जहिर है, संकट अभूतपूर्व है, और इस संकट के सफलतापूर्वक सामना करने का एक ही मंत्र है कि हम मिलजुलकर काम करें। एक देश के रूप में भारत को भी मिलजुलकर काम करना है, लेकिन संकट की इस घड़ी में भारतीय जनता पार्टी जिस तरह की गंदी राजनीति कर रही है, वह निंदनीय ही नहीं, बल्कि बहुत खतरनाक भी है। इसे भी भाजपा एक राजनैतिक इवेंट की तरह इस्तेमाल करना चाह रही है और अपनी विरोधी पार्टियों को खलनायक के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है, जबकि भारत में कोरोना का यह संकट गंभीर से गभीरतर भाजपा की मोदी सरकार के समय पर नहीं लिए गए फैसले के कारण हुआ और देश की यह संपूर्ण बंदी भी उसकी शुरुआती सुस्त रवैये का नतीजा ही है।

देश में लाॅकडाउन चल रहा है, जिसके तहत लोगों को 14 अप्रैल तक अपने अपने घरों में बंद रहने को कहा गया है। इसका पालन भी हो रहा है और अति आवश्यक जीवन रक्षक कार्यों के कारण ही लोग आमतौर पर अपने घरों से बाहर निकल रहे हैं। लेकिन इसके साथ साथ अपने अपने घरों और गांवों से विस्थापित लोगों का दर्द भी सड़कों पर देखा जा सकता है, जिनके पास अपनी कर्मभूमि पर रहने को अपना मकान नहीं है और घरबंदी के कारण उनके पास करने को काई काम भी नहीं है। वे अपने ऊपर कोरोना के कारण मौत के उमड़ते साये को महसूस कर रहे हैं और इन सब कारणों के कारण वे अपने अपने गांवों में वापस जाना चाहते हैं।

घोषणा के पहले इन विस्थापित बेघर मजदूरों की समस्या के निबटारे की मोदी सरकार ने कोई योजना ही नहीं बनाई। खुद मोदीजी दो महीने से कोरोना संकट पर सोए हुए थे और जब जागे तो एकाएक बिना किसी तैयारी के घरबंदी की घोषणा कर दी और देश के लोगों को कहा कि अपने घरों के दरवाजों पर एक लक्ष्मण रेखा खींच लें और उस रेखा का उल्लंघन नहीं करें। लेकिन मोदीजी को शायद यह पता ही नहीं होगा कि देश के करोड़ों लोग अपने घरों में नहीं रहते। वे या तो सड़कों पर रहते हैं, या किराये के मकानों में। वे दिहाड़ी मजदूर हैं और यदि मजदूरी नहीं मिली, तो किराए के उन मकानों में ताला लगाना तो दूर, उसमें वे रहने की पात्रता भी नहीं रखते है।

उनके लिए किसी प्रकार के इंतजाम नहीं होने के कारण वे पैदल ही अपने घरों और गांवों की ओर चल दिए। दृश्य बहुत ही हृदय विदारक था। ज्यादातर लोग बिहार और उत्तर प्रदेश के ही थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दया आ गई और उन्होंने घोषणा कर दी कि 1000 बसों का उन्होंने इंतजाम किया है, जो दिल्ली के बोर्डर से न केवल यूपी बल्कि बिहार के लोगों को भी उनके गंतव्य तक पहुंचा देगा। योगी की उस घोषणा के बाद अनेक मजदूर जो उस समय तक अपने घरों से नहीं निकले थे, निकल पड़े और हजारों हजार की संख्या में यूपी दिल्ली के बोर्डर पर स्थित आनंद विहार बस अड्डे तक पहुंचने लगे। मजदूरों को आनंद बिहार बस अड्डे तक की यात्रा को सुगम बनाने के लिए दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने उन्हें डीटीसी की बसें भी उपलब्ध करवानी शुरू कर दी, जो लाॅकडाउन के कारण ठहरी हुई थी।

अब आंनद विहार बस अड्डे पर योगी की बसें नहीं आ रही थीं और आ भी रही थीं, तो बहुत कम संख्या में। रात तक भीड़ बढ़ती गई और एक अनुमान के अनुसार यह 30 हजार से भी अधिक थी। जाहिर है यह लाॅकडाउन का ब्रेकडाउन था। यह मोदी और योगी सरकार की विफलता का नतीजा था। अपनी सरकारों की विफलता को छुपाने के लिए बीजेपी ने अपने मीडिया सेल और आईटी सेल की सहायता से झूठ फैलाना शुरू कर दिया कि उन मजदूरों के पानी और बिजली के कनेक्शन केजरीवाल सरकार ने काट दिए, इसलिए वे दिल्ली छोड़कर भागने को वे मजबूर हुए। इससे बड़ा झूठ और कुछ हो ही नहीं सकता है, क्योंकि उन मजदूरों के अपने मकान ही नहीं हैं, इसलिए उनके नाम से न तो बिजली के कनेक्शन हैं और न ही पानी के। जिन मकानों में वे रहते हैं, उनमें कनेक्शन मकान मालिकों के नाम से है और कोई मकान मालिक तो दिल्ली से भागा नहीं।

झूठ जितना बड़ा था, उतने बड़े पैमाने पर ही इसे फैलाया गया। भाजपा के आईटी सेल वालों ने इस झूठ को 86 हजार बार ट्विटर पर ट्विट और रीट्विट किया। फेसबुक पर भी इसे वायरल किया गया और मेनस्ट्रीम टीवी मीडिया की सहायता से भी इस झूठ को फैलाया गया। आनंद विहार बस अड्डे पर दिल्ली ही नहीं, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के एनसीआर के लोग भी भारी संख्या में उपस्थित थे, लेकिन यह बताया गया कि वे सारे के सारे लोग दिल्ली के ही हैं, जो केजरीवाल सरकार द्वारा बिजली और पानी कनेक्शन काटने के कारण दिल्ली छोड़कर भागने को मजबूर हो रहे हैं। जबकि एक सच्चाई यह भी है कि दिल्ली में बिजली कनेक्शन देने या काटने का काम दिल्ली सरकार का है ही नहीं, बल्कि एक निजी कंपनी बीएसइएस का है, जिसके मालिक अनिल अंबानी है।

इस तरह का झूठ कोरोना से युद्ध को कमजोर कर सकता है। मोदीजी कहते रहे हैं कि उनके लिए नेशन फस्र्ट है, लेकिन यदि सच है तो उनकी पार्टी इस तरह की गंदी राजनीति क्यों कर रही है? (संवाद)