जाहिर है कि लोगों ने खासकर प्रधानमंत्री के प्रशंसक वर्ग ने इस उनकी इस अपील की धज्जियां उडाई थीं। इसलिए लगा था कि अब आनन-फानन में लागू किए तीन सप्ताह के लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री लोगों से ऐसा कुछ भी करने को नहीं कहेंगे जिससे कि 22 मार्च जैसे दृश्य निर्मित हों और लॉकडाउन के मकसद के उलट लोगों को जगह इकट्ठा होने का मौका मिले। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

कोरोना के खिलाफ शुरू हुई लडाई के दौरान प्रधानमंत्री 3 अप्रैल को एक बार फिर देश से मुखातिब हुए। कोरोना काल के दौरान देश को उनका यह तीसरी संबोधन था। चूंकि लॉकडाउन शुरु हुए को एक सप्ताह से ज्यादा का समय हो गया था, इसलिए आम लोगों और खासकर गरीब तबके के सामने पेश आ रही तमाम तरह की दुश्वारियों और कोरोना से संक्रमित लोगों का इलाज कर रहे तमाम डॉक्टरों के लिए जरूरी मास्क, दस्ताने, एप्रिन, कोरोना जांच किट आदि के अभाव के मद्देनजर लगा कि प्रधानमंत्री कुछ ठोस उपायों की जानकारी लोगों को देंगे। लेकिन प्रधानमंत्री इन मुद्दों पर बात करने के बजाय इस संकट की घडी में लोगों से 5 अप्रैल की रात को 9 बजे नौ मिनट के लिए अपने घरों की लाइटें बंद दीये और मोमबत्ती जलाने का आह्वान किया। इस आह्वान के साथ ही उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग पर जोर देते हुए साफ कहा था कि इस दौरान लोग अपने घरों से बाहर निकल कर सडकों पर इकट्ठा नहीं होंगे।

मगर प्रधानमंत्री के इस आह्वान का भी वैसा ही हश्र हुआ जैसा 22 अप्रैल को जनता कर्फ्यू का हुआ था। लोगों ने प्रधानमंत्री की अपील पर अपने घरों की लाइटें बंद कर दीये और मोमबत्ती तो लगाए, लेकिन इस मौके पर देश के कई शहरों में प्रधानमंत्री की पार्टी के उत्साही कार्यकर्ताओं ने काफी देर तक जमकर आतिशबाजी भी की। यही नहीं, कई जगह सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने की प्रधानमंत्री की नसीहत को ठेंगा दिखाते हुए नाचते-कूदते जय श्रीराम, भारत माता की जय, वंदे मातरम, चाइना वायरस गो बैक और मोदी-मोदी के नारों के साथ मोमबत्ती और मशाल जुलूस भी निकाले गए।

चौतरफा अवसाद और उदासी के माहौल में अपने घरों में दीये और मोमबत्तियां जलाकर संकट की घडी में एकजुटता का प्रदर्शन और समाज में सकारात्मकता का प्रसार करने का प्रधानमंत्री के आह्वान में मौलिकता न होते हुए भी कोई बुराई नहीं थी। यूरोप के कुछ देशों ने भी इस दौर में अपने यहां ताली-थाली बजाने और दीये-मोमबत्ती जलाने जैसे कार्यक्रम किए हैं। लेकिन हमारे यहां तो 5 अप्रैल को रात के नौ बजते ही पूरे देश में दिवाली जैसा माहौल बन गया।

मानवीय संवेदना और एकजुटता प्रदर्शित करने के आयोजन को चारों दिशाओं से आ रहे आतिशबाजी के शोर ने बेहद अमानवीय और घृणास्पद बना दिया। इससे पहले 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के दौरान कोरोना योद्धाओं के प्रति सम्मान और कृतज्ञता प्रदर्शन के लिए ताली और थाली बजाने के प्रधानमंत्री के आह्वान का भी ऐसा ही अश्लील हश्र हुआ था। उस आयोजन से भी यही जाहिर हुआ था कि प्रधानमंत्री की मंशा चाहे जितनी सात्विक रही हो, उसका पालन करने वाली उनके समर्थकों की जमात जाहिलों और अमानुषों से भरी हुई है, जो बडे से बडे शोक के मौके पर भी जश्न मनाने में किसी तरह का संकोच नहीं करती है।

फूहडता और अश्लीलता का जैसा प्रदर्शन प्रधानमंत्री के समर्थकों की जमात ने किया, वैसी ही निर्लज्जता और अश्लीलता का मुजाहिरा उन तमाम टीवी चैनलों ने भी किया, जो कोरोनो के संकट को भी सांप्रदायिक रंग देने के लिए जमीन आसमान एक किए हुए हैं। जैसे ही रात को घडी ने 9 बजाये, वक्त का पहिया मानो थम गया। कोरोना के डरावने आंकडे टीवी चैनलों के स्क्रीन से गायब हो गए। परपीडा का आनंद देने वाली पाकिस्तान की बदहाली की गाथा का नियमित पाठ भी स्थगित हो गया। भक्तिरस में डूबे तमाम चैनलों के मुग्ध एंकर मुदित भाव से चीख-चीख कर बताने लगे कि देखिए, प्रधानमंत्री के आह्वान पर पूरा देश किस तरह दीपावली मना रहा है।

यहां एक सवाल यह भी उठता है कि जब पूरे देश में लॉकडाउन के चलते सिर्फ अनाज, सब्जी, फल और दवाई की दुकानें खुली हैं तो फिर आतिशबाजी के लिए पटाखों का जखीरा देश के हर गांव और शहर में कैसे पहुंच गया? दीपावली को बीते करीब छह महीने हो चुके हैं, लिहाजा यह भी नहीं माना जा सकता कि लोगों के घरों में बचे हुए पटाखे रखे होंगे। जाहिर है कि दीपावली का यह जश्न सत्ता और संगठन की सुविचारित योजना के तहत मना है। भाजपा समर्थकों द्वारा दीये जलाने के इस आयोजन को भाजपा के 40वें स्थापना दिवस से जोडते हुए सोशल मीडिया पर जारी किए गए पोस्टरों से भी इस बात की तसदीक होती है। 22 अप्रैल को जब लोग जनता कर्फ्यू तोडकर सडकों पर निकल आए तो प्रधानमंत्री ने नाराजगी जताई थी लेकिन इस बार वे पूरी तरह खामोश रहे। इससे जाहिर होता है कि 22 मार्च की उनकी नाराजगी भी महज दिखावटी थी। कहने की जरूरत नहीं कि मानवता पर आए इतने बडे वैश्विक संकट की घडी में भी क्षुद्र राजनीतिक हित साधने के ऐसे उपक्रम की मिसाल दुनिया में और कहीं नहीं मिल सकती। (संवाद)