24 मार्च की रात को आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए लॉकडाउन के ऐलान के अगले दिन से ही दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि तमाम राज्यों से जिस तरह के वीडियो आ रहे हैं, वे दिल दहलाने, रोंगटे खडे करने और आंखें नम कर देने वाले हैं। इन वीडियो में बताया जा रहा है कि महानगरों और बडे शहरों में काम करने वाले प्रवासी मजदूर किस तरह बदहवास होकर अपने परिवार के साथ सुदूर प्रदेशों में अपने घर-गांव लौट रहे हैं। चूंकि लॉकडाउन के चलते नागरिक परिवहन सेवाएं पूरी तरह बंद हैं, लिहाजा वे लोग पैदल ही भूखे-प्यासे चले जा रहे हैं। बच्चे थकान के कारण रो रहे हैं, उनके पैर सूज गए हैं लेकिन मां-बाप उन्हें लगभग घसीटते हुए चले जा रहे हैं।
इन्हीं वीडियो में कई वीडियो ऐसे भी जिनमें शहरों से पलायन करते इन मजदूरों पर पुलिस बेरहमी से लाठियां बरसा रही हैं। इस मामले में पुलिस बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों, अपाहिजों आदि किसी का लिहाज नहीं कर रही है। सरकार ने लॉकडाउन के दौरान दवाई, फल, दूध, राशन आदि आवश्यक जीवनोपयगी वस्तुओं की दुकानों को खुली रखने की छूट दी है, लेकिन दिल्ली में ही कई इलाकों में ये दुकानों भी पुलिस की मर्जी से ही खुल पा रही हैं। कहने की जरूरत नहीं कि इन दुकानदारों से दुकानें खुली रखने का अघोषित ‘अनुमति शुल्क’ ठीक उसी तरह वसूला जा रहा है, जैसे अवैध शराब के कारोबारियों और अन्य गैरकानूनी काम करने वालों से पुलिस वसूली करती है।
इस बात पर कोई बहस नहीं हो सकती कि कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने से रोकने के लिए लोगों का घरों में रहना जरूरी है। लोगों के आपस में मेल मुलाकात बंद करने को इससे बचाव का बडा तरीका माना जा रहा है, जिसे दुनिया के दूसरे देश पहले से ही अपना रहे हैं। लोग खुद भी डरे हुए हैं। वे कई गुना ज्यादा कीमत पर मास्क और सैनिटाइजर खरीद कर उसका उपयोग कर रहे हैं। अपना काम-धंधा बंद कर खुद को घरों में बंद किए हुए हैं। लाखों लोगों की नौकरियां खतरे में हैं। जरूरी सामान की किल्लत और अपने तथा परिवार के किसी सदस्य के बीमार हो जाने की आशंका अलग से परेशानी का सबब बनी हुई है। ऊपर से पुलिस की लाठी और गालियां हैं।
पुलिस ने जिस तरह से लॉकडाउन को मुकम्मल लागू कराने का जिम्मा अपने हाथ में लिया है, उससे लोग शारीरिक और मानसिक रूप से तो प्रताडित हो ही रहे हैं, आर्थिक नुकसान भी बडे पैमाने पर हो रहा है। पुलिस ने अपनी मनमानी करते हुए जगह-जगह पर जरूरी सामान से भरी गाडियों को रोक दिया है। पुलिस दुकानदारों को तो परेशान कर रही रही है, रेहडी-पटरी पर फल और सब्जी बेचने वाले तथा घर-घर जाकर दूध-सब्जी आदि की आपूर्ति करने वाले भी उसकी ज्यादती के शिकार हो रहे हैं। मारपीट करके उनका सामान नष्ट किया जा रहा है। लॉकडाउन शुरू होने से अब तक कई जगह से हजारों लीटर दूध और हजारों किलो सब्जियां बर्बाद होने की खबरें आई हैं।
कुल मिलाकर लोग कोरोना वायरस और पुलिस, दोनों से समान रूप से खौफजदा हैं। लॉकडाउन में पुलिस की ज्यादतियों के बीच ही तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने सीधी चेतावनी दी है कि अगर किसी ने लॉकडाउन का उल्लंघन किया तो पुलिस को उसे देखते ही गोली मारने के आदेश भी दिए जा सकते हैं। सोचिए कि यह मुख्यमंत्री किस मानसिकता का है। चंद्रशेखर राव संघ परिवार या किसी कांग्रेसी नेता के परिवार से निकले मुख्यमंत्री नहीं हैं। वे एक लंबे जनांदोलन और लोकतांत्रिक संघर्ष से निकले राजनेता हैं, लेकिन उनके लिए लोकतंत्र और नागरिकों के बुनियादी अधिकारों के लिए कोई मायने नहीं हैं। वे लॉकडाउन की स्थिति में लोगों की बुनियादी जरुरतों को पूरा करने के बजाय पुलिस की गोली से उनकी जान लेने के इरादे का इजहार कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के बरेली जिला मुख्यालय में तो अपने घरों को लौटते मजदूरों और उनके बच्चों पर पुलिस और प्रशासन के कारिंदों ने कीटनाशक का छिडकाव किया। कीटनाशक आंखों में जाने से कई मजदूर, बच्चे और महिलाएं मारे जलन के बुरी-तरह बिलबिला उठे। जाहिर है कि मुंह, आंख, कान के साथ ही नाक के जरिए कीटनाशक उनके शरीर के अंदर तक गया है। सवाल है कि जैसा सुलूक पुलिस और प्रशासन के कारिंदों ने इन मजदूरों के साथ किया, वैसा ही सुलूक क्या वे उन लोगों के साथ करने की हिमाकत कर सकते हैं, जो हवाई जहाजों में बैठकर कोरोना संक्रमण को विदेशों से अपने साथ भारत में लाए हैं?
उत्तर प्रदेश की तरह ही कर्नाटक में भी पहले नागरिकता संशोधन विरोधी कानून को दबाने और अब कोरोना से लोगों की जान बचाने के नाम पर लॉकडाउन लागू होने के पहले से पुलिस लोगों की बेरहमी से पिटाई कर रही है। आवश्यक कार्य से बाहर निकले लोगों से बगैर कोई पूछताछ करे ही लाठियां बरसाई जा रही है। यही हाल गुजरात का है। महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने भी कहा है कि पुलिस को पूरी छूट है कि वह हर कीमत पर लोगों को काबू में करे। इसी से मिलती-जुलती बात तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री सी. विजय भास्कर ने कही है। देश के बाकी राज्यों में पुलिस राज की कहानी भी लगभग ऐसी ही है।
एक आपदा से निबटने के नाम पर पुलिस की ज्यादतियों को यह मंजर भी किसी आपदा से कम नहीं है। यह पूरा सूरत-ए-हाल हमारी सरकारों, खासकर केंद्र सरकार के नाकारापन और दिमागी दिवालिएपन का परिचायक है, जिसे छुपाने के लिए लॉकडाउन के बहाने देश को पुलिस स्टेट बनाया जा रहा है। (संवाद)
महामारी से लडने के नाम पर पुलिस स्टेट में तब्दील होता देश
सरकारों के नाकारापन का खामियाजा लोग भुगत रहे हैं
अनिल जैन - 2020-04-02 11:15
अगर कोई लोकतांत्रिक देश अचानक पुलिस स्टेट में बदल जाए तो क्या-क्या होता है, यह इन दिनों भारत में देखा जा सकता है। भारत में कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी से बचाव के लिए लॉकडाउन यानी देशबंदी लागू है। सडकों पर या तो सिर्फ पुलिस दिख रही है या फिर पुलिस के हाथों बेदर्दी से पिट रहे गरीब लोग। पिटने वाले लोगों में महानगरों और बडे शहरों से अपने घर-गांव की ओर पलायन कर रहे मजदूर और उनके परिजन भी हैं और अपने परिवार की जरूरत का सामान खरीदने के लिए घरों से निकलने वाले लोग भी। यह सब तब हो रहा है जब न तो देश में किसी तरह का भी आपातकाल लागू नहीं है- न तो आंतरिक या बाहरी और न ही आर्थिक या मेडिकल। फिर भी देश के पुलिस स्टेट बनने जैसे नजारे देखने को मिल रहे हैं।