदी ने भले अपने आपको इस चुनाव में नहीं झोंका हो, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने इस चुनाव को जीतने के लिए वे सारे उपाय आजमा लिए, जो उनके पास थे। उसे सभी राज्यों के अपने मुख्यमंत्रियों को दिल्ली के मोर्चे पर लगा रखा था। सहयोगी नीतीश कुमार को भी अपनी तरफ से दिल्ली में पेश कर दिया और उसे संभव बनाने के लिए उन्होंने उनके दल के लिए दो सीटें छोड़ दीं। नीतीश के दल के पास चुनाव लड़ने लायक उम्मीदवार ही नहीं थे, तो भाजपा ने अपने उम्मीदवार ही जदयू के टिकट से लड़वा दिए। नीतीश ही क्यों रामविलास पासवान की पार्टी के लिए एक सीट छोड़कर बिहारी वोटों को अपने प्रभाव में लाने की कोशिश भाजपा ने। केन्द्र सरकार के सारे मंत्री चुनाव प्रचार में लग गए। हद तो तब हो गई, जब भारतीय जनता पार्टी ने अपने 260 सांसदों को दिल्ली की झुग्गियां आबंटित कर दीं और कहा कि आप मतदान के पहले के तीन दिनों तक वहीं डेरा डाल दें और उनसे भाजपा का वोट मांगते हुए कहें कि जहां आपकी झुग्गियां हैं, वहीं आपको पक्का मकान बनाकर हमारी सरकार देगी।

यह तो हुआ अपने नेताओं को पूरी तरह झोंक देने की बात। इसके अलावा भाजपा ने चुनावी मुद्दों को घोर सांप्रदायिक करण किया। उसके मंत्री और सांसद गोली चलाने की बात भी करने लगे। अपने विरोधियों को गद्दार तो वे पहले से ही कहते रहे हैं। मंत्री द्वारा गोली चलाने के आह्वान के बाद जामिया मीलिया और शाहीन बाग में गोलियां भी चलीं और गोलीबारी के बाद दिल्ली के हिन्दुओं को मुसलमानों के खिलाफ ध्रुवीकृत करने की हर संभव कोशिश की गई। पूरे चुनाव को शाहीन बाग पर जनमत के रूप में पेश करने की कोशिश की गई। शाहीन बाग तो एक प्रतीक था। असली निशाना मुस्लिम थे और शाहीन बाग के बहाने पूरे चुनाव को मुसलमान बनाम हिन्दू बनाने की कोशिश की गई। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ शाहीन बाग में महिलाएं दो महीने से धरने पर बैठी हुई हैं। यह सच है कि उसमें अधिकांश महिलाएं मुस्लिम हैं, लेकिन उस धरने में हिन्दुओं की भी भागीदारी है और इसके कारण उस मुद्दे पर देश में धार्मिक ध्रुवीकरण नहीं हो पा रहा है। लेकिन भाजपा ने ऐसा करने की भरसक कोशिश की। उसके प्रचार का मुख्य स्वर ही हिन्दू- मुस्लिम, भारत- पाकिस्तान और शाहीन बाग था। उनके रणनीतिकारों को लग रहा था कि दिल्ली की जनता को वे धार्मिक आधार पर बांटने में सफल हो जाएंगे और वहां के लोग केजरीवाल के रूप में एक अच्छी सरकार के बदले भारतीय जनता पार्टी की उस सरकार को पसंद करेंगे, जिसका चरित्र अनिश्चित हो।

केजरीवाल ने भी चुनाव अभियान के दौरान परिपक्वता दिखाई और भाजपा द्वारा फेंके गए जाल में नहीं फंसे। भाजपा के नफरत वाले एजेंडे को ही उन्होंने नजरअंदाज कर दिया और अपनी सरकार द्वारा किए गए काम के आधार पर ही लोगों से वोट मांगते रहे। उनके पास लोगों को दिखाने के लिए अपने काम थे, तो भारतीय जनता पार्टी के पास नफरत फैलाकर चुनाव जीतने की रणनीति। पिछले पांच सालों में अरविंद केजरीवाल ने वह काम कर दिखाया था, जो शायद ही आजतक देश के किसी भी राज्य की सरकार ने किया होगा। उन्होंने 20 हजार लीटर प्रति महीने पानी का उपभोग करने वाले परिवारों को पानी फ्री कर रखा है। लाखों की संख्या में जलबोर्ड के साथ लोगों के मुकदमे थे, क्योंकि केजरीवाल के पहले घरों में ज्यादातर पानी नहीं आता था, लेकिन बिल आ जाते थे। लोग बिलों का भुगतान नहीं करते थे। केजरीवाल ने उस सारे मुकदमो को वापस ले लिया और दशकों पुरान पानी बिल को माफ कर दिया। दिल्ली के आधे इलाके मेेेें ही जल बोर्ड के पाइप बिछे हुए थे। अब करीब 93 फीसदी इलाकों में पाइप बिछ चुके हैं।

उसी तरह केजरीवाल सरकार 400 यूनिट प्रति महीने बिजली खपत पर पिछले 5 सालों से 50 फीसदी की सब्सिडी दे रही थी। 8 महीने पहले उसे 200 यूनिट बिजली फ्री कर दी। उससे भी बड़ी बात यह हुई कि 24 घंटे बिजली मिलने लगी और बिजली कंपनियों की मनमानी समाप्त हो गई। इसके अलावा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में भी क्रांतिकारी बदलाव हुए। दिल्ली की सरकारी शिक्षा और सरकारी स्वास्थ्य सेवा आज किसी भी अन्य राज्य से बेहतर है। इसका लाभ लोगों को हो रहा है। 3 लाख सीसीटीवी भी लगा दिए गए हैं, जिसके कारण अपराधियों को पकड़ना अब आसान हो गया है। उसके कारण दिल्ली में अपराध भी कम हो गए है। एक बड़ा काम केजरीवाल सरकार ने सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार पर रोक लगाकर कर दी है। करीब 80 फीसदी भ्रष्टाचार कम हो गए हैं, क्योंकि सरकारी सेवाएं अब घरों तक पहुंचाई जा रही है।

यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी के लिए दिल्ली का किला फतह करना बहुत कठिन काम है। लेकिन भावनाएं भड़काकर, हिन्दुओं को मुसलमानों का झूठा डर दिखाकर लोगों के वोट लेने की कोशिश की गई। लेकिन लोग झांसे में नहीं और इस तरह नफरत हार गई और दिल्ली में न केवल आम आदमी पार्टी की जीत हुई है, बल्कि यहां भारत ही जीत गया है। (संवाद)