सच कहा जाए, तो करुणानिघि ने अपना उत्तराधिकारी चुन भी लिया है। वे अपने छोटे बेटे स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं। उन्होंने तमिलनाडु सरकार में उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद भी दे रखा है और सरकार की सभी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां भी उन्हें ही सौंप रखी है, पर उनकी समस्या यह है कि उनके बड़े बेटे अलझगीर स्टालिन को नेता मानने के लिए तैयार नहीं हैं।

उनके बड़े बेटे ने कह रखा है कि करुणानिधि ही उनके नेता हैं। उनके बाद कोई और व्यक्ति उनका नेता नहीं हो सकता। जाहिर है वह साफ साफ कह रहे हैं कि अपने पिता के बाद पार्टी का यदि कोई नेता होगा, तो वे खुद ही होंगे। वे किसी और को उस पद पर स्वीकार नहीं कर सकते। फिलहाल करुणानिधि ने अपने बड़े बेटे को केन्द्र में मंत्री बनवा रखा है।

उन्होंने सोचा था कि संभवतः उनके बड़े बेटे केन्द्र में मंत्री का पद पाकर संतुष्ट हो जाएंगे, लेकिन उन्हें दिल्ली रास नहीं आ रही है। वे तमिलनाडु को भूलने के लिए तैयार नहीं है। यही कारण है कि करुणानिधि अपनी घोषणा के अनुसार आगामी जून महीने में राजनीति छोड़ नहीं पाएंगे। अगले साल राज्य में विधानसभा का चुनाव भी होना है।

चुनाव के समय करुणाानिधि अपनी पार्टी को विभाजित देखना नहीं चाहेंगे। उनके बेटों की लड़ाई को जयललिता ही नहीं कांग्रेस भी बहुत ध्यान और दिलचस्पी के साथ दे रही है। बेटों की लड़ाई की फायदा जयललिता को तो मिलेगा ही, कांग्रेस भी करुणानिधि के बाद अपने आप को तमिलनाडु की राजनीति में ज्यादा मजबूत भूमिका में देखना चाहती है।

कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी का तमिलनाडु अभियान सफल रहा है। उसके बाद कांग्रेस में नया वहां नया आत्म विश्वास पैदा हुआ है। 1960 के दशक में कांग्रेस तमिलनाडु की सत्ता से बाहर हुई थी और उसके बाद वहां फिर सत्ता में नहीं आई। वह कभी डीएमके के तो कभी अन्ना डीएमके के साथ चुनावी तालमेल कर अपनी सत्ता की राजनीति करती रही।

करुणानिधि के बड़े बेटे छोटे बेटे के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करना चाहते। बीच का रास्ता अख्तियार करने में भी समस्या है। बीच का रास्ता तो यह हो सकता है कि स्तालिन को मुख्यमंत्री बना दिया जाय और बड़े बेटे को पार्टी का अध्यक्ष। बड़ा बेटा केन्द्र में पहले से ही मंत्री है। इसलिए शायद वह दो पद पाकर संतुष्ट हो जाए।

लंकिन इस फार्मूले में भी समस्या है। इसके लिए स्तालिन तैयार नहीं है। वे नहीं चाहते कि पार्टी के अंदर सत्ता के दो केन्द्र बने। वे मुख्यमंत्री पद के साथ साथ पार्टी का अध्यक्ष पद भी अपने साथ ही रखना चाहतें हैं। वह नहीं चाहते कि भविष्य में कभी उनका बड़ा भाई उनको कभी कमजोर करे।

दोनों बेटों के बीच किसी तरह की सहमति का माहौल बनाने में करुणानिधि सफल हो नहीं पा रहे हैं और उनकी उम्र बढ़ती जा रही है। वे राजनीति छोड़ना चाह रहे हैं, लेकिन अपनी पार्टी को विभाजित भी नहीं देखना चाहते। उनकी समस्या उनकी पार्टी नहीं, बल्कि उनका परिवार है। पार्टी में तो लोग वही मानेंगे, जो करुणानिधि करना चाहेंगे, लेकिन उनके बेटे उनकी मानने को तैयार नहीं हैं। (संवाद)