यह बात कैबिनेट सचिव राजीव गाबा ने कही है। राजीब गाबा देश के वरिष्ठतक नौकरशाह हैं और बिना प्रधानमंत्री के इजाजत के वे इस तरह की बात नहीं कर सकते, वह भी तब जब घरबंदी की घोषणा से उत्पन्न संकट का सामना करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर है। घरबंदी को अमली जामा भी राज्य सरकारें ही पहना रही हैं। बिना किसी योजना तैयार किए 21 दिनों के लिए घरबंदी घोषित कर दी गई और उसके बाद लाखों या शायद करोड़ों विस्थापित मजदूरों के अपने पैतृक गृह जाने की समस्या आज सबसे बड़ी समस्या है, जिसमें सिर्फ और सिर्फ राज्य सरकारें ही कुछ कर सकती हैं, क्योंकि केन्द्र सरकार द्वारा चलाई जाने वाली रेलगाड़ियां पूरी तरह बंद कर दी गई हैं।

अब जब केन्द्र सरकार ने राज्य सरकारों पर दोषारोपण कर ही दिया है, तो यह सवाल उठता ही है कि क्या राज्य सरकारें वास्तव में जिम्मेदार हैं? कहा गया है कि विदेश से 15 लाख आए लोगों की मेडिकल जांच कर उनमें कोरोनाग्रस्त लोगों को अलगाव में रखना प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी थी। पर सवाल उठता है कि 15 लाख लोगों को विदेशों से आने ही क्यों दिया गया? क्या उन्हें रोकना केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी नहीं थी। उन 15 लाख लोगों में भारतीय भी थे और विदेशी भी। भारतीयों को तो हम रोक नहीं सकते थे, लेकिन क्या विदेशियों को नहीं रोका जा सकता था?

अभी यह आंकड़ा केन्द्र सरकार ने यह जारी नहीं किया है कि उन 15 लाख लोगों में कितने भारतीय थे और कितने विदेशी। और भारतीय लोगों में भी कितने अनिवासी भारतीय थे और कितने निवासी भारतीय- यह भी स्पष्ट नहीं है। जो अनिवासी भारतीय विदेशों की नागरिकता ले चुके हैं, वे भारत के लिए विदेशी ही हैं। उन्हें भी रोका जा सकता था। इसके अलावा विदेश से आए 15 लाख लोगों में वैसे भारतीय भी होंगे, जो भारत से 15 जनवरी के बाद विदेश घूमने या किसी अन्य काम से गए होंगे और 18 मार्च तक वापस आ गए होंगे। यदि उन्हें आदेश जारी कर 15 जनवरी के बाद देश से बाहर जाने ही नहीं दिया जाता, तो जाहिर है कि 18 जनवरी से 18 मार्च के बीच विदेशों से आने वाले लोगों की संख्या 15 लाख लोगों से बहुत कम होती।

और कम संख्या होने के कारण उनकी जांच संभव भी हो पाती। इसलिए यदि राज्य सरकारों ने अपने दायित्व का पालन नहीं किया, तो उसके लिए केन्द्र सरकार ही जिम्मेदार है, जिसने विदेश से आने वाले लोगों को नियंत्रित नहीं किया। नियंत्रित करने के लिए उसे पर्याप्त समय मिल गया था। चीन में कोरोनावायरस का हंगामा शुरू हो गया था। इतना ही नहीं केन्द्र सरकार को भारत के विपक्षी नेता चेता भी रहे थे। अखिलेश यादव ने 15 जनवरी के पहले ही संसद में इस समस्या की ओर सरकार का ध्यान दिलाया था, पर भाजपा सांसदों ने उनका मजाक उड़ाया। राहुल गांधी ने भी केन्द्र सरकार को चेता दिया था कि इस संकट को गंभीरता से लिया जाय।

उसके बाद केन्द्र सरकार को सिर्फ यह करना था कि भारतीयों के विदेश जाने पर वह रोक लगाती और विदेशी पासपोर्ट रखने वाले अनिवासी भारतीयों सहित सभी विदेशियों के भारत आने पर रोक लगा देती। उसके बाद यह संकट पैदा नहीं होता। भारत दुनिया से अलग थलग हो जाता। जो भारतीय नागरिक विदेशों में थे और भारत आना चाहते थे, सिर्फ उनको भारत में प्रवेश दिया जाता। लेकिन केन्द्र सरकार ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। वह कोरोना को चीन की आंतरिक समस्या समझती रही। राहुल गांधी और अखिलेश यादव जैसे विपक्षी नेता ही नहीं, बल्कि विशेषज्ञ भी भारत के लिए गंभीर परिणाम होने की चेतावनी देते रहे, लेकिन भारत सरकार में बैठे लोग खुद को इतना ज्ञानी समझते हैं कि वे अपने अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञ उन्हें मूर्ख लगते हैं।

यही कारण है कि केन्द्र सरकार ने समय रहते कुछ भी नहीं किया। भारत में कोरोना से पीड़ित पहले व्यक्ति की पहचान 30 जनवरी को हुई। उसके बाद भी सरकार नहीं चेती। केन्द्र सरकार के सारे मंत्री दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिताने के लिए जोत दिए गए। खुद केन्द्रीय स्वास्थ्य में एक डाॅक्टर हैं। इसलिए उन्हें समस्या की गंभीरता को जरूरत पता रहा होगा, लेकिन डाॅक्टर होने के अलावा वे दिल्ली के स्थानीय वासी भी हैं, जहां चुनाव हो रहे थे। भाजपा के संभावी मुख्यमंत्री के रूप में उनके नाम की भी चर्चा थी। इसलिए स्वास्थ्य मंत्री की अपनी सारी जिम्मेदारियोे को ताक पर रखकर वे दिल्ली चुनाव मे जुटे रहे और कोराना द्वारा दिए गए नोटिस को भी उन्होंने नजरअंदाज किया।

इसका नतीजा सामने है। जब मोदीजी को पता चला कि विदेशों से 15 लाख लोग भारत आए, जो कोरोना वायरस के संवाहक हो सकते हैं, तो फिर पहले जनता कफ्र्यू और फिर 21 दिनों की घरबंदी का आदेश जारी कर दिया। लेकिन तबतक बहुत देर हो चुकी थी। अब जब इसके लिए मुख्य जिम्मेदार खुद केन्द्र सरकार ही है, तो वह राज्य सरकारों पर दोष मढ़ रही है। अभी समय दोषारोपण का नहीं है, बल्कि सभी सरकारों को मिलजुलकर काम करने का समय है। (संवाद)